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तबलीगी जिहाद और मीडिया का पूर्वाग्रह

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Published : Apr 17, 2020, 9:06 PM IST

यह बड़े दुःख की बात है कि 2020 की शुरुआत में नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में चले आन्दोलन के समय कुछ टीवी चैनलों ने जैसे मुस्लिम विरोधी और कौमवादी पूर्वाग्रह रख कर दुष्प्रचार किया था वैसा ही कुछ बड़े वीभत्स स्वरुप में अब भी सामने आया.

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प्रतीकात्मक चित्र

अप्रैल की शुरुआत में कोरोना वायरस महामारी बहुत ही नकारात्मक और खतरनाक रूप से प्रगट हुई और अगर मीडिया की यह प्रवृत्ति अनियंत्रित रह गई तो भारत के सामाजिक सद्भाव और आंतरिक सुरक्षा पर इसका बहुत खतरनाक परिणाम आ सकता है.

मध्य मार्च में तबलीगी जमात के एक जमावड़े में कई विदेशी नागरिक शामिल हुए थे जिनके कोरोना वायरस से सम्बन्ध को लेकर देश भर में भयानक आतंक का वातावरण खड़ा हो गया था. तबलीगी जमात सन 1927 में स्थापित रूढ़िवादी मुसलमानों का संगठन है. मार्च के अंत से अप्रैल की शुरुआत में देश के कई भागों से कोरोना वायरस के संक्रमण की खबरें आईं जिनका सम्बन्ध निजामुद्दीन में हुए तबलीगी जमात के सम्मलेन में शामिल लोगों से बताया गया और इस बात को दृश्य-श्राव्य माध्यमों ने व्यापक रूप से प्रचारित किया.

यह बड़े दुःख की बात है कि 2020 की शुरुआत में नागरिकता कानून के खिलाफ देश भर में चले आन्दोलन के समय कुछ टीवी चैनलों ने जैसे मुस्लिम विरोधी और कौमवादी पूर्वाग्रह रख कर दुष्प्रचार किया था वैसा ही कुछ बड़े वीभत्स स्वरुप में अब भी सामने आया.

कुछ टीवी चैनलों ने पूर्वाग्रह ग्रसित अपनी रिपोर्ट में कोरोना वायरस के प्रसार को कौमवादी मुलम्मा ऐसे पहनाया मानों यह एक जमात द्वारा फैलाई महामारी हो. अप्रैल के शुरूआती दिनों सोशल मीडिया में 'तबलीगी वायरस' और 'कोरोना जिहाद' जैसे जुमले फैलाये गए और एक ऐसा दुष्प्रचार किया गया कि कोरोना वायरस का जन्म चीन के वुहान में नहीं बल्कि निजामुद्दीन में हुआ है!

कई बड़ी टीवी चैनल और समाचार संस्थाओं ने तो हद ही कर दी जब उन्होंने फेक रिपोर्ट्स जारी कर यह गलत खबर प्रचारित की कि तबलीगी जमात के लोगों को जब अस्पताल ले जाया गया तो उन्होंने मेडिकल स्टाफ के साथ बदतमीजी की और सार्वजनिक स्थलों पर थूका. कुछ चैनल्स ने स्टिंग ऑपरेशन कर यह साबित करने की कोशिश की कि तबलीगी जमात के लोगों ने जानबूझकर कोरोना वायरस महामारी से निबटने के लिए 24 मार्च से जारी तालाबंदी के नियमों का भंग किया.

बाद में कई सत्य शोधक समूहों द्वारा सोशल मीडिया पर जांच किए जाने से पता चला कि ये सारी जहरीली रिपोर्ट झूठी थी और मुस्लिम समुदाय को गलत दिखाने के लिए जानबूझ पर प्रसारित की गई थी.

तबलीगी जमात को तालाबंदी का विरोधी बताने से लेकर भारत के सभी मुसलमानों को हैवान के रूप में पेश करने का काम मीडिया के इस खेमे ने बहुत ही धूर्तता और चालाकी से किया और उनका यह तरीका बहुत जाना माना रहा है.

तबलीगी जमात के नेतृत्व को जहां मार्च महीने के मध्य में उस समय जमावड़ा आयोजित करने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है जब इस महामारी के बारे में व्यापक खबर आ चुकी थी, वहीँ मीडिया के सोचे समझे पूर्वाग्राह को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता. बड़ी संख्या में लोगों के जमावड़े नहीं किये जाने थे और प्रधानमंत्री ने अपने मार्च 24 के सन्देश में भी लक्ष्मण रेखा की घोषणा कर दी थी.

तबलीगी जमात में सैंकड़ों लोगों का लम्बे समय तक एक सीमित जगह में रहना जनता के स्वास्थ्य नियमों का उल्लंघन करता था इसलिए मीडिया का यह लाजमी कर्त्तव्य था कि वह जहां कहीं भी सार्वजनिक नियमों का भंग हो उस बारे में लिखे. वहीँ इस पर भी सवाल उठाये गए हैं कि भला इस प्रकार के जमावड़े को पुलिस ने क्यों होने दिया. एक निष्पक्ष जांच ही इस बात का सही उत्तर खोज सकती है. आवश्यक कानूनी कार्यवाही की गई है और तबलीगी जमात के नेता मौलाना साद के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 304 के तहत मानव हत्या का जुर्म भी दाखिल कर दिया गया है.

हालांकि तबलीगी जमात के निजामुद्दीन में हुए जमावड़े के समय के पखवाड़े में भारत में हुए कोरोना भय के साए में और भी कई राजनैतिक और हिन्दू धार्मिक जमावड़े तथा उत्सव हुए हैं जिन पर न तो तबलीगी जमात द्वारा और न ही मीडिया द्वारा कोई विरोधात्मक टिप्पणियां की गई.

जो जमावड़े हुए उनमें उल्लेखनीय हैं भोपाल में सत्ता परिवर्तन के समय उपस्थित भीड़, लखनऊ में राम नवमी का जश्न, तिरुपति में भक्तों का परंपरागत इकठ्ठा होना और थिरुवनंतपुरम तथा हाल ही में कर्नाटक के चित्तपुर तलूक में हुई सिद्दलिंगेश्वारा जात्रा.

सार्वजनिक स्वास्थ्य एक राष्ट्रीय चुनौती है. कोरोना वायरस महामारी एक वैश्विक समस्या है जो एक मायने में शैतानी भले ही पर लोकतान्त्रिक है क्यों कि यह राष्ट्रीयता, धर्म, वर्ण, अमीर-गरीब को बिना किसी भेदभाव के अपने चपेट में ले लेती है. इसलिए यह सुझाना बिलकुल ही तर्क संगत नहीं है कि तबलीगी जमात का जमावड़ा इसाईयों के ईस्टर रविवार या हिन्दू के किसी धार्मिक मेले की तुलना में सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए ज्यादा खतरनाक है.

यह बड़े दुःख की बात है कि हाल के कुछ वर्षों से भारतीय मीडिया के एक तबके ने विद्वेष को बढ़ावा देकर भारत के संविधान में परिभाषित देश प्रेम और राष्ट्रहित की भावना को विकृत स्वरुप दे दिया है.

'दुसरे' के प्रति असहिष्णुता और असहमति की आवाज को छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर डराने और धमकाने वाला घातक हिंदुत्व देश के लिए ज्यादा खतरनाक वायरस है.

यह विचारधारा हिन्दू धर्मं के तत्व से बिलकुल अलग है जिसे करोड़ों हिन्दू बिना तिलक-जनेऊ धारण किए मानते आए हैं. उनसे तो वह और भी भिन्न है, जो मीडिया अपने से भिन्न मत रखनेवालों को शैतान के रूप में चित्रित करता है.

तबलीगी जमात की इस उप महाद्वीप और इस्लामी दुनिया में व्यापक उपस्थिति है. उसकी विचारधारा इस्लाम के मूल सिद्धांतो को मुसलमानों के बीच पुनर्स्थापित करना है. कई सौम्य मत के मुसलमान इन्हें 'तकलीफी' जमात के नाम से बुलाते हैं, वे जो तकलीफ खड़ी करते हों.

कोई जो लच्छेदार और बतकही के अंदाज़ में सच्चे और गलत के चश्मे से समस्त मुस्लिम समुदाय को आतंकवाद और कोरोना वायरस के साथ जोड़ने का प्रयास करता है वह देश को खतरनाक जमीन पर ले जा सकता है.

एक हेरफेर करने वाला मीडिया विविध समुदायों को जानलेवा संप्रदायों में बांट सकता है. रवांडा का दुखद अनुभव सामने ही है. यह वह महत्वपूर्ण 'लक्ष्मण रेखा' है जिसे भारत को पार नहीं करना चाहिए.

(सी उदय भास्कर)

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