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IAS कैडर नियमों में बदलाव से शक्तियों के दुरुपयोग की आशंका : 109 पूर्व अधिकारी

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Published : Jan 27, 2022, 11:55 PM IST

अखिल भारतीय सेवाओं के कैडर नियमों में प्रस्तावित बदलाव को पूर्व सिविल सेवकों ने ‘मनमाना, अतार्किक और असंवैधानिक’ करार देते हुए इसे संविधान के मूल ढांचे में हस्तक्षेप तथा नुकसान पहुंचाने वाला बताया है.

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आईएएस कैडर नियमों में बदलाव से शक्तियों के दुरूपयोग की आशंका

नई दिल्ली : भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) और भारतीय पुलिस सेवा (IPS) कैडर नियमों में प्रस्तावित बदलाव (The proposed changes in the IAS and IPS cadre rules) केंद्र द्वारा शक्तियों के दुरुपयोग की व्यापक गुंजाइश बनाएगा. साथ ही, जब कभी राज्य सरकारों से जिनसे केंद्र नाखुश होगा, वह अहम पदों पर आसीन अधिकारियों को निशाना बना सकता है. 109 से अधिक पूर्व नौकरशाहों के एक समूह ने यह बात कही.

उन्होंने कहा कि इस बारे में काफी प्रमाण है कि प्रस्तावित संशोधन पर गंभीरता से विचार नहीं किया गया है. पर्याप्त संघीय परामर्श के बगैर एक ऐसे तरीके से इसके लिए जल्दबाजी की जा रही है जो मौजूदा शासन द्वारा केंद्रीकृत शक्ति के मनमाने इस्तेमाल के प्रति झुकाव को प्रदर्शित करता है.

इसमें कहा गया है कि अखिल भारतीय सेवाएं (The All India Services (AIS) भारतीय प्रशासनिक सेवा (The Indian Administrative Service), भारतीय पुलिस सेवा (The Indian Police Service) और भारतीय वन सेवा (the Indian Forest Service) सरकार के दो स्तरों के बीच इस अनूठे संबंध के लिए प्रशासनिक ढांचा बनाते हैं तथा स्थिरता एवं संतुलन प्रदान करते हैं. बयान में कहा गया है कि तीनों अखिल भारतीय सेवाओं के कैडर नियमों में प्रस्तावित बदलाव केंद्र को राज्यों में कार्यरत एआईएस अधिकारियों को राज्य में उनकी सेवाओं से हटाने और केंद्र में बुलाने की एकपक्षीय शक्तियां देता है. यह संबद्ध अधिकारी या राज्य सरकार की सहमति के बगैर किया जाएगा.

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इसमें कहा गया है कि नियमों में बदलाव बहुत मामूली, तकनीकी, नजर आ सकते हैं लेकिन असल में ये भारतीय संघवाद के मूल ढांचे पर चोट करते हैं. बयान में कहा गया है कि कैडर नियमों में प्रस्तावित बदलाव मूल रूप से इस संबंध में बदलाव करता है और आईएएस को जिस संघीय ढांचे को कायम रखने के लिए तैयार किया गया था, उसका माखौल उड़ाता है. इसमें कहा गया है कि यह केंद्र सरकार द्वारा शक्तियों के दुरूपयोग के लिए व्यापक गुंजाइश बनाएगा, जिससे कि जब कभी वह (केंद्र) राज्य सरकार से नाखुश होगा, वह अहम पदों (मुख्य सचिव, गृह सचिव, पुलिस महानिदेशक, प्रधान वन संरक्षक, जिलाधिकारी, पुलिस अधीक्षक आदि) को निशाना बना सकता है, उन्हें उनके पद से हटा सकता है और कहीं और पदस्थ कर सकता है. इस तरह वह राज्य की प्रशासनिक मशीनरी के कामकाज को पटरी से उतार सकता है.

बयान पर हस्ताक्षर करने वाले 109 पूर्व अधिकारियों में दिल्ली के पूर्व उपराज्यपाल एवं सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी नजीब जंग, पूर्व विदेश सचिव एवं पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन, पूर्व गृह सचिव जी.के. पिल्लई और पूर्व रक्षा सचिव अजय विक्रम सिंह शामिल हैं. उल्लेखनीय है कि कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने हाल में आईएएस (कैडर) नियम,1954 में बदलावों का प्रस्ताव किया है जो केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर अधिकारियों की मांग करने वाले केंद्र के अनुरोध को नहीं मानने संबंधी राज्यों की शक्तियां छीन सकता है.

डीओपीटी द्वारा लाए गए संशोधनों के खिलाफ करीब नौ गैर-भाजपा शासित राज्यों-ओडिशा, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान ने अपनी आवाज उठाई है. अधिकारियों ने बताया कि वहीं दूसरी ओर अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, त्रिपुरा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश ने अपनी सहमति दी है.

(पीटीआई)

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