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अबूझमाड़ पीस हाफ मैराथन: धावकों ने चखा बस्तरिया कोल्ड ड्रिंक 'मड़िया पेज' और 'चापड़ा चटनी' का स्वाद

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Published : Mar 1, 2021, 1:16 PM IST

Updated : Mar 1, 2021, 1:30 PM IST

Runners tasted Madia Page and Chapada Chutney in the Abujhmad peace Half Marathon In Narayanpur
धावकों ने चखा मड़िया पेज और चापड़ा चटनी का स्वाद

अबूझमाड़ पीस हाफ मैराथन में पहुंचे धावकों ने मड़िया पेज और चापड़ा चटनी का स्वाद चखा. धावकों और दूसरे लोगों ने इसकी काफी तारीफ की.

नारायणपुर:अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित अबूझमाड़ पीस हाफ मैराथन बीते दिनों नारायणपुर में संपन्न हुआ. इस मैराथन में शामिल होने जिले और राज्यों से हजारों धावक शामिल हुए. यहां शामिल हुए धावकों को नारायणपुर की संस्कृति देखने को तो मिली ही. इसके साथ ही उन्हें यहां का पारंपरिक स्वाद भी चखने को मिला. धावकों को 'मड़िया पेज' और स्वादिष्ट देसी 'चापड़ा चटनी' का भी स्वाद मिला.

यहां की आदिवासी स्वससहायता समूहों की महिलाओं ने स्टॉल लगाकर धावकों और यहां आए लोगों को देसी दोना-पत्तल में मड़िया पेज और चापड़ा चटनी दी. जिसकी तारीफ लोगों ने की.

धावकों ने मड़िया पेज और चापड़ा चटनी का स्वाद चखा

अबूझमाड़ पीस हाफ मैराथन में चापड़ा चटनी और मड़िया पेज

कुरुसनार गांव की महिला समूह की शांति बाई ने बताया कि मड़िया पेज, चापड़ा चटनी सहित अन्य अलग-अलग साग भाजी और टमाटर की चटनी बनाई गई. समूह की 14 महिलाओं ने 3 से 4 दिन में तैयार किया. उन्होंने बताया कि उन्हें काफी खुशी हो रही है कि बाहर से आने वाले लोग अबूझमाड़ के खान-पान से रूबरू हो रहे हैं. यहां पहुंचे प्रतिभागियों ने मड़िया पेज और चापड़ा चटनी की काफी तारीफ की. प्रतिभागियों ने बताया कि पहली बार उन्होंने इस तरह का पेय पदार्थ और चटनी खाया.

धावकों ने चखा मड़िया पेज और चापड़ा चटनी का स्वाद

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मड़िया पेज

मड़िया पेज ना सिर्फ एक पेय पदार्थ है बल्कि आदिवासियों की पहचान का एक हिस्सा भी है. यह एक ऐसा पेय पदार्थ है जो बस्तर के लोगों को लू की चपेट में आने से रोकता है और यहां के लोग गर्मी में इसका भरपूर इस्तेमाल करते हैं. मड़िया जिसे रागी भी कहते है क्षेत्र में पैदा होने वाला एक मोटा अनाज होता है. जिसके आटे को मिट्टी के बर्तन में रातभर भिगा कर रखा जाता है. सुबह पानी में चावल डालकर पकाते हैं. चावल पकने पर उबलते हुए पानी में भिगाए हुए मड़िया के आटे को घोला जाता है. स्थानीय हलबी बोली में इसे पेज कहते हैं. इसका सेवन करने से शरीर को ठंडकता मिलती है और भूख भी शांत होती है. यह शरीर के लिए स्वास्थ्यवर्धक और लाभप्रद भी है.

स्व सहायता समूहों की महिलाओं ने बनाया मड़िया पेज और चापड़ा चटनी

चापड़ा चटनी

चापड़ा चटनी लाल चीटियों से बनने वाली चटनी है. स्थानीय भाषा में हलिया, चापड़ा, चपोड़ा या चेपोड़ा कहा जाता है. लाल चींटी और उसके अंडों के कई मेडिसिनल वैल्यू है. गांव में आज भी बुखार के प्राथमिक उपचार के रूप में चापड़ा चींटी की चटनी का प्रयोग होता है. इस चटनी को खाने से बुखार उतर जाता है. यहां के लोगों का मानना है कि चापड़ा चींटी स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हैं. इसके सेवन से मलेरिया, पित्त और पीलिया जैसी बीमारियों से आराम मिलने का दावा किया जाता है. स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होने के साथ-साथ प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत कर रोगों से बचाव करने में मददगार होती है.

बस्तर क्षेत्र के लोग साल भर चापड़ा चटनी का उपयोग अपने भोजन में करते हैं. अब चापड़ा चटनी का उपयोग शहरी लोग भी कर रहे हैं. जिसके कारण शहरों के सब्जी बाजारों में भी यह मिलने लगा है.

Last Updated :Mar 1, 2021, 1:30 PM IST

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