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1857 की क्रांति से रायपुर पुलिस ग्राउंड का कनेक्शन, जानें, कैसे उठी यहां से विद्रोह की ज्वाला

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Published : Aug 14, 2021, 9:17 PM IST

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छत्तीसगढ़ की माटी में कई वीर सपूतों ने जन्म लिया है. यहां के वीरों ने आजादी की लड़ाई के लिए अपने खून की नदियां तक बहाई हैं. इसकी गवाही शहर की कई इमारतें और सड़कें दे रहीं हैं. इसी में से एक है राजधानी रायपुर के बीचों बीच स्थित पुलिस परेड ग्राउंड.

रायपुर: कहा जाता है कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी 1854 में पहली बार रायपुर पहुंची थी. इस दौरान उन्होंने वर्तमान पुलिस ग्राउंड को फौजी छावनी के रूप में तैयार किया था. यहां कंपनी के जवानों के ठहरने के साथ ही शस्त्रागार भी तैयार किया गया था. छावनी मैदान से कंपनी आस-पास के इलाकों या जिलों की देखरेख किया करती थी. उस दौरान ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का हिस्सा भारतीय जवान भी हुआ करते थे. रायपुर की इस फौजी छावनी में छत्तीसगढ़ियों के अलावा मद्रासी, पंजाबी और बंगाली समेत कई राज्यों के जवान भी शामिल थे. मध्य प्रांत के दृष्टिकोण से अंग्रेजों के लिए फौजी छावनी काफी महत्वपूर्ण माना जाता था.

रायपुर पुलिस ग्राउंड

पुलिस मैदान में हनुमान सिंह ने की थी अंग्रेज अफसर की हत्या

जानकारों की मानें तो 1857 की क्रांति देशभर में उफान पर थी, तब धीरे-धीरे क्रांति की यह आग रायपुर भी पहुंची. इसके बाद 1858 में क्रांति की ज्वाला ऐसी फटी, जिसने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया.

इतिहासकार आचार्य रमेन्द्र नाथ मिश्र बताते हैं कि 1858 में फौजी छावनी विद्रोह में शहीद वीर नारायण सिंह का त्याग और बलिदान व्यर्थ नहीं गया. 18 जनवरी 1858 की शाम मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह राजपूत ने तीसरी टुकड़ी के सार्जेंट मेजर सिडवेल की तलवार से हत्या कर विद्रोह प्रारंभ कर दिया. इसमें 17 सिपाहियों ने हनुमान सिंह का साथ दिया. इस दौरान अंग्रेजों और क्रांतिकारियों के बीच 6 घंटे तक जमकर युद्ध हुआ.

वीर नारायण सिंह की मौत के बाद विद्रोह

इतिहासकार आचार्य रमेन्द्रनाथ मिश्र ने ईटीवी भारत को बताया कि सोनाखान के जमींदार और छत्तीसगढ़ के पहले क्रांतिकारी वीर नारायण सिंह को अंग्रेजों ने 10 दिसंबर 1857 को वर्तमान सेंट्रल जेल के सामने फांसी दे दी. फांसी के समय बड़ी संख्या में सैनिक भी मौजूद थे. हालांकि उस दौरान उन भारतीय सैनिकों ने किसी तरह का कोई विरोध नहीं किया, लेकिन उन्होंने संकल्प लिया कि वीर नारायण सिंह के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगे. जिसके तहत फौजी छावनी में 18 जनवरी की रात करीब 8 बजे ब्रिटिश अफसर के कमरे में जाकर हनुमान सिंह ने हत्या कर दी. हत्या के बाद भगदड़ की स्थिति निर्मित हो गई थी. उसके बाद अंग्रेजों और हनुमान सिंह के 17 साथियों के साथ लगभग 6 घंटे तक विद्रोह हुआ.

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छावनी विद्रोह में शामिल 17 क्रांतिकारियों को फांसी

छावनी में जब अंग्रेज अफसर की हत्या की खबर फैली तो सनसनी फैल गई. बड़ी संख्या में अधिकारियों समेत अंग्रेज अफसर पहुंच गए. इस दौरान अंग्रेजों ने चारों कोने से क्रांतिकारियों को घेर लिया. जिसमें हनुमान वहां से किसी तरह निकलने में कामयाब हो गए, लेकिन 17 क्रांतिकारी अंग्रेजों की गिरफ्त में आ गए. इतिहासकार रमेन्द्र नाथ मिश्र बताते हैं कि छावनी में जिस तरह का विद्रोह हुआ था, उससे अंग्रेज अफसर घबरा गए थे. उन्हें डर सताने लगा था कि कहीं विद्रोह की आग फैल न जाए. ऐसे में अंग्रेजों ने आनन-फानन में 22 जनवरी को सभी क्रांतिकारियों को जेल के सामने सूली पर चढ़ा दिया .

कोई और न करे विद्रोह, जप्त कर लिए संपत्ति

जानकर बताते हैं कि छावनी विद्रोह एक ऐसा विद्रोह था, जिससे अंग्रेज अफसर भयभीत हो गए थे. क्योंकि वीर नारायण सिंह के विद्रोह के बाद हनुमान सिंह के नेतृत्व में छावनी विद्रोह हो गया. ऐसे में अंग्रेजों ने छावनी विद्रोह में शामिल सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की संपत्ति को जप्त कर लिया. इसके साथ ही क्रांतिकारियों के परिजनों को भी प्रताड़ना दी गई, ताकि कोई और इस तरह का विद्रोह ना कर सके.

इन 17 क्रांतिकारियों को दी गई फांसी

इतिहासकार बताते हैं कि मैगजीन लश्कर हनुमान सिंह राजपूत छावनी विद्रोह के नेता थे. हालांकि विद्रोह के दौरान अंग्रेजों के चंगुल से वे बच निकले थे, लेकिन 17 सैनिक अंग्रेजों की गिरफ्त में आ गए थे. उन सभी को रायपुर सेंट्रल जेल के सामने फांसी दे दी गई थी. उनमें गौज खान (गाजी खान), अब्दुल हयात (अहदुल हयात), मुल्लू (मल्लू या मुलीस), शिव नारायण, पन्नालाल, मातादीन, ठाकुर सिंह (ठेऊर सिंह), अकबर हुसैन, बल्ली दुबे (बली दुबे या बुलिहू दुबे), लल्ला सिंह (लूल्ला सिंह), बुद्धू (बुदलू), परमानंद, शोभाराम, दुर्गा प्रसाद, नजर मोहम्मद, शिव गोविंद (जय गोविंद) और देवीदीन शामिल हैं.

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