वाराणसी :रोशनी के पर्व दीपावली का उल्लास है. इस बार का यह त्योहार बेहद खास है. हर शख्स प्रकाश पर्व की खुमारी में डूबा हुआ है. दीपावली पर भगवान गणेश के साथ ही माता लक्ष्मी के पूजन का खासा महत्व है. शुभ मुहूर्त पर किया गया पूजन काफी फलदायी होता है. इससे सुख-समृद्धि और वैभव में वृद्धि होती है. पूजन के लिए सायंकाल प्रदोष बेला और स्थिरलग्न विशेष लाभकारी रहता है. जानिए क्या है शुभ मुहूर्त और पूजन विधि.
पूजन के लिए कई सामग्री की जरूरत होगी. प्रदोष काल में सोमवार को अमावस्या :ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी ने बताया कि धर्मशास्त्र के अनुसार कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रदोष काल में दीपावली पर्व मनाया जाता है. इस वर्ष 12 नवंबर को दिन में 02:12 मिनट से कार्तिक अमावस्या तिथि लग रही है. यह 12 नवंबर को दिन में 02:41 मिनट तक है. अत: 12 नवंबर को प्रदोष काल में अमावस्या होने से इसी दिन दीपावली मनाई जाएगी. इस बार महापर्व पर स्वाति नक्षत्र व सौभाग्य योग का अद्भुत संयोग भी बन रहा है. वहीं, 13 नवंबर को स्नान, दान व श्राद्ध की अमावस्या होगी.
दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त :दीपावली पर लक्ष्मी पूजन का प्रमुख काल प्रदोष काल माना जाता है. इसमें स्थिर लग्न की प्रधानता है. अत: दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त 12 नवंबर को स्थिर लग्न वृषभ सायं 05:43 मिनट से 07:39 मिनट तक है. इसके बाद स्थिर लग्न सिंह में रात्रि 12:11 मिनट से 02:25 मिनट तक है.
मां काली का भी होता है पूजन :बंग समाज द्वारा महाकाली माता का निशिथ काल में पूजन किया जाता है, जो कि 12 नवंबर को होगा. दीपावली पर दरिद्रा निस्तारण, सायंकाल देव मंदिरों में दीपदान किया जाता है. व्यापारी वर्ग इस रात्रि शुभ तथा स्थिर लग्न में अपने प्रतिष्ठान की उन्नति के लिए महालक्ष्मी का पूजन करते हैं.
स्वयं सिद्ध मुहूर्त दीपावली :सनातनधर्मावल्बी लक्ष्मी पूजन, तांत्रिक मंत्र-तंत्र की सिद्धि करते हैं. व्यापारी अपने व्यापार की उन्नति के लिए जिसका जो भी व्यापार हो या जो भी जिस क्षेत्र का कार्य करता हो, वह अपनी सिद्धि के लिए महालक्ष्मी का पूजन-वंदन करता है. मान्यता है कि कार्तिक अमावस्या दीपावली स्वयं सिद्ध मुहूर्त है. इसलिए इस दिन किसी भी कार्य को किया जा सकता है. इससे वर्ष भर उस कार्य में सफलता मिलती है.
लक्ष्मी-गणेश-कुबेर पूजन :घरों में इस रात्रि लक्ष्मी-गणेश-कुबेर जी का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन कर दीप प्रज्ज्वलित करके माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए त्रिसूक्तम, कनकधारास्रोत, लक्ष्मी चालीसा, लक्ष्मी मंत्र, हवन इत्यादि का पाठ-जप करना चाहिए. जिससे महालक्ष्मी की स्थिर लक्ष्मी स्वरूप में कृपा के साथ ही धन-धान्य, सौभाग्य, पुत्र-पौत्र, प्रभुत्व, ऐश्वर्य इत्यादि का महालक्ष्मी वरदान देते हैं. दीपावली पर प्रात: हनुमान जी दर्शन का भी शास्त्रीय विधान है.
क्यों मनाई जाती है दीपावली :महाकाव्य रामायण में वर्णित है, यह वह दिन है जब भगवान राम, देवी सीता और भाई लक्ष्मण संग 14 साल वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे. अयोध्यावासियों ने श्रीराम के वापस लौटने के उल्लास में दीपोत्सव मनाया था. यम पुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या को अद्र्धरात्रि के समय गणेश-लक्ष्मी और कुबेर सद्गृहस्थों के आवास स्थलों में जहां-तहां विचरण करते हैं. इसीलिए अपने घरों को सब प्रकार से स्वच्छ, शुद्ध और सुशोभित करके चारों तरफ प्रकाशित करके दीपावली मनाने से माता लक्ष्मी, प्रसन्न होती हैं और चीरकाल तक स्थायी रूप से घर में निवास करती हैं.
विधि अनुसार पूजन फलदायी होता है. यह रहेगा सर्वोत्तम योग :दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त को लेकर ज्योतिषविद विमल जैन ने बताया कि शुभ मुहूर्त में की गई पूजा अर्चना से सुख-समृद्धि वैभव में वृद्धि होती है. पूजन के लिए सायंकाल प्रदोष बेला व स्थिरलग्न विशेष लाभकारी रहता है. इसके अतिरिक्त शुभ, अमृत लाभ व चर चौघड़िया भी पूजन के लिए उत्तम माना जाता है. प्रदोष बेला में स्थिर वृषभ लग्न का संयुक्त सर्वोत्तम योग सायं 5 बजकर 22 मिनट से रात्रि 7 बजकर 19 मिनट तक है. यह समय दीपावली की पूजा-अर्चना प्रारम्भ करने के लिए काफी उत्तम है. सामान्यतः श्रलक्ष्मी श्रीगणेश व दीपक के साथ समस्त देवी-देवताओं श्रीमहालक्ष्मी, श्रीमहासरस्वती, श्रीमहाकाली व कुबेरजी का पूजन अमावस्या तिथि प्रारम्भ होने पर दिन में 2 बजकर 46 मिनट से ही शुरू होकर रात्रिपर्यन्त चलेगा.
पूजन की यह है विधि :श्रीलक्ष्मी का पूजन शुभ मुहूर्त से प्रारम्भ हो जाता है. लकड़ी की नई चौकी या सिंहासन पर लाल रंग का नया कपड़ा बिछा कर उस पर श्रीलक्ष्मी श्रीगणेश जी की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए. श्री लक्ष्मी जी श्री गणेश जी के दाहिनी ओर होनी चाहिए. श्रीलक्ष्मी-गणेशजी की मूर्तियों के सामने चावल के दानों के ऊपर कलश में जल भरकर अक्षत, पुष्प, दूर्वा, सुपारी, रत्न व चांदी का सिक्का आदि रखने चाहिए. जलपूरित कलश पर सिन्दूर या रोली से स्वास्तिक बनाकर कलश के ऊपर चावल से भरा हुआ पात्र रखना चाहिए. तत्पश्चात् कलश पर जलदार नारियल को लाल वस्त्र में लपेट कर उसके ऊपर रक्षासूत्र या कलावा 5, 7, 9, 11 या 21 बार लपेटकर रखना चाहिए. तत्पश्चात् चंदन, चावल, भूप गुड़, पुष्प, फल आदि अर्पित करने के बाद अखण्ड दीप प्रज्वलित करके पूजन करना चाहिए.
घर के मुखिया को करनी चाहिए पूजन की शुरुआत :दीपावली पूजन की शुरुआत घर के प्रमुख (मुखिया) को करनी चाहिए. परिवार के सभी सदस्यों को एक साथ बैठकर पूजा में भाग लेना चाहिए. श्रीलक्ष्मी-गणेशजी का पंचोपचार या पोडशोपचार शृंगार- पूजन करके उनकी स्तुति करनी चाहिए. रात्रि में लक्ष्मीजी से सम्बन्धित श्रीलक्ष्मी स्तुति, श्रीसूक्त श्रीलक्ष्मी सहस्रनाम, लक्ष्मी चालीसा आदि का पाठ करना चाहिए. शुद्ध देशी घी से अखण्ड ज्योति, भूपम् प्रज्जवलित करनी चाहिए. रात्रि में जागरण भी करना चाहिए. श्रीलक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के मन्त्र-'श्री' 'ॐ श्रीं नमः', 'ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं' अथवा 'ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः मंत्र का जप करना चाहिए. मंत्र कमलगट्टा या स्फटिक की माला से करना चाहिए. जप 1, 5, 7, 9, 11 या 21 माला को संख्या में होना चाहिए. जब तक मंत्र का जप हो, शुद्ध देशी घी का दीपक व गुगल या गुलाब का धूप जलते रहना चाहिए. मंत्र जाप के अन्त में श्री लक्ष्मीजी की आरती भी उतारनी चाहिए. दीपावली पूजन अपने पारिवारिक रीति-रिवाज एवं परम्परा के अनुसार हो सम्पन्न करना चाहिए, जिससे जीवन में सुख-समृद्धि, खुशहाली बनी रहे.
दीपावली पूजन की आवश्यक सामग्री :श्री लक्ष्मी-गणेश जी की मूर्ति, कांसे या चांदी की थाली, बताशा एवं गुड़, चांदी के सिक्के, इलाइची, इत्र, रोली, सुपारी, लकड़ी के दो पीड़े / पाटे, स्याही, मौली, पान (बिना कटा हुआ), दूर्वा, लाल व सफेद वस्त्र, केशर, पानी का कलश, कपूर, चावल, पंचपात्र, सिंदूर, हल्दी, कच्चा दूध, दही
धूप, नारियल, धनिया (साबुत), दीपक, मिष्ठान, तेल, ताजा पुष्प, बाती (रुई की), यज्ञोपवीत, शुद्ध देशी घी, गंगाजल, ऋतुफल, लाल चन्दन,चीनी के खिलौने, पुष्पहार, खड़ा धनिया, थैली का सामान, कपड़े की थैली
कलम.
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