रायपुर/हैदराबाद:आादि गुरु शंकराचार्य की तपोभूमि भी भूधंसाव की जद में है. joshimath sinking नगर धीरे-धीरे अपने सांस्कृतिक और ऐतिहासिक अस्तित्व को खो रहा है. यही हाल रहा तो जोशीमठ के मठ मंदिर भी किस्से कहानियों का हिस्सा बनकर रह जाएंगे. Math Temple of Joshimath इसके लिए एक तरफ धार्मिक भविष्यवाणी है तो वहीं दूसरी ओर वैज्ञानिक कारण गिनाए जा रहे हैं. Joshimath पर आए इस खतरे को लेकर साल 1976 में भी भविष्यवाणी की गई थी. तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर की अध्यक्षता वाली समिति ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था।
जोशीमठ पर क्यों बढ़ता जा रहा है खतरा:हिमालय की तलहटी में बसे जोशीमठ ने पिछले कुछ दशकों में अंधाधुंध निर्माण और जनसंख्या का विस्फोट दिखा है. सेंट्रल हिमालय पर मौजूद जोशीमठ का मेन सेंट्रल थ्रस्ट क्षेत्र में होना इसकी सबसे बड़ी वजह माना जा रही है. उत्तराखंड के ज्यादातर गांव 1900 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे हुए हैं. यह गांव इंडियन और तिब्बतन प्लेट के बीच मौजूद उन क्षेत्रों में भी हैं, जो मेन सेंट्रल थ्रस्ट (बेहद कमजोर क्षेत्र) में मौजूद हैं. छोटे-छोटे भूकंप (Earthquake), पानी से भू कटाव को भी इस खतरे की बड़ी वजह माना जा रहा है. इसमें अलकनंदा और धौलीगंगा नदियां जोशीमठ शहर के नीचे की मिट्टी का कटान कर रही हैं.