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कौन है हिमालय का अदृश्य योगी, जिसके इशारे पर चलती रहीं NSE की पूर्व CEO चित्रा रामकृष्ण

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Published : Feb 18, 2022, 4:32 PM IST

Cbi questioned chitra ramkrishna

सीबीआई ने एनएसई की पूर्व सीईओ चित्रा रामकृष्ण के मार्गदर्शक हिमालय का अदृश्य योगी की तलाश शुरू कर दी है. इस अनाम योगी के इशारे पर चित्रा रामकृष्ण प्रफेशनल और पर्सनल फैसले लेती रहीं. यानी देश का स्टॉक मार्केट वर्षों तक एक गुमनाम योगी के इशारे पर ही चलता रहा. जांच में शक की सूई उनके चीफ स्ट्रैटजिक एडवाइजर रहे आनंद सुब्रमण्यम की ओर घूम रही है. मगर बाबाओं के चक्कर में फैसले लेने वाली चित्रा रामकृष्ण अकेली शख्सियत नहीं हैं. भारत की राजनीति में सर्वोच्च सत्ता तक योगी और बाबाओं की पहुंच रही है.

नई दिल्ली :आयकर विभाग के छापे के बाद एनएसई की पूर्व सीईओ चित्रा रामकृष्ण सुर्खियों में हैं. चित्रा रामकृष्ण (Chitra Ram Krishna) पर आरोप है कि उन्होंने कथित रूप से हिमालय में रहने वाले एक अज्ञात योगी के साथ एनएसई (NSE) की गुप्त जानकारियां साझा कीं. सेबी (SEBI) की ओर से पूछताछ में खुद चित्रा रामकृष्ण ने खुलासा किया था कि एनएसई में सीईओ के पद पर रहने के दौरान उन्होंने योगी की ईमेल आईडी पर एनएसई की जानकारियां भी मेल की थी.

सेबी की रिपोर्ट के अनुसार अज्ञात योगी चित्रा को ई-मेल के जरिये निर्देश देता था कि उन्हें क्या करना है. तीन वेदों के नाम से बनी ई-मेल आईडी rigyajursama@outlook.com आईडी से चित्रा के पास ये मेल आते थे. बता दें चित्रा रामकृष्ण अप्रैल 2013 से दिसंबर 2016 तक NSE की MD और CEO थीं. खुद चित्रा ने सेबी को बताया कि वह अनाम योगी को शिरोमणि कहती थीं. उन्होंने उसे कभी नहीं देखा था मगर वह पिछले 20 साल से उससे मार्गदर्शन ले रही थीं. उन्होंने दावा किया था कि अनाम योगी अपनी इच्छानुसार कहीं भी प्रकट हो सकते थे.

जांच एजेंसी को शक है कि हिमालय का अनाम योगी कोई और नहीं, बल्कि चित्रा का चीफ स्ट्रैटजिक एडवाइजर आनंद सुब्रमण्यम ही है. आनंद सुब्रमण्यम उस ईमेल आईडी का पासवर्ड जानते थे, जिस पर चित्रा उस अज्ञात योगी को मेल भेजती थीं. उसने चित्रा रामकृष्ण के साथ धोखा करते हुए अपने लिए फायदे वाले फैसले करवाए.

2013 से 16 तक देश का स्टॉक मार्केट वर्षों तक एक गुमनाम योगी के इशारे पर ही चलता रहा.

एनएसई सीईओ के चीफ स्ट्रैटजिक एडवाइजर (CSA) बनने से पहले आनंद सुब्रमण्यम का सालाना पैकेज 14 लाख रुपये ही था. आनंद सुब्रमण्यम Balmer Lawrie और ICICI group के एक ज्वाइंट वेंचर में काम करते थे. मगर चित्रा ने उसे करीब डेढ़ करोड़ रुपये का सालाना पैकेज पर (CSA) नियुक्त किया. अनाम योगी की सलाह पर चित्रा ने आनंद को तीन साल में भारी-भरकम इन्क्रिमेंट दिया था. तीन साल के अंदर ही सुब्रमण्यम का पैकेज बढ़कर4.21 करोड़ रुपये तक पहुंच गया.

बताया जाता है कि चित्रा रामकृष्ण चेन्नई के एक योगी के संपर्क में थी, जिनकी अब मौत हो चुकी है. उस योगी से आनंद सुब्रमण्यम भी जुड़ा था. अभी तक की जांच में यह सामने आया है कि चित्रा रामकृष्णा को भेजे गए मेल का ऑथर भी आनंद ही है. हालांकि एनएसई की पूर्व सीईओ चित्रा का कहना है कि योगी अदृश्य शक्ति है, जो उनकी प्रार्थना पर उन्हें सलाह देती है. उसके इशारे पर ही उन्होंने अपने कार्यकाल में कई बड़े फैसले लिए और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज से जुड़ी जानकारियां साझा कीं. संस्थान से बाहर सूचना साझा करने के कारण चित्रा रामकृष्ण पर 3 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया गया है.

धीरेंद्र ब्रह्मचारी, जिनकी सलाह पर इंदिरा गांधी भी लेती थीं फैसले

70 के दशक में धीरेंद्र ब्रह्मचारी ताकतवर योगी माने जाते थे.

चित्रा रामकृष्ण भले ही अदृश्य बाबा के प्रभाव में आकर फैसले लेती रहीं हो. भारत की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत भी बाबाओं के आदेश को मानती रही है. सत्तर के दशक में योग गुरू धीरेंद्र ब्रह्मचारी काफी सुर्खियों में रहे. प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आध्यात्मिक गुरु के तौर पर ख्याति हासिल करने वाले धीरेंद्र ब्रह्मचारी के दरवाजे पर नेताओं की लाइन लगी रहती थी. माना जाता है कि आपातकाल के दौरान इसी आध्यात्मिक नेता के इशारे पर इंदिरा गांधी ने कई फैसले लिए. इस योगगुरु ने जम्मू के मानतलाई क्षेत्र में जिस योग केंद्र की स्थापना की थी. जून 1994 में उनका प्लेन क्रैश हो गया.

नरसिम्हा राव का आध्यात्मिक गुरु चंद्रास्वामी भी थे ताकतवर

चंद्रास्वामी के मुरीदों में न सिर्फ भारत बल्कि ब्रिटेन की पीएम भी शामिल रहीं.

ऐसे ही एक और बाबा चंद्रास्वामी की 1991 से 1996 तक खूब तूती बोलती थी. प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और नरसिंह राव के कार्यकाल के दौरान चंद्रास्वामी भी खूब चमके थे. उनके शिष्यों में न सिर्फ भारत के बल्कि दुनिया की जानी मानी हस्तियां भी शामिल थीं. ब्रिटेन की पीएम मार्गेट थैचर और हॉलीवुड एक्ट्रेस एलिजाबेथ टेलर का मार्गदर्शन करते रहे. नरसिंह राव के कार्यकाल में सरकार ने चंद्रास्वामी को कुतुब इंस्टीट्यूशनल एरिया में विश्व धर्मायतन संस्थान आश्रम बनाने के लिए जमीन भी दी थी. हालांकि बाद में हवाला केस और राजीव हत्याकांड में उनका नाम उछला. सरकार बदलने के साथ वह सत्ता के गलियारे से दूर चले गए.

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