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अवमानना मामले में महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट

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Published : Nov 17, 2020, 9:17 PM IST

महाराष्ट्र के राज्यपाल कोश्यारी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय की अवमानना नोटिस के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

राज्यपाल कोश्यारी
राज्यपाल कोश्यारी

नई दिल्ली :महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय की अवमानना नोटिस के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है. उच्च न्यायालय ने पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में कोश्यारी को आवंटित सरकारी आवास का बाजार दर से किराया अदा करने के आदेश का पालन करने में विफल रहने की वजह से अवमानना कार्यवाही शुरू करने के लिये नोटिस जारी किया है.

कोश्यारी ने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने का अनुरोध करते हुये दलील दी है कि वह इस समय महाराष्ट्र के राज्यपाल हैं. संविधान का अनुच्छेद 361 राष्ट्रपति और राज्यपालों को इस तरह की किसी भी कार्यवाही से संरक्षण प्रदान करता है.

याचिका में यह भी कहा गया है कि बाजार दर बगैर किसी तार्किकता के निर्धारित की गयी है और यह देहरादून में आवासीय परिसर के हिसाब से बहुत ही ज्यादा है और उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिये बगैर ही निर्धारित नहीं किया जाना चाहिए था.

इस मामले में महाराष्ट्र के राज्यपाल की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अमन सिन्हा शीर्ष अदालत में बहस करेंगे. कोश्यारी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय की अवमानना कार्यवाही पर रोक लगाने का अनुरोध शीर्ष अदालत से किया है.

कोश्यारी ने अधिवक्ता अर्धेन्धु मौली प्रसाद और प्रवेश ठक्कर के माध्यम से उच्च न्यायालय के आदेश को शीर्ष अदालत में चुनौती दी है.

सिन्हा ने इससे पहले इसी तरह के एक अन्य मामले में शीर्ष अदालत में बहस की थी और केन्द्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल के खिलाफ अवमानना कार्यवाही पर न्यायालय से स्थगनादेश प्राप्त करने में सफलता पाई थी.

पोखरियाल पर भी आरोप है कि उन्होंने भी राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में आवंटित सरकारी बंगले के किराये का भुगतान करने के उच्च न्यायालय के आदेश पर अमल नहीं किया था.

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उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने पिछले साल तीन मई को राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों को आदेश दिया था कि वे मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद सरकारी आवास में रहने की अवधि का बाजार दर से किराया दें.

उच्च न्यायालय ने राज्य में पूर्व मुख्यमंत्रियों को आवास और दूसरी सुविधाएं प्रदान करने के बारे में 2001 से जारी सभी सरकारी आदेशों को गैरकानूनी और असंवैधानिक घोषित कर दिया था.

उच्च न्यायालय ने कहा था कि पूर्व मुख्यमंत्रियों को राज्य द्वारा उपलब्ध करायी गयी बिजली, पानी, पेट्रोल, ईंधन और अन्य सुविधाओं की मद की राशि की गणना की जायेगी और इस देय धनराशि की जानकारी सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को दी जायेगी, जिन्हें ऐसी सूचना मिलने की तारीख से छह महीने के भीतर इसका भुगतान करना होगा.

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