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संकष्टी चतुर्थी : गणेश जी को ऐसे करें प्रसन्न, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व

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Published : Sep 24, 2021, 4:05 AM IST

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आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है. इसे विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी (Vighanraj Sankashti Chaturthi ) कहा जाता है.

पटना : हिंदू धर्म में भगवान गणेश (Lord Ganesha) को प्रथम पूज्य देव माना जाता है. किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है. आश्वनी मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को संकष्टी चतुर्दशी (Sankashti Chaturdashi) कहा जाता है. इस महीने में गणेश जी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. आइए जानते हैं शुभ मुहूर्त, पूजा विधिऔर महत्व के बारे में.

आचार्य कमल दुबे ने बताया कि आश्वनी मास की संकष्टी चतुर्थी 24 सितंबर दिन शुक्रवार को प्रातः 8:29 पर हो रहा है. साथ ही इसका समापन 25 सितंबर दिन शनिवार को प्रातः 10:00 बजकर 36 मिनट पर हो रहा है. संकष्टी चतुर्थी का व्रत करने वाले सभी जातकों को प्रातः उठ कर अपने घर की साफ सफाई करनी चाहिए. जिसके बाद नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बाद घर के मंदिर में भगवान गणेश की प्रतिमा के सामने घी का दीपक जलाएं.

गणेश जी की पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं.

'पूजा के दौरान भगवान गणेश की प्रिय वस्तुएं दूर्वा, मोदक उनको अर्पित करें और उनसे प्रार्थना करें. भगवान गणेश से कहें कि आप विघ्नहर्ता हैं. सभी संकटों को दूर करने वाले हैं और हमारे और हमारे परिवार के जीवन में जो भी कुछ संकट हो उसको दूर करें. हमारे परिवार को सुख -शांति ,समृद्धि और सौभाग्य प्रदान करें. ऐसा मन में विचार करके भगवान गणेश की पूजा अर्चना करें':- आचार्य कमल दुबे, धर्म गुरु

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाती है.

आचार्य कमल दुबे ने बताया कि इस व्रत में चंद्र दर्शन का विशेष महत्व है. जब चंद्रोदय हो जाए तो वह जातक चंद्र देव का दर्शन करें और उन्हें अर्घ्य दें उसके बाद अपने व्रत को खोलें. इस व्रत को करने वाले जातकों को भगवान गणेश के व्रत कथा को पढ़ना चाहिए और सुनना चाहिए. पुराणों में यह विदित है कि जो भी जातक इस व्रत के कथा को पढ़ता है और श्रवण करता है, उन्हें ही इस व्रत का पूर्ण फल मिलता है.

ये है कथा

आचार्य कमल दुबे ने बताया कि धार्मिक मान्यता के अनुसार बिना व्रत कथा सुने या पढ़े व्रत पूरा नहीं माना जाता और व्रत का फल नहीं मिलता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु जी की शादी मां लक्ष्मी जी से तय होती है. विवाह का निमंत्रण सभी देवी-देवताओं को दे दिया जाता है, लेकिन गणेश जी को निमंत्रण नहीं दिया जाता. विवाह के दिन सभी देवी-देवता अपनी पत्नियों के साथ विष्णु जी की बारात में पहुंच जाते हैं लेकिन किसी को गणेश जी वहां दिखाई नहीं देते. सभी आपस में गणेश जी के न आने की चर्चा करने लगते हैं. और इसके बाद भगवान विष्णु जी से गणेश के न आने का कारण पूछते हैं.

विघ्नराज संकष्टी चतुर्थी भी कहा जाता है.

भगवान विष्णु देवी-देवताओं के पूछने पर जवाब देते हैं कि गणेश जी के पिता जी भोलेनाथ को न्योता भेज दिया गया है. अगर उन्हें आना होता तो वे अपने पिता भगवान शिव के साथ आ जाते, अलग से न्योता देने की आवश्यकता नहीं है. वहीं, अगर गणेश जी आते हैं तो उन्हें सवा मन मूंग, सवा मन चावल, सवा मन घी और सवा मन लड्डू का भोजन दिनभर खाने के लिए चाहिए. दूसरों के घर जाकर इतना कुछ खाना अच्छी बात नहीं है. अगर गणेश जी नहीं आएंगे तो कोई बात नहीं. किसी ने विष्णु जी को सलाह दी कि गणेश जी आ भी जाएं, तो उन्हें द्वारपाल बना कर घर के बाहर बैठा देना. आप तो चूहे पर बैठकर बहुत धीरे-धीरे चलोगे तो पीछे रह जाएंगे. इसलिए घर के बाहर द्वारपाल की तरह बैठाना ही उन्हें सही रहेगा. सभी को ये सुझाव अच्छा लगा भगवान विष्णु को भी ये सुझाव अच्छा लगा.

गणेश जी का हुआ अपमान

गणेश विष्णु जी विवाह में पहुंच गए और सुझाव के अनुसार उन्हें घर की रखवाली के लिए घर के बाहर बैठा दिया गया. नारद जी ने गणेश जी से बारात में न जाने का कारण पूछा, तो उन्होंने कहा कि भगवान विष्णु ने मेरा बहुत अपमान किया है. नारद जी ने गणेश जी को सलाह दी कि आप अपनी मूषक सेना को आगे भेज दें, ताकि वो रास्ता खोद दें और उनका वाहन धरती में ही फंस जाए. तब आपको सम्मानपूर्वक बुलाना पड़ेगा. नारद जी की सलाह के अनुसार मूषक सेना ने धरती खोद और विष्णु जी का रथ उसी में फंस गया. लाख कोशिश के बाद भी तब उनका रथ नहीं निकला, तो नारद जी ने कहा कि- आपने गणेश जी का अपमान किया है अगर उन्हें मना कर लाया जाए, तो आपका कार्य सिद्ध हो सकता है.

भगवान शिव ने अपने दूत नंदी को भेजा और वे गणेश जी को लेकर आए. गणेश जी का आदर-सम्मान के साथ पूजन किया गया. तब रथ के पहिए निकले. पहिए निकलने के बाद देखा कि वे टूट-फूट गए हैं. अब उन्हें कौन सही करेगा? पास के खेतों में कुछ लोग काम कर रहे थे, उन्हें बुलाया गया. उन्होंने श्री गणेशाय नमः कहकर गणेश जी की वंदना की. देखते ही देखते सभी पहियों को ठीक कर दिया गया और देवतागगणों को भी सलाह दी कि किसी भी कार्य से पहले गणेश जी की पूजा करने से कार्य में कोई संकट नहीं आता. गणेश जी का नाम लेते हुए विष्णु जी की बारात आगे बढ़ गई और लक्ष्मी मां के साथ उनका विवाह संपन्न हो गया.

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