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कश्मीर में 'शहीदी दिवस' पर तीसरे साल भी कोई कार्यक्रम नहीं हुआ आयोजित

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Published : Jul 13, 2022, 7:40 PM IST

Updated : Jul 13, 2022, 9:02 PM IST

जम्मू कश्मीर में तीसरे वर्ष भी शहीदी दिवस पर किसी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया. हालांकि विशेष राज्य का दर्जा खत्म होने के बाद से इस दिन को दी जाने वाली छुट्टी को खत्म कर दिया गया था. वहीं, पीएजीडी ने कहा है कि 13 जुलाई 1931 की ऐतिहासिक घटना को कभी नहीं मिटाया जा सकता, जब एक डोगरा शासक की सेना द्वारा की गई गोलीबारी में 22 कश्मीरी लोगों की मौत हो गई थी.

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श्रीनगर : जम्मू कश्मीर में 'शहीदी दिवस' पर लगातार तीसरे साल कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं किया गया. अधिकारियों ने बुधवार को यह जानकारी दी. एक डोगरा शासक की सेना द्वारा 13 जुलाई, 1931 को की गई गोलीबारी में 22 कश्मीरी लोगों की मौत हो गई थी जिन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए 'शहीदी दिवस' पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है. जब जम्मू कश्मीर पूर्ण राज्य था तब 13 जुलाई को सरकारी छुट्टी होती थी और हर साल इस दिन एक सरकारी कार्यक्रम आयोजित किया जाता था जिसमें मुख्यमंत्री या राज्यपाल मुख्य अतिथि होते थे.

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हालांकि, पांच अगस्त 2019 को जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने और इसे दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद 2020 में सरकारी छुट्टियों की सूची से इस दिन को हटा दिया गया था. अधिकारियों ने कहा कि शहर में कब्रिस्तान में किसी भी कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया और बुधवार को लगातार तीसरे साल छुट्टी नहीं रही. उन्होंने बताया कि इस साल मुख्यधारा की किसी भी राजनीतिक पार्टी का कोई भी नेता कब्रिस्तान नहीं गया. उन्होंने बताया कि लोगों की आवाजाही पर कोई रोक नहीं थी.

'13 जुलाई, 1931 की ऐतिहासिक घटना को कभी नहीं मिटाया जा सकता'
इस बीच गुपकार घोषणापत्र गठबंधन (पीएजीडी) ने कहा है कि 13 जुलाई 1931 की ऐतिहासिक घटना को कभी नहीं मिटाया जा सकता जब एक डोगरा शासक की सेना द्वारा की गई गोलीबारी में 22 कश्मीरी लोगों की मौत हो गई थी. पीएजीडी ने जम्मू-कश्मीर की जनता से बेहतर और सम्मानजनक जीवन के लिए मिलकर आवाज उठाने की भी अपील की.

नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) और पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) समेत छह राजनीतिक दलों के गठबंधन पीएजीडी ने कहा कि 91 साल पहले आज ही के दिन निरंकुशता के खिलाफ आवाज उठाने वाले 22 लोग शहीद हो गए थे. पीएजीडी के प्रवक्ता एमवाई तारिगामी ने एक बयान में कहा कि उन लोगों के सर्वोच्च बलिदान ने क्षेत्र में एक नए युग की शुरुआत की. तारिगामी ने कहा कि इस ऐतिहासिक घटना को कभी मिटाया नहीं जा सकता.

इससे पहले, नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) ने कहा कि उसने 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के वास्ते कब्रिस्तान जाने की अनुमति के लिए श्रीनगर के जिलाधिकारी के यहां आवेदन किया था लेकिन उन्हें अनुमति नहीं दी गई. एक बयान में नेकां के प्रमुख एवं सांसद फारूक अब्दुल्ला और पार्टी के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने 1931 के शहीदों को श्रद्धांजलि दी और 13 जुलाई को जम्मू कश्मीर के इतिहास में एक अहम दिन बताया.

पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की अगुवाई वाली पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) ने भी 13 जुलाई के शहीदों को श्रद्धांजलि दी. पार्टी ने ट्वीट किया, 'शहीदों ने अपने खून से जम्मू कश्मीर के इतिहास में एक नया अध्याय लिखा जिसने लोगों को स्वतंत्रता एवं गरिमा के लिए प्रेरित किया. हम उन्हें श्रद्धांजलि देते हैं और जम्मू कश्मीर के गौरव को फिर से कायम करने की कोशिश के प्रति अपने संकल्प को दोहराते हैं.' श्रीनगर के महापौर और 'अपनी पार्टी' के नेता जुनैद अज़ीम मट्टू ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी.

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Last Updated :Jul 13, 2022, 9:02 PM IST

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