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बिहार का वो गांव, जहां आजादी के लिए 11 लोगों ने दी थी शहादत

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Published : Jan 25, 2021, 8:19 PM IST

डिजाइन फोटो
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भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए देश के कई वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी, जिसमें पूर्व का सीतामढ़ी और वर्तमान शिवहर जिले का तरियानी छपरा गांव ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस गांव के 11 वीर सपूत 30 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की गोली से शहीद हुए थे. इस बलिदान और त्याग को लेकर इस गांव के लोग बेहद गौरवान्वित महसूस करते हैं.

पटना : देश की आजादी में तरियानी के छपरा गांव का योगदान अविस्मरणीय है. इस गांव के 11 लोगों ने आजादी की लड़ाई में कुर्बानी दी थी. जन सहयोग से यहां शहीदों की याद में शहीद स्मारक बनाया गया. कई सरकारें आयीं और चली गयीं, लेकिन किसी ने इसकी सुध नहीं ली. इस कारण स्थानीय लोगों में सरकार के प्रति आक्रोश है.

भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के लिए देश के कई वीर सपूतों ने अपनी जान की कुर्बानी दी थी, जिसमें पूर्व का सीतामढ़ी और वर्तमान शिवहर जिले का तरियानी छपरा गांव ने आजादी की लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इस गांव के 11 वीर सपूत 30 अगस्त 1942 को भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान अंग्रेजों की गोली से शहीद हुए थे. इस बलिदान और त्याग को लेकर इस गांव के लोग बेहद गौरवान्वित महसूस करते हैं.

'एक ही गांव के 11 लोगों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. लेकिन, इसके बावजूद सरकार की ओर से इन शहीदों की याद को सहेजने के लिए आज तक कोई प्रयास नहीं किया गया, जो बेहद ही शर्मनाक और दुखद है.'

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

इन लोगों ने दी थी शहादत
शहीदों के वंशज और जानकारों का कहना है कि 30 अगस्त 1942 की शाम अंग्रेज पूरी तैयारी के साथ बेलसंड के रास्ते बागमती नदी को पार कर तरियानी छपरा गांव पहुंचे और वहां मौजूद आंदोलनकारी के ऊपर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी, जिसमें छपरा गांव निवासी नवजद सिंह, भूपन सिंह, जय मंगल सिंह, परसन साह, बुधन महतो, बलदेव साह, सुखदेव सिंह, सुंदर राम, बंसी दास और छठु साह शहीद हो गए थे. जबकि, श्याम नंदन सिंह को झूठे मुकदमे में फंसाकर बक्सर सेंट्रल जेल भेज दिया गया था. जहां वह अनशन करते हुए 32वें दिन शहीद हो गए थे. जानकारों का कहना है कि जिन 10 लोगों को गोली मारी गई थी. उसमें से 9 लोग घटनास्थल पर ही शहीद हो गए थे. जबकि बुधन महतो 2 सितंबर 1942 को शहीद हुए थे.

'छपरा गांव के 11 वीर सपूतों ने देश की आजादी के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए थे. महात्मा गांधी के आह्वान पर इन वीर सपूतों ने अंग्रेजों को खुली चुनौती देते हुए बेलसंड थाने में तोड़फोड़ कर रजिस्ट्री ऑफिस के ऊपर तिरंगा लहराया था. जिसके बाद अंग्रेजों ने खुफिया तंत्र से जानकारी लेकर इन सभी आंदोलनकारियों की खोज में छपरा गांव की ओर बढ़ने लगे. उसी दौरान सभी शहीद वीर सपूतों ने नदी के ऊपर बने पुल को ध्वस्त कर दिया. ताकि अंग्रेज गांव तक न पहुंच सकें. लेकिन अंग्रेजों ने आनन-फानन में अस्थाई पुल का निर्माण कर शाम के वक्त छपरा पहुंचकर ग्रामीणों के ऊपर गोलियों की बौछार कर दी':- राकेश कुमार सिंह, समाजसेवी

घरों को कर दिया था आग के हवाले
इसके बाद अंग्रेजों ने ग्रामीणों के घरों में आग लगा दी. मवेशियों को उठा ले गए. ग्रामीणों के घर में रखे अनाजों को तहस-नहस कर दिया. अंग्रेजो के इस अत्याचार और जुल्म सहने के बाद भी श्याम नंदन सिंह अंग्रेजों से लोहा लेते रहे. बाद में अंग्रेजों ने उन्हें भी झूठे मुकदमे में फंसाकर बक्सर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया. जहां अनशन के 32वें दिन वे शहीद हो गए.

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गांव के 11 वीरों ने देश के लिए शहादत दी, लेकिन सरकार ने इन शहीदों की यादों को संवारने के लिए कोई काम नहीं किया. इस बात से गांव के लोगों के साथ शहीदों के वंशज भी नाराज हैं. उनकी मांग है कि इस स्थान को शहीदों की तीर्थस्थली बनाया जाए, जिससे देश भक्ति की लौ देशवासियों के दिलों में जलती रहे. फिलहाल, शहीदों के वंशजों की भूमि पर ही जन सहयोग से शहीद स्मारक, शहीद पुस्तकालय और शहीद उद्यान का निर्माण कराया गया है.

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