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चेन्नई की ट्रांसजेंडर एसआई का बच्चा गोद लेने का आवेदन खारिज, मद्रास उच्च न्यायालय का किया रुख

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Published : Jun 23, 2023, 6:19 PM IST

साल 2016 में तमिलनाडु के चेन्नई की के. पृथिका याशिनी एक ट्रासजेंडर होने के बाद भी सब-इंस्पेक्टर के पद पर कार्यरत हैं. याशिनी ने एक बच्चे को गोद लेने के लिए आवेदन किया, जिसे सबंधित प्राधिकरण ने खारिज कर दिया. जिसके बाद अब उन्होंने इस मामले को लेकर मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया है.

Transgender SI of Chennai
चेन्नई की ट्रांसजेंडर एसआई

चेन्नई: पहली ट्रांसवुमन पुलिस सब-इंस्पेक्टर के. पृथिका याशिनी ने एक बच्चे को गोद लेने के उनके आवेदन को संबंधित एजेंसी द्वारा खारिज कर दिए जाने के बाद मद्रास उच्च न्यायालय का रुख किया है. उसने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर गोद लेने की अनुमति मांगी है. सभी बाधाओं के खिलाफ लड़ते हुए, 2016 में, सब-इंस्पेक्टर के पद के लिए उनका आवेदन खारिज होने के बाद याशिनी को मद्रास उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा था.

अदालत के हस्तक्षेप के बाद, उन्हें एक उप-निरीक्षक नियुक्त किया गया और वर्तमान में वह एक सहायक आव्रजन अधिकारी के रूप में काम कर रही हैं. 2021 में, उन्होंने एक बच्चे को गोद लेने का फैसला किया और केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण से अपनी मांग को लेकर संपर्क किया. उन्होंने 12 नवंबर, 2021 को प्राधिकरण को एक ऑनलाइन आवेदन जमा किया. 22 सितंबर, 2022 को उसका आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि वह कानूनी तौर पर एक बच्चे को गोद नहीं ले सकती, क्योंकि वह एक ट्रांसजेंडर है.

प्राधिकरण के फैसले से व्यथित होकर, उन्होंने अब उच्च न्यायालय का रुख किया है और आरोप लगाया है कि उसके आवेदन को अस्वीकार करना एक ट्रांसजेंडर के रूप में भेदभाव और उसके अधिकारों का उल्लंघन है. उन्होंने कहा कि प्राधिकरण का अनुमति देने से इनकार करने का आदेश न तो कानूनी है और न ही सही है. यह असंवैधानिक और भेदभावपूर्ण है. यह हमारे संविधान के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार के खिलाफ है.

याशिनी के अनुसार, बच्चे के पालन-पोषण के लिए अच्छे संस्कार, संस्कृति, शिक्षा और वित्तीय स्वतंत्रता की आवश्यकता होती है. उन्होंने तर्क दिया कि गोद लेने के निर्णय में माता-पिता का यौन रुझान एक कारक नहीं होना चाहिए. उनकी याचिका स्वीकार करते हुए न्यायमूर्ति एम ढांडापानी ने गुरुवार को सवाल किया कि जब कानून ट्रांसजेंडरों को समान अधिकार सुनिश्चित करते हैं तो यशिनी का आवेदन क्यों खारिज कर दिया गया. इसके बाद अदालत ने प्राधिकरण को 30 जून तक जवाब देने का निर्देश दिया.

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