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EXCLUSIVE: शहीद वीर नारायण सिंह को तोप से नहीं उड़ाया गया था बल्कि दी गई थी फांसी

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Published : Jan 26, 2021, 11:56 AM IST

Updated : Jan 26, 2021, 3:19 PM IST

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देश आज अपना 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. इस दिन को हासिल करने के लिए आजादी के मतवालों ने अपनी जान न्यौछावर कर दी. शहीद वीर नारायण सिंह भी उनमें से एक थे. लेकिन उन्हें लेकर कई भ्रांतियां हैं. जिसे लेकर ETV भारत आपके सामने एक खुलासा करने जा रहा है.

रायपुर: विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश अब अपना 72वां गणतंत्र दिवस मना रहा है. भारत देश को आजादी के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा है. देश के सैकड़ों सेनानियों के सालों के संघर्ष और बलिदान का नतीजा है कि हम आज स्वतंत्र हैं. छत्तीसगढ़ अंचल में देश के आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वालों में नाम आता है शहीद वीर नारायण सिंह का. ये छत्तीसगढ़ के उन स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ बड़ा विद्रोह किया था. अंग्रेजों के गोदाम से अनाज लूटकर गरीबों में बंटवा दिया था. इन्हीं से जुडे़ एक तथ्य को लेकर ETV भारत बड़ा खुलासा करने जा रहा है. इतिहास में उन्हें दी गई जानकारी के मुताबिक उन्हें तोप में जंजीर से बांधकर रायपुर के जयस्तंभ चौक में उड़ाया गया था. जबकि यह जानकारी पूरी तरह गलत है. ETV भारत तमाम दस्तावेजों के साथ ये खुलासा कर रहा है कि उन्हें तोप से नहीं उड़ाया गया था. बल्कि उन्हें फांसी दी गई थी.

कैसे हुई थी छत्तीसगढ़ के सपूत शहीद वीर नारायण सिंह की मौत ?

शहीद वीर नारायण सिंह काफी बड़ी शख्सियत थे. वे ऐसे बड़े परिवार में जन्मे थे कि यदि वे चाहते तो अंग्रेजों के साथ मिलकर आसानी से जिंदगी गुजार सकते थे. लेकिन जमींदार परिवार से होने के बाद भी उन्होंने आजादी को चुना और लड़ते-लड़ते शहीद हो गए. शहीद वीर नारायण सिंह के विद्रोह को लेकर अंग्रेजों में खासी नाराजगी रही है. अंग्रेज चाहते थे कि ये विद्रोह यहीं खत्म हो जाए और लोगों में भय पैदा हो. यही वजह है कि उन्होंने शहीद वीर नारायण को गिरफ्तार कर रायपुर सेंट्रल जेल में बंद कर दिया था. बाद में उन्हें फांसी दी गई.

डाक टिकट

9 दिसंबर को ब्रिटिश सरकार ने लिखा था पत्र

ETV भारत उस दस्तावेज को दिखाता है जिसमें अंग्रेज सरकार ने वीर नारायण सिंह को फांसी देने की बात लिखी है. 9 दिसंबर 1857 को लिखें इस पत्र में अंग्रेज अफसरों ने वीर नारायण सिंह को 10 दिसंबर को फांसी देने का जिक्र किया है. उन्हें फांसी सेंट्रल जेल के बाहर दी गई थी. जिसका भी जिक्र इस पत्र में किया गया है. इतिहासकार आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र कहते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के खिलाफ जो विद्रोह किया था, उससे अंग्रेज अफसर परेशान हो गए थे. उन्हें यह डर सताने लगा था कि अंग्रेजों के खिलाफ वीर नारायण सिंह के शुरू किया गया विद्रोह उन्हें भारी ना पड़ जाए.

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दी गई थी फांसी

1857 की क्रांति को लेकर देशभर में अंग्रेजी हुकूमत हिली हुई थी. यही वजह है कि इनके विद्रोह को जल्द से जल्द दबाया गया. रमेंद्रनाथ बताते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह को तोप से नहीं उड़ाया गया था. बल्कि उन्हें फांसी दी गई थी. पत्र क्रमांक 286 जो कि 10 दिसंबर 1857 को अंग्रेज अफसरों ने लिखा था, इसमें बताया गया है कि 10 दिसंबर 1857 को वीर नारायण सिंह जो सोनाखान का जमींदार था, उसे सभी अधिकारियों और सेना के सामने फांसी पर लटका दिया.

किसी किसान की फोटो को लगाकर जारी कर दिया गया टिकट

आचार्य रमेंद्रनाथ मिश्र कहते हैं कि शहीद वीर नारायण सिंह को लेकर अविभाजित मध्यप्रदेश में भी जानकारी उपलब्ध कराई गई है. बावजूद उसके डाक विभाग ने सुधार नहीं किया है. शहीद वीर नारायण सिंह को लेकर भारतीय अभिलेखागार में भी तमाम दस्तावेज उपलब्ध हैं. लेकिन इससे पहले के इतिहासकारों ने गलती की है. भारतीय डाक विभाग की ओर से जारी किए गए डाक टिकट में वीर नारायण सिंह की जगह किसी किसान की तस्वीर लगा दी गई है. जिसमें किसान को तोप में जंजीर से बांधकर दिखाया गया है. जबकि वीर नारायण सिंह को लेकर अंग्रेज सरकार की ओर से लिखे गए तमाम पत्र भी मौजूद हैं. इसमें साफ तौर पर उल्लेख है कि वीर नारायण सिंह को सेंट्रल जेल के बाहर क्रांतिकारियों की मौजूदगी में फांसी की सजा दी गई थी.

डाक टिकट

डाक टिकट जारी होने के चलते लोगों में भी भ्रांतियां

भारतीय डाक विभाग की ओर से जारी किए गए डाक टिकट में की गई गलती के चलते ही शहीद वीर नारायण सिंह के लिए लोगों में भी भ्रांतियां हैं. जय स्तंभ चौक में सजा देने को लेकर भी लोगों में भ्रांतियां है. जबकि जय स्तंभ चौक में उन्हें सजा नहीं दी गई थी. उन्हें सेंट्रल जेल के बाहर ही सजा दी गई थी.

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पिता से विरासत में मिली निडरता

महानदी की घाटी और छत्तीसगढ़ के माटी में जन्मे शहीद वीर नारायण सिंह का जन्म 1795 में सोनाखान के जमींदार परिवार रामसाय के घर हुआ था. वे बिनछवार आदिवासी समूह के थे. उनके पिता ने 1818-19 के दौरान अंग्रेजों और भोंसले राजाओं के विरुद्ध तलवार उठाई. लेकिन कैप्टन मैक्सन ने विद्रोह को दबा दिया था. इसके बाद विभिन्न आदिवासियों के सामर्थ्य और संगठित शक्ति के कारण जमींदार रामराय का सोनाखान का क्षेत्र में दबदबा बना रहा. जिसके चलते अंग्रेजों ने उनसे संधि कर ली थी. देशभक्ति और निडरता वीर नारायण सिंह को पिता से विरासत में मिली थी.

गोदाम से गरीबों को बंटवा दिया था अनाज

1856 में छत्तीसगढ़ में सूखा पड़ा था. अंग्रेजों की ओर से लागू किए गए कानून के कारण भुखमरी का प्रकोप था. शहीद वीर नारायण सिंह ने अंग्रेजों के समर्थक व्यापारियों से गोदाम से पड़े अनाज को ग्रामीणों को बंटवाने का आग्रह किया था. लेकिन व्यापारी तैयार नहीं हुए. इसके बाद उन्होंने गोदाम के ताले तोड़कर ग्रामीणों में अनाज बंटवा दिया. उनके इस कदम को लेकर ब्रिटिश शासन ने काफी नाराजगी जताई. 24 अक्टूबर 1856 को उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. संबलपुर से गिरफ्तार कर उन्हें रायपुर के सेंट्रल जेल में बंद किया गया था. 1857 के स्वतंत्रता की लड़ाई तेज हुई तो प्रांत के लोगों ने जेल में बंद वीरनारायण को ही अपना नेता मान लिया और वे सब अंग्रेज के खिलाफ विद्रोह में कूद गए.

Last Updated :Jan 26, 2021, 3:19 PM IST

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