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हरतालिका तीज के दूसरे दिन शंकनी डंकनी नदी पहुंच सुहागिनों ने किया गौरी-शंकर की मूर्ति का विसर्जन

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Published : Sep 10, 2021, 12:59 PM IST

Immersion of Gauri-Shankar's idol
गौरी-शंकर की मूर्ति का विसर्जन ()

हरतालिका तीज निर्जल व्रत के बाद दूसरे दिन शंकनी डंकनी नदी पहुंचकर सुहागिनें गौरी-शंकर की मूर्ति को विसर्जित करती हैं.

दंतेवाड़ा :हर साल भाद्र मास के शुक्ल पक्ष (Shukla Paksha of Bhadra month) की तृतीया तिथि को तीज का त्योहार मनाया जाता है. यह दिन माता पार्वती स्वरूप मां दंतेश्वरी को समर्पित होता है. मान्यता है कि इसी दिन महादेव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें विवाह के लिए हां कहा था. इसीलिए महिलाएं अपने पति की लंबी आयु (long life of husband) के लिए यह व्रत रखती हैं. माता पार्वती और महादेव का पूजन करने से विवाहित स्त्री का वैवाहिक जीवन (married life) सुखमय हो जाता है. हरतालिका तीज (Hartalika Teej) सुहागिन महिलाओं के लिए महत्वपूर्ण पर्व माना जाता है. इस दिन महिलाएं अखंड सौभाग्य और अपने वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए व्रत रखती हैं.

गौरी-शंकर की मूर्ति का विसर्जन

इस व्रत में महिलाएं माता गौरी से सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद मांगती हैं. दरअसल, यह व्रत निर्जल रखा जाता है. इसी कारण यह कठिन व्रतों में से एक माना जाता है. वहीं कुंवारी कन्याएं भी हरतालिका तीज व्रत रखती हैं. उनके द्वारा यह व्रत सौभाग्य प्राप्ति के लिए रखा जाता है. इसमें रात्रि जागरण का विशेष महत्व होता है. रात भर महिलाएं भजन-कीर्तन कर जागरण करती हैं. इसके बाद सुबह में स्नान कर पूजा करती हैं. फिर शिव-पार्वती की बनी मूर्ति व पूजा के सामानों का शकनी डंकनी नदी में विसर्जन कर दिया जाता है.

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