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MP: सुपरस्टार कंवलजीत ने क्यों कहा एक्टर को नहीं मिलती पेंशन, बोले- भाषा रीजन की होती है रिलीजन की नहीं

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Published : Jan 19, 2023, 10:15 PM IST

फिल्म की दुनिया हो या फिर खेल का मैदान कोई भी फील्ड हो जहां व्यक्ति अपना रास्ता खुद से तय कर बिना किसी सहारे के अपनी मंजिल को पा लेता है उसके बारे में हर किसी को जानने की दिलचस्पी मन में होती है. तो आइए देखते हैं सिनेमा के ग्लैमर से अलग पहचान बनाने वाले कंवलजीत सिंह की कहानी उन्हीं की जुबानी में.

kanwaljeet singh interview
कंवलजीत सिंह इंटरव्यू

कंवलजीत सिंह इंटरव्यू

भोपाल।सिनेमा के ग्लैमर से अलग इस पेशे के संघर्ष और बुनियाद की बात वही कर सकता है जिसने इस पेशे के उतार चढ़ाव को बखूबी देखा हो. अपनी कद काठी के साथ उर्दू पर अपनी मजबूत पकड़ की वजह से सिनेमाई भीड़ में अलग खड़े कंवलजीत सिंह ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा एक्टर को पेंशन तो मिलती नहीं कि, उसका रिटायरमेंट तय किया जाए. मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के जलसे जश्न-ए-उर्दू में शामिल होने भोपाल पहुंचे कंवलजीत ने उर्दू को लेकर कहा कि, भाषा रीजन की होती है रिलीजन की नहीं. कंवलजीत की 6 फिल्में इस साल रिलीज होनी हैं. थियेटर में भी इन दिनों वे शबाना आजमी के साथ कैफी और मैं इस प्ले का मंचन कर रहे हैं.

समाज और सिनेमा के बीच जुबान का लेन देन: कंवलजीत सिंह ये नाम सुनते ही सत्ते पे सत्ता और अशांति जैसी फिल्में आपके जहन में आएंगी. छोटे पर्दे पर आए बुनियाद और फरमान जैसे धारावाहिक, सिनेमा में अच्छी कद काठी के साथ कंवलजीत सिंह की पहचान एक ऐसे अभिनेता के तौर पर होती है. जिनकी भाषाई पकड़ बहुत मजबूत रही है. बड़े पर्दे से ज्यादा छोटे पर्दे के जरिए लोगों को दिलों पर राज करने वाले कंवलजीत से ईटीवी भारत ने जब सिनेमा की भाषा के समाज पर असर का सवाल उठाया तो जवाब आया ये एकतरफा नहीं होता. कंवलजीत ने कहा अगर सिनेमा की भाषा समाज तक पहुंच रही है. इसके उलट ये भी है कि ऑडियंस क्या बोल रही है किससे मुत्तासिर है. इसका ख्याल सिनेमा में भी रखा जाता है. तो सिनेमा का ही असर नहीं होता हमेशा. ऑडियंस का भी असर हम पर पड़ता है. तो ये असल में एक्सचेंज ऑफ द आइडिया है दोनों के बीच.

छोटे पर्दे के सुपरस्टार कंवलजीत

भाषा रीजन की होती है रिलीजन की नहीं:मध्यप्रदेश उर्दू अकादमी के जलसे जश्न ए उर्दू के आयोजन में फिल्म एक्टर कंवलजीत सिंह उर्दू ज़ुबान सिनेमा और थियेटर में शामिल होने भोपाल पहुंचे थे. इस मौके पर उन्होने ऊर्दू को एक रिलीजन की भाषा के तौर पर पहचान दिए जाने को लेकर सवाल उठाया और कहा कि कोई भी भाषा किसी रीजन की हो सकती है, लेकिन रिलीजन की नहीं. उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि बंगाल में रहने वाले मुस्लिम समाज का कोई व्यक्ति अगर बंगाली बोलता है तो बंगाली उसके रिलीजन की भाषा कहां से हो गई. पंजाब की मिसाल ले लीजिए किसी मजहब का हो बोलता पंजाबी ही है. कंवलजीत जोड़ते हैं ये है बेशक कि अलग अलग लहजे हैं. साऊथ इंडियन लहज़ा अलग है. पंजाबी अलग बंगाली अलग और हकीकत में ये ही फ्लेवर है भारत का. ये जो एक्सेंट हैं अलग अलग ये ही तो खूबसूरती है. अब यूपी की तरह ही खड़ी बोली लगातार बोली जाएगी तो बोरिंग हो जाएगा मामला.

एक्टर्स के पास पेंशन नहीं: ईटीवी भारत से बातचीत में अभिनेता कंवलजीत ने कोरोना की शुरुआत के उस मामले का भी जिक्र किया कि जब सक्रमण का हवाला देकर 65 साल और उससे ज्यादा उम्र के अभिनेताओं की स्टूडियों में जाने को लेकर रोक लगा दी गई थी. कंवलजीत ने कहा कि, उस वक्त ऐसा हुआ कि 65 साल से ऊपर केलोग काम नही कर सकते. स्टूडियो में नहीं आ सकते. हमने तब कहा था कि, गारंटी दे दें कि 64 साल का जो होगा उन्हें कोरोना नहीं होगा. कंवलजीत ने बेबाकी से कहा कि एक्टर्स के पास पेंशन है नहीं कि रिटायरमेंट हो भी जाए तो बेफिक्र रहें. या फिर पता होतो एक्टर इतनी सेविंग कर ले. अचानक आपने फुलस्टॉप लगा दिया. चलिए हमारी तो कोई दिक्कत नहीं उनका क्या होगा जो डेलीवेजनर हैं उनका क्या हाल हुआ होगा. हम सब इसके खिलाफ इकट्ठे हुए. और हमारे साथ के एक पाण्डे जी हैं वो मामले को अदालत लेकर गए. फिर कोर्ट ने कहा कि ये गलत है और तब जाकर मामला खत्म हुआ.

एक्टर्स के पास पेंशन नहीं

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65 पार फिल्में और थियेटर:अभिनेता कंवलजीत की 6 फिल्में पूरी हो चुकी हैं. इसी साल उनकी रिलीज होने वाली है. वे बताते हैं कि थियेटर में भी काम कर रहे हैं. कंवलजीत कहते हैं मैने तो जिंदगी में पहली बार एक प्ले जिंदगी में किया था आखिरी शमा. काफी डर के किया था. क्योंकिं उसके पहले कभी थियेटर किया नहीं. इसमें गालिब का किरदार निभाया था. उसके बाद अब शबाना के साथ मैं और कैफी प्ले कर रहे हैं. इसमें हम दोनों कहानी पढ़ के सुनाते हैं. बाकी छै फिल्में हैं जो इस साल आनी हैं.

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