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कोरोना काल में गरीबी से जुड़ी समस्या का समाधान जरूरी

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Published : Oct 19, 2020, 1:51 PM IST

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कोविड-19 के विनाशकारी प्रभाव के कारण रोजगार और गरीबी पर महामारी की मार की वजह से इस वर्ष गरीबी का मुद्दा अधिक महत्वपूर्ण है. आकलन के अनुसार, गरीबी रेखा के नीचे की आबादी में बढ़ोतरी हो सकती है, बेरोजगारी बढ़ सकती है और बहुत सारे अनौपचारिक कामगार गरीबी के शिकार हो सकते हैं.

नई दिल्ली :आज अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस है. 2020 में इस दिन का विषयवस्तु 'सबके लिए सामाजिक और पर्यावरणीय न्याय' प्राप्त करने की चुनौती का समाधान निकालता है. गरीबी की बढ़ती बहु-आयामी मान्यता का अर्थ है कि यह दोनों मुद्दे परस्पर इस कदर जुड़े हुए हैं कि इन्हें अलग नहीं किया जा सकता. साथ ही जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संबंधी चुनौतियों को आक्रामक तरीके से साथ-साथ हल किए बिना पूरी तरह से सामाजिक न्याय नहीं किया जा सकता है.

आय से संबंधित गरीबी के समाधान में तो सफलता मिली है, लेकिन पर्यावरण के तेजी से बढ़ते प्रभाव समेत समग्र दृष्टिकोण से गरीबी के अन्य महत्वपूर्ण आयामों से निपटने में कम सफलता मिली है.

दुनिया के कई हिस्सों में व्याप्त भूख, गरीबी से जुड़ी एक और समस्या है, जिसका दुनिया को समाधान करना है. नोबेल समिति ने 2020 के लिए विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) को भूख से निपटने के प्रयासों के लिए नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया, जो बिल्कुल सही है.

संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में शांति, युद्ध व संघर्ष के हथियार के रूप में भूख के उपयोग को रोकने के वास्ते प्रेरक शक्ति के रूप में काम करते हुए विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफपी) ने वर्ष 2019 में 88 देशों के खाद्य असुरक्षा और भूख के शिकार करीब 10 करोड़ लोगों को सहायता पहुंचाई.

कोविड-19 के विनाशकारी प्रभाव के कारण रोजगार और गरीबी पर महामारी की मार की वजह से इस वर्ष गरीबी का मुद्दा अधिक महत्वपूर्ण है. आकलन के अनुसार, गरीबी रेखा के नीचे की आबादी में बढ़ोतरी हो सकती है, बेरोजगारी बढ़ सकती है और बहुत सारे अनौपचारिक कामगार गरीबी के शिकार हो सकते हैं.

हेलसिंकी के यूएन वाइडर विश्वविद्यालय में किए गए अध्ययन के अनुसार, प्रति व्यक्ति आय या खपत में 10 फीसद की कमी आ सकती है. गरीबी की गिनती में कुल बढ़ोतरी 18 करोड़, 28 करोड़ और 25 करोड़ लोगों के लिए क्रमश: 1.90 डॉलर प्रतिदिन, 3.20 डॉलर प्रतिदिन पर और 5.50 डॉलर प्रतिदिन की कमाई पर है, लेकिन अगर संकुचन 20 फीसद होगी तो इसमें 42 करोड़, 58 करोड़ और 52 करोड़ लोगों की बढ़ोतरी हो सकती है.

वैश्विक स्तर पर, कोविड-19 का संभावित प्रभाव संयुक्त राष्ट्र के लिए 2030 तक गरीबी खत्म करने के सतत विकास लक्ष्य के लिए एक वास्तविक चुनौती है. क्योंकि अपेक्षाकृत गरीबी रेखा के नीचे गरीबों की संख्या में निरंकुश बढ़ोतरी 1990 के बाद से पहली बार दर्ज की जाएगी, और वे गरीबी कम करने में लगभग एक दशक की प्रगति के उलट दिख सकते हैं.

दुनिया के सबसे गरीब क्षेत्रों में 1.9 डॉलर प्रति दिन और 3.2 डॉलर प्रति दिन के तहत संभावित नए गरीबों की संख्या सबसे अधिक होगी. विशेष रूप से उप सहारा अफ्रीका में और दक्षिण एशिया में जहां दुनिया के दो तिहाई गरीब रहते हैं और जो कुल गरीबों का 80-85 फीसद है. दक्षिण एशिया में यदि गरीबी हम 3.2 डॉलर प्रतिदिन पर लेते हैं तो वर्ष 2018 में 84.7 करोड़ गरीब थे, जो बढ़कर 9.15 करोड़ हो सकते हैं.

विश्व बैंक के हाल के अध्ययन से संकेत मिलता है कि कोविड-19 महामारी अलग से इस वर्ष 8.8 करोड़ से 11.5 करोड़ लोगों को अत्यंत गरीब बना सकती है. इस तरह वर्ष 2021 तक कुल गरीब लोगों की संख्या 15 करोड़ तक बढ़ सकती है. यह आर्थिक संकुचन की गंभीरता पर निर्भर करेगा.

लगभग 25 वर्षों से अत्यधिक गरीबों की संख्या लगातार घट रही थी. अब पहली बार गरीबी खत्म करने के प्रयासों को सबसे बड़ा झटका लगा है. यह झटका बड़ी चुनौतियों के कारण है.

कोविड- 19, संघर्ष और जलवायु परिवर्तन का तो सभी देश सामना कर रहे हैं ,लेकिन विशेष रूप से वे हैं, जहां बड़ी संख्या में गरीब आबादी है. विश्व बैंक ने जब से विश्व स्तर पर एक अच्छे तरीके से गरीबी पर नज़र रखनी शुरू की है तब से किसी भी समय से अधिक वर्ष 2019 से 2020 तक में गरीबी में बढ़ोतरी का अनुमान जताया है.

कोविड-19 एक नई बाधा है, जबकि संघर्ष और जलवायु परिवर्तन दुनिया के कुछ हिस्सों में वर्षों से अत्यधिक गरीबी को बढ़ा रहे हैं. विश्व बैंक के अध्ययन ने मुंबई शहर की मलीन बस्तियों में कोरोना वायरस को जिस तरह से फैलने से रोका गया, उसकी सराहना की है. यह देखते हुए कि प्रभावी दृष्टिकोण से समुदाय के कौशल और समर्पण का पूरा उपयोग किया है.

विश्व बैंक ने कहा कि मुंबई में सबसे बड़ी शहरी मलीन बस्तियों में से एक धारावी में कोरोना वायरस को रोकने के लिए रणनीति बनाकर बड़ी संख्या में समुदाय के सदस्यों और निजी मेडिकल क्लीनिक से कर्मचारियों को बुलाकर बड़े पैमाने पर बुखार और ऑक्सीजन का स्तर की जांच शुरू की. भारत में गरीबी का प्रभाव बहुत अधिक है. भारत के लिए दो कारणों से आर्थिक झटके से स्थिति बहुत अधिक गंभीर है.

सबसे पहला कि कोविड 19 के पहले से ही अर्थव्यवस्था धीमी हो रही थी, बेरोजगारी, निम्न आय, ग्रामीण संकट, कुपोषण, बहुत अधिक असमानता मौजूदा समस्याओं को और बढ़ा रही हैं. दूसरा, भारत का बड़ा असंगठित क्षेत्र विशेष रूप से असुरक्षित है. 2017-18 में देश के कुल 46.5 करोड़ श्रमिकों में लगभग 91 फीसद (42.2 करोड़) असंगठित क्षेत्र के श्रमिक थे. लॉकडाउन अवधि के दौरान सबसे ज्यादा कठिनाई का सामना असंगठित क्षेत्र के कामगारों ने किया ये कृषि, प्रवासी और अन्य अनौपचारिक कामगार थे, जिन्हें नियमित वेतन नहीं मिलता.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई ) के आकलन के अनुसार, बेरोजगारी 8.4 फीसद से बढ़कर 27 फीसद हो गई. 12.2 करोड़ लोगों की नौकरियां चली गईं. उसमें से छोटे व्यापारी और आकस्मिक मजदूरों की संख्या 9.1 करोड़ है. आईएलओ की एक रिपोर्ट से पता चलता है कि भारत के 40 करोड़ अनौपचारिक श्रमिकों के और अधिक संकट में पड़ने का खतरा है.

अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से पता चलता है कि 77 फीसद परिवारों में कोविड-19 के पहले के कुछ महीनों में खाने की कमी थी. सरकार ने लगभग 20 लाख करोड़ रुपए की राहत की घोषणा की. हालांकि, विश्लेषकों का कहना है कि जीडीपी पैकेज के 10 फीसद में से राजकोषीय प्रोत्साहन जीडीपी का केवल 1 एक से 2 फीसद है. यह जितना बड़ा अभूतपूर्व संकट है, उसे देखते हुए गरीबों को आर्थिक सहायता में उल्लेखनीय बढ़ोतरी की जरूरत है.

समस्या की तुलना में राजकोषीय राहत या प्रोत्साहन पर्याप्त नहीं है. पहली प्रोत्साहन राशि की घोषणा के बाद नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी और एस्थर डुफ्लो ने टिप्पणी की थी कि सरकार को सामाजिक हस्तांतरण योजनाओं के साथ और अधिक बोल्ड होना चाहिए.

उनके अनुसार, सरकार जो दे रही है, वह छोटे आलू की तरह हैं जिन्हें हजारों लोगों की आबादी कुछ ही दिनों में खर्च कर देती है. वैश्विक स्तर पर कई देशों में कोविड का फैलाव भारत की तुलना में बहुत अधिक है. स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के बारे में दूसरे देशों से भी सीखना होगा. उदाहरण के लिए, कुछ अमीर देशों की स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था कोविड-19 के फैलाव की वजह से धराशायी होने के करीब पहुंच गई है, जबकि वियतनाम ने त्वरित कार्रवाई की और अब तक नियंत्रण में है. क्या यह तेज प्रभावी प्रतिक्रिया एक व्यवहारिक रूप में अन्य निम्न-आय वाले देशों के लिए मॉडल के रूप में काम कर सकती है ?

9.7 करोड़ से अधिक की आबादी के साथ वियतनाम के पास सार्स, मार्स, खसरा और डेंगू सहित अन्य संक्रामक रोगों जैसे आपदा का सामना करने का अनुभव है. देश की स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार करने के लिए वर्षों उसने काम किया है, ताकि इस तरह के प्रकोप की चुनौती से वह निबट सके.

कोरोना वायरस के मामले में वियतनाम अपेक्षाकृत कम लागत वाले चार प्रभावी उपायों पर निर्भर था. वायरस का मुकाबला करने के लिए समाधान के रूप में उसने रणनीति बनाकर परीक्षण किया, एप्लीकेशन के माध्यम से संपर्क खंगाला और प्रभावी जन संचार अभियान का सहारा लिया.

भारत को कोविड -19 के कारण गरीबी के प्रभाव को कम करने के लिए कई उपाय करने होंगे.

पहला, गरीबों को भोजन और नकद पैसे देने जैसे राहत उपायों के साथ मनरेगा जैसे कार्यक्रमों के आवंटन बढ़ाने की जरूरत है.

दूसरा, महामारी हमारे स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को सुधारने का अवसर देती है.

तीसरा, आर्थिक विकास को फिर से पटरी पर लाना होगा.

जीडीपी वृद्धि वर्ष 2020-21 में 10 फीसदी तक कम होने की उम्मीद है. चौथा, कृषि गरीबों का हित करने वाला क्षेत्र है. छोटे और सीमांत किसानों की आय बढ़ाने में मदद करने के लिए कृषि सुधार करने होंगे. छोटे और सीमांत किसान कुल 86 फीसद हैं. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि गरीबी में कमी के लिए रोजगार सृजन महत्वपूर्ण है.

रोजगार की कुछ चुनौतियां हैं

(ए) प्रति वर्ष 70 से 80 लाख बेरोजगारों के लिए उत्पादक रोजगार पैदा करना

(बी) श्रम की मांग और आपूर्ति के बीच बेमेल को सही करना: दक्षिण कोरिया में 96 फीसद, जापान में 80 फीसद, जर्मनी में 95 फीसद, यूके में 68 फीसद और अमेरिका में 52 फीसद की तुलना में भारत के 10 फीसद से भी कम कर्मचारियों के पास कौशल है.

(सी) उद्यमों और कार्य बल का औपचारिकीकरण

(डी) एमएसएमई और अनौपचारिक सेक्टर पर ध्यान केंद्रित करना.

(ई) स्वचालन और प्रौद्योगिकी क्रांति

(एफ) सामाजिक सुरक्षा और सभी के लिए काम करने की बेहतरीन स्थिति पैदा करना.

अगले कुछ वर्षों में अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ रोजगार बढ़ाने की बहुत गुंजाइश है. निर्यात के लिए दोतरफा रणनीति तैयार करने की जरूरत है. पहला अधिक श्रमिक वाले क्षेत्र जैसे परिधान, फुटवियर, फर्नीचर और कई हल्के विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने की जरूरत है. दूसरा चीन जो खाली कर रहा है उस वैश्विक मूल्य चेन में भाग लेकर हमें रोजगार पैदा करने के लिए कुछ नया और दायरे से बाहर जाकर सोचना होगा.

अंत में जो इस वर्ष का विषय है वह है, जलवायु परिवर्तन. यह गरीबी में कमी लाने में एक लगातार बना रहने वाला खतरा भी है और यह आने वाले वर्षों में और तेज होगा. आकलन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन की वजह से वर्ष 2030 तक गरीबी में बढ़ोतरी होकर 6.8 करोड़ लोगों से 13.5 करोड़ तक पहुंच जाएगी.

जलवायु परिवर्तन उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया के क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से गंभीर खतरा है. ये वे स्थान है जहां दुनिया के अधिकांश गरीब रहते हैं. जलवायु परिवर्तन के प्रभावों में खाने वाली चीजों की बहुत अधिक कीमतें, बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति और बाढ़ जैसी आपदाएं, जो गरीबों और सामान्य आबादी दोनों को प्रभावित करती हैं.

विशेष रूप से सबसे गरीब देशों के लिए जलवायु परिवर्तन शायद सबसे विकराल चुनौती है और समस्या उन देशों से नहीं पैदा हुई है. वैश्विक तापमान और समुद्र के स्तर में मानव जनित बढोतरी लगभग पूरी तरह से उच्च आय वाले देशों और बड़ी तेजी से बढ़ती मध्यम आय के लोगों के स्तर वाले देशों के अधिक ऊर्जा के उपयोग का परिणाम है.

निष्कर्ष यह कि 1990 के बाद महामारी के कारण पहली बार भारत सहित कई देशों में गरीबी बढ़ने की संभावना है. इस गरीबी उन्मूलन दिवस पर 2030 तक गरीबी कम करने और सतत विकास लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उत्पादक रोजगार सृजन, जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य देखभाल व्यवस्था में निवेश करने की जरूरत है.

(एस महेंद्र देव)

कुलपति, आईजीआईडीआर, मुंबई

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