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अयोध्या से 5 ईंटें चंडीगढ़ लाए थे रामजी लाल तिलकधारी, 12 साल लड़ी कानूनी लड़ाई

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 7, 2024, 4:54 PM IST

Ram Mandir Pran Pratistha: चंडीगढ़ के राम जी लाल तिलकधारी उन कार सेवकों में से हैं, जिन्होंने अयोध्या में निकाली गई रथ यात्रा में हिस्सा लिया था. अयोध्या से वे पांच ईंट अपने घर में लेकर आए थे. इस बारे में जब पुलिस को पता चला, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके लिए उन्होंने 12 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी.

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अयोध्या से 5 ईंटें चंडीगढ़ लाए थे रामजी लाल तिलकधारी

अयोध्या से 5 ईंटें चंडीगढ़ लाए थे रामजी लाल तिलकधारी

चंडीगढ़: राम जी लाल तिलकधारी उन कार सेवकों में से एक हैं. जिन्होंने 1990 में अयोध्या में निकली गई रथ यात्रा में हिस्सा लिया था. अयोध्या से वे पांच ईंटें अपने घर में लेकर आए थे. इस बारे में जब पुलिस को पता चला, तो उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. 12 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद, आज वो अपने परिवार के साथ चंडीगढ़ के राम दरबार में रह रहे हैं. रामजी लाल तिलकधारी अपने आप को राम भक्त बताते हैं.

1990 में विश्व हिंदू परिषद ने आह्वान कर रथ यात्रा के लिए देश भर के हिंदुओं को कारसेवक के तौर पर अयोध्या बुलाया था. तब रामजी लाल बैरवा ने भी इसमें हिस्सा लिया था. उन्होंने बताया कि वो दिल्ली से होते हुए अयोध्या पहुंचे थे. चंडीगढ़ से कुल 6 लोगों इस रथ यात्रा में हिस्सा लिया था. ईटीवी भारत से बातचीत के दौरान रामजी लाल बैरवा ने बताया कि आजादी से पहले उनके बाप-दादा संघ परिवार से जुड़े थे. जिसके चलते उनकी भी संघ को लेकर विशेष रुचि थी.

उनका परिवार काश्तकारी का काम करता था. आजादी के बाद वो जयपुर आए. इसके बाद काम के सिलसिले में वो जयपुर से चंडीगढ़ आकर बस गए. पिछले 60 सालों से वो चंडीगढ़ में रह रहे हैं. उन्होंने बताया कि हमारा परिवार सनातन धर्म से जुड़ा है. राजमाता सिंधिया ने हमें 1990 में अयोध्या बुलाया और मैं अपने कुछ साथियों के साथ दिल्ली से होते हुए अयोध्या पहुंच गया. वहां बड़े-बड़े नेता भाषण दे रहे थे. राम की भक्ति को देखते हुए मैं वहां से 5 ईंटें लेकर आया था, ताकि वो ईंटें चंडीगढ़ में बनाए जा रहे विश्वकर्मा मंदिर में लगाई जा सकें.

ईंटों को मैंने लम्बे समय तक घर में ही रखा, लेकिन गिरफ्तारी के आदेश के बाद पुलिस ने मेरे घर के आस-पास घेरा बनाते हुए मुझे गिरफ्तार कर लिया. चंडीगढ़ के उस समय के एसएचओ चिम्मा से मेरी बहस हुई, क्योंकि उन्होंने मुझे बिना सबूत के गिरफ्तार किया था. क्योंकि मेरे पास ईंटे थी, तो पुलिस ने मुझसे ईंटें बरामद करते हुए मुझे एक महीने तक हवालात में रखा.

1992 में एक शिकायत के बाद मुझे पुलिस ने पकड़ा था. जिसके चलते 1993 में एक महीने के लिए मैं जेल में रहने के बाद वापस कुवैत लौट गया. 2006 में मैं हमेशा के लिए घर आ गया. उन्होंने बताया कि इस बीच उनके परिवार द्वारा उनके गैरमौजूदगी में कई तरह की मुश्किलें झेलनी पड़ी. उनकी पत्नी ने फैक्ट्री में काम किया. सिलाई की और चार बच्चों को पढ़ाया और उनकी शादियां की. राम जी बैरवा ने अपने आप को निर्दोष साबित करने के लिए 12 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी और 2 महीने की सजा भी काटी. इस दौरान किसी भी बीजेपी के नेता ने उन्हें कोई मदद नहीं दी. चंडीगढ़ की एक वकील ने उनका समय-समय पर साथ दिया और कानूनी लड़ाई से मुक्त करवाया. आज रामजी बैरवा की एक बेटी उनके साथ रहती है, दो बेटियों की शादी दिल्ली में हुई है और बेटा चंडीगढ़ डिस्ट्रिक्ट कोर्ट में वकील के तौर पर काम कर रहा है.

राम जी बैरवा आज इस सब का श्रेय अपनी धर्मपत्नी को देते हैं. उनका मानना है कि उनकी पत्नी ने जिस तरह परिवार को उनके बिना संभाला है. उसके लिए वो उनके आभारी हैं. राम जी बैरवा की पत्नी तुलसी देवी ने बताया कि उन्होंने अपने पति के गैरमौजूदगी में कई तरह की मुसीबत का सामना किया. उन्होंने फैक्ट्री में काम किया और बच्चों को पढ़ाया. उनकी तीन बेटियां और एक बेटा है.

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