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इंटरनेट पर पूर्ण प्रभुत्व चाहता है चीन, मंसूबों पर पानी फेरेगा भारत !

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Published : Jan 19, 2021, 7:11 PM IST

चीन तेजी से वेब पर एक पूर्ण प्रभुत्व जमाने की ओर बढ़ रहा है. कई साइबर विशेषज्ञ व्यवस्थित तरीके से इंटरनेट पर नियंत्रण करने की चीन की रणनीति से चिंतित हैं, लेकिन चीन के इस दुर्भावनापूर्ण मंसूबों को नाकाम करने के लिए भारत तैयार है. पढ़ें विस्तार से...

China eyes dominion over the internet
इंटरनेट पर पूर्ण प्रभुत्व चाहता है चीन, मंसूबों पर पानी फेरेगा भारत !

हैदराबाद : इंटरनेट के आने के साथ ही वैश्विक प्रणालियों में कई महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए. लोगों की दिनचर्या से लेकर कई क्षेत्रों जैसे सूचना, सरकार-प्रशासन, परिवहन, पर्यटन और मनोरंजन आदि सभी बदल गए. अमेरिकी रक्षा विभाग ने ARPANET को लॉन्च करने के बाद दुनियाभर में इंटरनेट नेटवर्क का तेजी से विस्तार किया. जल्द ही कनेक्ट होनी की सुविधा और इंटरनेट की निष्पक्षता इसकी लोकप्रियता के प्रमुख कारण हैं.

ये है चीन की रणनीति
दरअसल, इंटरनेट सभी के लिए है और इस पर किसी का एकाअधिकार नहीं है, लेकिन चीन तेजी से वेब पर एक पूर्ण प्रभुत्व जमाने की ओर बढ़ रहा है. सितंबर 2019 में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय दूरसंचार सम्मेलन में प्रमुख चीनी दूरसंचार कंपनी हुआवेई ने राज्यों के स्वामित्व वाले उद्यमों जैसे चाइना यूनिकॉम के साथ मिलकर मौजूदा इंटरनेट प्रोटोकॉल को बदलने वाले एक पत्र पर हस्ताक्षर किए. इसके बाद से कई साइबर विशेषज्ञ व्यवस्थित तरीके से इंटरनेट पर नियंत्रण करने की चीन की रणनीति से चिंतित हैं.

क्या है टीसीपी/आईपी
इंटरनेट प्रोटोकॉल सूट को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल/इंटरनेट प्रोटोकॉल (टीसीपी/आईपी) के रूप में जाना जाता है. दुनियाभर में सभी कंप्यूटर और मोबाइल फोन इसी प्रणाली के माध्यम से जुड़े हुए हैं. टीसीपी सूचना प्रसारित करता है जबकि आईपी एक विशिष्ट कंप्यूटर या नेटवर्क से जुड़ी पहचान संख्या है.

चीनी के तर्क
दरअसल, चीन ने टीसीपी/आईपी में कमियों का हवाला देते हुए एक नया प्रोटोकॉल सुझाया है, जिसमें चीनी कंपनियों ने तीन चुनौतियों का उल्लेख किया है. पहला यह कि प्रोटोकॉल केवल टेलीफोन और कंप्यूटर को जोड़ता है, लेकिन इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) के साथ इंटरनेट पर कई प्रकार की मशीनें अन्य उपकरणों के साथ जोड़ी जा सकती हैं और डेटा एक्सचेंज कर सकती हैं. दूसरा यह कि टीसीपी/आईपी के साथ सुरक्षा मुद्दे हैं. तीसरा और अंतिम तर्क चीन ने यह दिया कि वर्तमान प्रोटोकॉल केवल कुछ क्षेत्रों में प्रभावी है और इसे विस्तारित करने की आवश्यकता है.

हालांकि, कई विशेषज्ञों ने स्पष्ट किया है कि आईपी पूरी तरह से कार्य करेगा, लेकिन इस मुद्दे पर चीन की दुर्भावनापूर्ण रणनीति पर गहराई से विचार करने की आवश्यकता है.

जानें, क्या होगा नुकसान
हुआवेई अपनी 5G सेवाओं के विस्तार की योजना बना रहा है. सतह पर मौजूदा प्रोटोकॉल को बदलने के चीन के इरादे रचनात्मक लग सकते हैं, लेकिन साइबर विशेषज्ञों इंटरनेट एकाधिकार को लेकर चेतावनी दी है. चीन पहले से ही सरकार विरोधी समाचारों पर एक सख्त सेंसरशिप लागू कर चुका है. इसके अलावा फेसबुक और ट्विटर जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है. यह नेटिजेंस (इंटरनेट पर प्रमुख रूप से सक्रिय लोग) को वैकल्पिक वेब पर स्विच करने के लिए बाध्य भी कर सकता है.

खत्म होगी वन वर्ल्ड-वन नेट की अवधारणा
अपनी स्थापना के बाद से, इंटरनेट निष्पक्ष रहा है, लेकिन इंटरनेट पर एकाधिकार या संस्थागत अधिकार का मतलब होगा पक्षपातपूर्ण जानकारी देना. कुछ देश चीन से हाथ मिला सकते हैं और समाचार प्रस्तुत करने के तरीके को नियंत्रित कर सकते हैं. यदि चीन एक नए प्रोटोकॉल के साथ आगे बढ़ता है तो 'वन वर्ल्ड-वन नेट' की अवधारणा नहीं रह जाएगी.

भारत में होने वाले आयोजन पर नजर
फरवरी में हैदराबाद में वैश्विक दूरसंचार मानकों पर एक सम्मेलन आयोजित किया जाएगा. बैठक में प्रस्तावित प्रोटोकॉल परिवर्तन के मुद्दे पर भी चर्चा होगी. पिछले चार दशकों में लाखों साइबर विशेषज्ञ और इच्छुक इंजीनियर इंटरनेट को एक बेहतर स्थान बनाने के लिए प्रयासरत हैं. इसकी प्रामाणिकता को बनाए रखने के लिए अरबों लोगों ने कड़ी मेहनत की.

यह वह समय है जब खुफिया जानकारी को लूटने की चीन की कोशिशों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काउंटर किया गया है. चूंकि इस बार भारत में इस तरह का महत्वपूर्ण आयोजन होने वाला है, साइबर विशेषज्ञ चाहते हैं कि यह सम्मेलन चीन के दुर्भावनापूर्ण मंसूबों को नाकाम कर दे.

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