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आठवीं बरसी: ईटीवी भारत ने की निर्भया केस की वकील से खास बातचीत

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Published : Dec 16, 2020, 6:52 AM IST

Updated : Dec 16, 2020, 8:05 AM IST

साल 2012 में दरिंदगी का शिकार हुई निर्भया की आत्मा को शांति सात साल बाद मिली. साल 2020 में जब चारों दोषियों को फांसी के फंदे पर लटकाया गया तो पूरे देश ने इसे न्याय की जीत बताया. पढ़ें आठवीं बरसी पर निर्भया केस की वकील रही सीमा कुशवाहा के साथ ईटीवी भारत की खास बातचीत जिसमें उन्होंने पोर्न साइट्स, लिव-इन, एलजीबीटी कानूनों पर भी अपनी बेबाक राय रखी.

nirbhaya case
खास बातचीत

सवाल-निर्भया केस में जो फैसला लिया गया, उसने सजा के लिहाज से एक इतिहास रचा था और इस इतिहास को रचने में आपका एक अहम योगदान रहा है. आज इस जर्नी को जब आप पीछे मुड़कर देखती हैं तो क्या विचार अपके मन में आते हैं?

निर्भया केस की वकील से खास बातचीत

जवाब- जिस तरीके से निर्भया के साथ जो हुआ, जो छह अपराधी थे. जिमनें से चार को सजा दी गई थी. इस फैसले से मुझे संतुष्टि हुई, कि कम से कम बेटी ने जो चाहा था कि इन्हें जिंदा जलाया जाए, लेकिन वो प्रावधान नहीं है, फांसी की सजा का प्रावधान आईपीसी में है, जिसके तहत उनको सजा दी गई, लेकिन दर्द अभी भी कम नहीं हुआ है.

आज का जो दिन है 16 दिसंबर, इस दिन को लेकर मन में एक ख्याल आता है, काश हमारी बेटी जिंदा होती. मैं उन दोषियों को फांसी ना दिलाती. तो बहुत सारे सवाल खड़े हो जाते हैं कि इंसान की एक नेचुरल डेथ होती है, इंसान किसी बिमारी से मरता है, लेकिन इस तरह की डेथ किसी की और वो भी हमारे देश में जहां हम कहते हैं कि हमारे यहां स्त्रियां देवी के समान पूजी जाती हैं.

8:30 बज रहे थे, दिल्ली की सड़क जो हमारी राजधानी कही जाती है. वहां एक घंटे तक उस बेटी को रौंदा गया. उसके शरीर के हिस्सो को तहस नहस किया गया. तो इतने सारे सवाल है कि आखिर यह माहौल ऐसा क्यों है? ऐसे क्राइम हो क्यों रहें हैं? हम कितने लोगों को सजा दिलाएंगे? क्या कानून के माध्यम से इसे रोका जा सकता है? क्या समाजिक बदलाव कि आवश्यकता नहीं है?

निर्भया केस की वकील से खास बातचीत

सवाल- सामाजिक प्रवृत्ती, महिलाओं के तरफ देखने का नजरिया या लचर कानून. किसे आप एक मुख्य कारण मानती है? जिसकी वजह से आज भी ऐसी घटनाएं नहीं रुकी हैं?

जवाब-अगर हम देखें तो दोनों ही इस समस्या के कारण है. क्योंकि जो कानून का ढांचा है वो इसी समाज का है और ये समाज एक पुरुष प्रधान समाज है और ऐसे अपराध केवल रास्तों पर नहीं बल्कि घर के अंदर भी हो रहें हैं. एक केस का मैं एग्जामपल दूं, जहां एक स्त्री का दुष्कर्म उसके ही जेठ ने किया था और उसके पती को ये बात पता थी. ऐसे केस में तो मानसिकता ही दोष दिया जा सकता है.

एक तरह से ये कानून की विफलता ही है कि हम ऐसी मानसिकता को बदल नहीं पा रहें हैं, लेकिन जो लोग सिसटम को अपने हिसाब से मेनूपुलेट करते है, तो उनके लिए तो समाजिक मानसिकता ही मुख्य कारण है. न्यायपालिका हो या पुलिस ये उसी समाज से आते जो जहां से ये सारे अपराधी आते हैं.

इसलिए 16 दिसंबर के बाद हमने वर्मा कमीशन लाया, जो आज तक लागू नहीं किए गए. हमने आईपीसी,सीपीसी,जुवेनाइल जस्टिस एक्ट में बदलाव किया, लेकिन आज तक उन्हें लागू नहीं किया गया. यही वजह है कि आज तक लोगों के सोच में बदलाव आया और ना ही अपराधियों में डर आया है.

निर्भया केस की वकील से खास बातचीत

सवाल-कानून को सक्त बनाने से ये समाज के अंदर विभेद पैदा करेगें, साथ ही लोगों का मानना है कि इसका दुरुपयोग भी बढ़ जाएगा. ये सारी बातें कहा तक सही है?

जवाब-किसी भी केस में कनविक्शन रेट ज्यादा है तो वो केस कम होने चाहिए लेकिन ऐसा नहीं है. क्योंकि कई केस में सेटलमेंट कर दी जाती है, जिससे कि अपराधी के मन में डर नहीं रहता. जो आगे चलकर ऐसे कई अपराध करता है. हमारे कानून के अनुसार रेप केस में फांसी नहीं दी जाती है. रेप और हत्या के बाद ही हमारा कानून फांसी की सजा देता है.

अगर रेप करने के छह महिने के अंदर ही अगर अपराधी को सजा मिलती है तो रेप के केस में कमी आ सकती है, लेकिन हम यहीं फैल हो जाते हैं. हम सॉल्यूशन से ज्यादा ओपिनियन पर ध्यान देते है. जहां दो साल की सजा होनी चाहिए, वहां केस 10 साल कोर्ट मे चलता है और वो अपराधी बेल पर बाहर होता है.

पढ़ें:दिल्ली की दरिंदगी को 13 साल बीते, निर्भया की मां ने फास्ट ट्रैक कोर्ट पर किए सवाल

सवाल-नेताओं के विचार हमारे समाज के विचार को प्रभावित करते रहें हैं और ऐसे मामलो में नेता भी अक्सर संवेदनहीन विचार रखते दिखें है. निर्भया केस के बाद आप इसे कैसे देखती है?

जवाब-एक नेता को सुनने वाले उनका कहा मानने वाले कई लोग होते है. वो जो भी कहते है या करते है, उसे मानने वाले भी यह मान बैठते हैं कि वो भी ऐसा कर सकते है. पार्लियामेंट में कानून बनाना और उससे अलग जन में अपनी सोच रखना. दो अलग बात है और जब बात ही अलग होगी तो कानून बन तो जाएंगे, लेकिन इसे मानने वाला कोई नहीं होगा.

उत्तर प्रदेश के सपा संसाद आजम खान, अभिनेत्री और राजनीतिज्ञ जयाप्रदा के लिए भद्दे शब्दों का प्रयोग करते है. पत्रकार अपनी महिला सहकर्मी के साथ गलत व्यवहार करते है और पुलिस रेप करते है. कानून बनाने वाले से लोकर इसे लागू करवाने वालो तक ही ऐसी दशा है. तो कानून का डर कैसे मुमकिन है? केवल अपने काम के प्रती ईमानदारी ही ऐसी घटनाओं का समाधान है.

निर्भया के बाद बड़े दुषकर्म के मामले

सवाल- महिला आयोग को सशक्त करने की मांग को लेकर आपकी क्या राय है?

जवाब-देश में कई महिला आयोग संगठन ऐसे है जो पॉलिटिक्स से प्रभावित हैं, जिसकी वजह से वो अपना काम ईमानदारी से नहीं पूरा करती है. 2017 में मेरी मुलाकात राजनाथ सिंह से हुई थी, जो उस वक्त गृह मंत्री थे. मैंने उनसे महिला सुरक्षा गारंटी अधिनियम पास करने की बात रखी थी, जिसमें सरकार पीड़ित महिला को गारंटी देती है कि वो उसकी हर तरीके से मदद करेगी, लेकिन उस वक्त इस अधिनियम को पास नहीं किया जा सका.

सवाल-कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बना था, दहेज के विरुद्ध अपराधों के लिए बना था, दहेज खत्म नहीं हुआ और यह भी शिकायतें आती हैं कि कानून का दुरुपयोग हो रहा है, गारंटी मिल जाएगी, लेकिन दुरुपयोग होता तो कैसे रोकेंगे?

जवाब- दुरुपयोग हो रहा है इन कानून का, इन्हें रोकना सबसे ज्यादा जरूरी है, लेकिन सबसे ज्यादा जिम्मेदारी हमारी जांच एजेंसियों की है. जितना ये एक्टिव होंगे, जितने अच्छे तरीके से यह काम करेंगे, उससे ही तय हो जाएगा कि कौन सही, कौन गलत, मगर हमारी एजेंसियों के पास टेक्नोलोजी नहीं हैं वो संवेदनशील भी नहीं है, सुविधाएं भी नही मिलती, इनकी वजह से वो फैसला आना चाहिए था, वो नहीं आता.

जिस लड़की ने केस किया है वो स्ट्रोग फैमिली बैकग्राउंड से है, वो पैसे देकर भी झूठा केस करवा देती है तो बात वही है कि सिस्टम पर सवाल खड़े हो जाते हैं.

निर्भया के बाद बड़े दुषकर्म के मामले

सवाल- कानून का आपने बारिकी से देखा है कुछ ऐसे ही मामले हैं जो महिला विरुद्ध अपराधों को बढ़ाते हैं, मसलन पोर्न साइट्स, कोई चैक बेलेन्स का सिस्टम नहीं है. कभी कभी देश की सरकारें अपना टेक लेती है, लेकिन व्यापक रूप से नहीं. क्या कहेंगी इस पर...

जवाब- आपके पहले सवाल से मैं पूरी तरह से सहमत हूं, जितनी पोर्न साइड्स उपलब्ध हैं, बच्चों को हमनें सेक्स एजुकेशन नहीं दी है. वो नेट के माध्यम से ऐसी चीजें देख रहे हैं, जिन्हें मालूम नहीं है, वो बातें उनके माइड में जा रही है, वो उनके हाथों अपराध करवाएंगे. हमें वाकई इनका रेग्यूलेशन ठीक से होना चाहिए. स्ट्रीक्ट लॉ बनना चाहिए.

बच्चा अपना मेल आई डी बना रहा है, कैसे बना रहा है, इस पर ध्यान दें. बच्चे गलत इस्तेमाल करें, इस पर उनसे बात करने की जरूरत है. आजकल बच्चों को पता है कि किस टेक्नोलॉजी का किस तरह इस्तेमाल करना है. बच्चे समाज में अनुपलब्ध सामग्री की ओर ज्यादा आकर्षित होते हैं. इसीलिए मैं यह मानती हूं कि सख्त कानून और उस पर अमल का सिस्टम बनें. चाइल्ड पोर्न साइड्स व अन्य ऐसी साइट्स देखने वालों की ऐसी ही मानसिकता बनेगी और वो ऐसे ही अपराध करेंगे.

निर्भया केस की वकील से खास बातचीत

सवाल- लिविंग रिलेशनशिप, एलजीबीटी जैसे कानून पर क्या कहेंगी...समाज खुले रूप में इसे नहीं स्वीकार रहा, लेकिन कानून लागू है, ऐसे में समाज और कानूनी प्रावधान टकराव की स्थितियों मे आ जाते हैं.

जवाब- लिव इन रिलेशनशीप में एक एडल्ट पर्सन ने तय किया कि वो लीव इन में जाना चाहता है और उस पर यह भी बाध्यता नहीं है कि वो मैरिड है या नहीं. तो आपको देखना होगा कि एक घर टूट रहा है. लीव इन और शादी के कानून दोनों अलग स्थितियां है, लेकिन लीव इन में एक तरह से एक्ट्रा मेरिटल की अनुमति भी दे देता है. यह कानून गैर शादीशुदा लोगों के लिए ही बनना चाहिए था.

दुनिया में बाकी देशों में समाज विकसित हुआ, लोग प्रोग्रेसिव माइंड के हुए, तब कानून बना. ग्लोबलाइजेशन में हमनें उनकी सोसाइटी की कुछ चीजों को एक्पेरिमेंटल के बिना ही लागू कर दिया. इसे प्रोग्रेसिव लॉ कहा गया लेकिन इसका नुकसान ज्यादा है. लीव इन रिलेशनशिप एक ट्रांजिक्शन पीरियड से गुजर रहा है. हमनें कानून को लिबरल किया, लेकिन सोसायटी लिबरल नहीं हो रही है.

आप ऐसा एजुकेशन नहीं दे रहे हैं, आपका सिस्टम उतना विकसित नहीं है. तब तो यह समस्या हमेशा बनी रहेंगी. हमें सारी चीजों को पूरी तरह से बदलना होगा, तब लीव इन जैसे कानून कारगर होंगे. प्रोग्रेसिव लॉ के नाम पर ऐसी चीजें ला रहे हैं, जहां हमारा समाज इसके लिए तैयार ही नहीं है. यहीं पर हमें ऐसे कानूनों का लाभ नहीं मिल पाता है. इन्हीं सारी चीजों की वजह से हम फॉल्स केस झेलते हैं.

Last Updated : Dec 16, 2020, 8:05 AM IST

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