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अफगानिस्तान पर बैठक की मेजबानी करने को तैयार ईरान, भारत को नहीं मिला न्योता

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Published : Oct 26, 2021, 4:00 PM IST

अफगानिस्तान पर मास्को प्रारूप बैठक के बाद तालिबान शासन की भागीदारी व अफगानिस्तान के मुद्दे पर 27 अक्टूबर (बुधवार) को ईरान क्षेत्रीय बैठक की मेजबानी करने वाला है. हालांकि इस बैठक के लिए भारत को आमंत्रित नहीं किया गया है. क्या हैं इसके मायने? पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

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नई दिल्ली :ईरान की अगुवाई में होने वाली इस बैठक में ईरान ने चीन, रूस, पाकिस्तान, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान के विदेश मंत्रियों और राजनीतिक प्रतिनिधियों को अफगानिस्तान में समावेशी सरकार के गठन और अन्य मुद्दों पर चर्चा के लिए आमंत्रित किया है.

काबुल में ईरान के दूतावास द्वारा जारी प्रेस बयान के अनुसार पड़ोसी देशों प्लस रूस की दूसरी बैठक बुधवार 27 अक्टूबर को तेहरान में होगी और इसकी मेजबानी इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान द्वारा की जाएगी. यह बैठक चर्चा के दूसरे दौर के रूप में होगी क्योंकि पहली बैठक की मेजबानी पाकिस्तान ने 8 सितंबर 2021 को की थी.

ईरान दृढ़ता से मानता है कि एक स्थिर, सुरक्षित और विकसित अफगानिस्तान, समृद्ध और टिकाऊ अर्थव्यवस्था के साथ अपने सभी पड़ोसियों, विशेष रूप से ईरान के इस्लामी गणराज्य के हितों को सुनिश्चित करेगा.

क्या है इस बैठक का महत्व

ईरान द्वारा आयोजित की जाने वाली परामर्श बैठक मास्को प्रारूप संवाद के बाद दूसरी सबसे बड़ी क्षेत्रीय बैठक है. जिसमें भारत की भागीदारी नहीं होगी. ईरान ने भारत को बैठक के लिए आमंत्रित नहीं किया है. ईरान ने तालिबान के प्रतिनिधियों को आमंत्रित नहीं किया है.

विदेश मंत्रालय के अनुसार अफगानिस्तान पर 10 देशों के मास्को प्रारूप संवाद के दौरान तालिबान प्रतिनिधियों ने विदेश मंत्रालय में संयुक्त सचिव जेपी सिंह के नेतृत्व में एक भारतीय प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात की.

कल ईरान द्वारा आयोजित होने वाली बैठक से भारत का बहिष्कार इस बात का संकेत है कि ऐसा करने से ईरान, इजरायल, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात के साथ भारत की हालिया क्वाड बैठक पर नाराजगी जताना चाहता है. हालांकि इस पर अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

ईटीवी भारत से बात करते हुए विदेश नीति विशेषज्ञ और ओआरएफ में अनुसंधान निदेशक प्रोफेसर हर्ष वी पंत ने कहा कि ऐसा लगता है कि संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका और इजराइल के साथ भारत का जुड़ाव, बैठक में भारत को शामिल न करने का संभावित कारण है.

निश्चित रूप से भारत को इस प्रतिक्रिया का पता लगाना होगा क्योंकि भारत के लिए विशेष रूप से अफगानिस्तान में ईरान का समर्थन महत्वपूर्ण है. इसी तरह ईरान के लिए भी भारत का समर्थन आवश्यक है. अगर ईरान को विश्वसनीय अफगान नीति बनाना है तो उसे भारत जैसे साझेदारों को शामिल करना होगा.

हालांकि हमें इंतजार करना होगा और देखना होगा कि यह कैसे होता है. फिलहाल ईरान, मध्य पूर्व में भारत की पहुंच के लिए अपनी नाराजगी का संकेत दे सकता है. इस महीने की शुरुआत में विदेश मंत्री एस जयशंकर ईरानी प्राधिकरण के साथ द्विपक्षीय वार्ता करने के लिए इजराइल गए थे. वहां उन्होंने इजरायल के वैकल्पिक प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री यायर लैपिड से मुलाकात की. उन्होंने इजरायल के राष्ट्रपति से भी मुलाकात की.

तेहरान की कल होने वाली बैठक से तालिबान पर अंतरराष्ट्रीय दबाव बढ़ने की उम्मीद है. ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अफगानिस्तान से आतंकवाद पैदा न हो और अफगानिस्तान की धरती का इस्तेमाल किसी भी तरह के आतंकवादी कृत्य के लिए न किया जा सके.

बैठक में इस बात पर ध्यान दिया जाएगा कि कैसे पड़ोसी राज्य सभी जातीय समूहों की भागीदारी के साथ-साथ अफगानिस्तान में शांति और सुरक्षा के भविष्य के साथ अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार के गठन में योगदान दे सकते हैं.

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यह ध्यान देने योग्य है कि भारत, अफगानिस्तान और संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कई बहुपक्षीय मंचों का हिस्सा रहा है. भारत ने अफगानिस्तान पर अपना रुख बार-बार दोहराया है और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से वांछित परिवर्तन लाने के लिए एक एकीकृत प्रतिक्रिया बनाने का आह्वान किया है.

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