Bastar Dussehra 2023: बस्तर दशहरा के अनोखे रस्म काछन गादी की तैयारियां पूरी, जानिए कौन निभाएगा ये रस्म ?
Bastar Dussehra 2023: बस्तर दशहरा के अनोखे रस्म काछन गादी की तैयारियां पूरी कर ली गई है. शनिवार को बस्तर दशहरे की ये अनोखी रस्म निभाई जाएगी. ये परम्परा 600 सालों से चली आ रही है. ये पर्व कुल 75 दिनों तक चलता है.
बस्तर: विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा 75 दिनों तक चलता है. इस दशहरे में 12 से अधिक विश्व प्रसिद्ध रस्में होती है, जो निभाई जाती है. इस कड़ी में 14 अक्टूबर को बस्तर दशहरे की एक और खास रस्म काछन गादी निभाई जाएगी. ये रस्म शहर के भंगाराम चौक में स्थित काछन गुड़ी के सामने निभाई जाएगी, जिसकी तैयारियां दशहरा समिति ने पूरी कर ली है.
छोटी बच्ची निभाएगी रस्म:बस्तर दशहरे के इस खास रस्म को कोंडागांव जिले के आड़काछेपड़ा गांव की पनका जाति की छोटी बच्ची निभाएगी. इस बच्ची का नाम पीहू दास है. उसकी उम्र 8 साल है. पिछले साल भी इस खास रस्म को पीहू ने ही निभाया था. कहा जाता है कि राज-महाराजाओं के समय से ही पनका जाति को इस रस्म के लिए चुना गया था.
राजा महाराजाओं के समय में पनका जाति को इस रस्म के लिए चुना गया. करीब 22 पीढ़ी से इस रस्म को निभाया जा रहा है. कल 14 अक्टूबर को कांटा का झूला लाएंगे. कांटों के झूले में छोटी बच्ची को लिटाकर0 झुलाया जाएगा. इसके बाद राजा बस्तर दशहरा पर्व अच्छे से मनाए जाने के लिए देवी से अनुमति मांगेंगे. फिर देवी इशारा करके अनुमति देगी. अनुमति लेकर राजा वापस लौट जाएंगे.- भानो दास, पनका जाति की बुजुर्ग महिला
पनका जाति की आराध्य हैं काछन देवी:दरअसल, काछन देवी पनका जाति की आराध्य देवी हैं, इन्हें रण की देवी भी कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि काछन देवी आश्विन के अमावस्या के दिन पनका जाति की कुंवारी की सवारी करती है. इसे काछन गुड़ी के समक्ष कांटों के झूले पर लिटाकर झुलाया जाता है. इसी दिन शाम के समय बस्तर राजपरिवार, समस्त देवी-देवता, दशहरा समिति के सदस्य, मांझी चालकी, नाईक-पाईक मुंडा बाजा के साथ आतिशबाजी करते हुए काछनगुड़ी पहुंचते हैं.
600 सालों से चली आ रही परम्परा:कांटों के झूले पर लेटे काछन देवी से दशहरा को अच्छे से मनाने के लिए औपचारिक अनुमति मांगी जाती है. इस दौरान काछन के पुजारी और गुरुमां की ओर से धनकुल गीत गाया जाता है. यह प्रकिया पूरी होने के बाद अनुमति देने का देवी की ओर से राजा को इशारा मिलता है. देवी के इशारे के बाद राजपरिवार और समस्त सदस्य वापस दंतेश्वरी मंदिर पहुंचते हैं. इसके बाद होने वाले दशहरा पर्व के सभी रस्मों को विधि-विधान के साथ धूमधाम से मनाते हैं. यह परंपरा करीब 600 सालों से चली आ रही है. यही कारण है कि अनोखे रस्मों से भरे दशहरा पर्व को देखने के लिए हजारों पर्यटक बस्तर पहुंचते हैं.