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अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस : जानिए इसके उद्देश्य और महत्व के बारे में

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Published : Jan 24, 2022, 9:23 AM IST

आज शिक्षा सतत विकास लक्ष्यों के केंद्र में है. हमें असमानताओं को कम करने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है. हमें लैंगिक समानता हासिल करने और बाल विवाह को खत्म करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है.

international day of education
अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस

हैदराबाद : शिक्षा एक मानवीय अधिकार है. एक सार्वजनिक अच्छाई और एक सार्वजनिक जिम्मेदारी है. संयुक्त राष्ट्र महासभा ने शांति और विकास के लिए शिक्षा की भूमिका के उत्सव के रूप में 24 जनवरी को अंतरराष्ट्रीय शिक्षा दिवस (international day of education) के रूप में घोषित किया है. सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा और आजीवन अवसरों के बिना देश लैंगिक समानता प्राप्त करने और गरीबी के चक्र को तोड़ने में सफल नहीं होंगे. जिससे लाखों बच्चे, युवा और वयस्क पीछे होते जा रहे हैं.

आज शिक्षा सतत विकास लक्ष्यों के केंद्र में है. हमें असमानताओं को कम करने और स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है. हमें लैंगिक समानता हासिल करने और बाल विवाह को खत्म करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है. हमें अपने संसाधनों की सुरक्षा के लिए शिक्षा की आवश्यकता है. हमें नफरत की भाषा, जेनोफोबिया और असहिष्णुता से लड़ने के लिए और वैश्विक नागरिकता का पोषण करने के लिए शिक्षा की आवश्यकता है.

शिक्षा एक मानवीय अधिकार है

मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा के अनुच्छेद 26 में शिक्षा का अधिकार निहित है जो कि मुफ्त और अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा के लिए कहता है. बाल अधिकारों पर कन्वेंशन 1989 में अपनाया गया. शिक्षा सतत विकास की कुंजी है. जब सितंबर 2015 में सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा अपनाया गया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय ने माना कि शिक्षा सभी की सफलता के लिए आवश्यक है. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और 2030 तक सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना.

सार्वभौमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए चुनौती

शिक्षा बच्चों को गरीबी से बाहर निकलने और एक आशाजनक भविष्य की राह प्रदान करती है. लेकिन दुनिया भर में लगभग 265 मिलियन बच्चों और किशोरों को स्कूल में प्रवेश करने या पूरा करने का अवसर नहीं है. 617 मिलियन बच्चे और किशोर बुनियादी गणित नहीं पढ़ पाते हैं. उप-सहारा अफ्रीका में 40% से कम लड़कियों ने निम्न माध्यमिक स्कूल पूरा किया और कुछ चार मिलियन बच्चे और युवा शरणार्थी स्कूल से बाहर हैं. शिक्षा के उनके अधिकार का उल्लंघन किया जा रहा है और यह अस्वीकार्य है. सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा और आजीवन अवसरों के बिना देश लैंगिक समानता प्राप्त करने और गरीबी के चक्र को तोड़ने में सफल नहीं होंगे जो लाखों बच्चों, युवाओं और वयस्कों को पीछे छोड़ रहा है.

तथ्य और आंकड़े क्या कहते हैं

विकासशील देशों में प्राथमिक शिक्षा में नामांकन 91 प्रतिशत तक पहुंच गया है, लेकिन 57 मिलियन प्राथमिक आयु के बच्चे स्कूल से बाहर हैं. आधे से अधिक बच्चे जिन्होंने स्कूल में दाखिला नहीं लिया है जो कि उप-सहारा अफ्रीका में रहते हैं. प्राथमिक विद्यालय की उम्र के 50 प्रतिशत आउट-ऑफ-स्कूल बच्चे संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में रहते हैं.

शिक्षा पर कोविड-19 का प्रभाव

संयुक्त राष्ट्र के शैक्षिक, वैज्ञानिक और सांस्कृतिक संगठन (यूनेस्को) के अनुसार महामारी के कारण 11 मिलियन लड़कियां अकेले इस साल स्कूल नहीं आएंगी. मलाला फंड द्वारा संकलित एक रिपोर्ट के अनुसार गरीब समुदायों में अनुमानित 20 मिलियन माध्यमिक स्कूल की लड़कियां महामारी के समाप्त होने के बाद स्कूल से बाहर हो सकती हैं. महामारी से 25,000 बच्चों और वयस्कों के अनुभव के आधार पर पिछले साल सेव द चिल्ड्रन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि गरीब घरों के 1% से कम बच्चों को दूरस्थ शिक्षा प्राप्त हुई. कोविड-19 के आर्थिक प्रभावों के परिणामस्वरूप दुनिया भर में बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं. सेव द चिल्ड्रेन का अनुमान है कि 9.7 मिलियन बच्चे हमेशा के लिए स्कूल छोड़ सकते हैं.

न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार 2020 में लाखों बच्चों को बाल श्रम के लिए मजबूर किया गया था, क्योंकि कोविड-19 का प्रभाव अर्थव्यवस्थाओं पर जारी है. संघर्ष और संकट प्रभावित क्षेत्रों में रहने वाले कुछ 75 मिलियन बच्चों को पहले से ही शिक्षा तक पहुंचने में भारी बाधाओं का सामना करना पड़ता है. कोविड-19 महामारी की वजह से दुनिया अब चुनौतियों का सामना कर रही है और दुनिया भर में हाशिए पर खड़े बच्चों का भविष्य को खतरे में डाल रही है.

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