बिलासपुर: कानन पेंडारी से लगे कोपरा जलाशय में कई प्रजाति के विदेशी पक्षियों ने डेरा जमाना (Migrant birds camped in Kopra reservoir ) शुरू कर दिया है. लेकिन इससे वन विभाग बेखबर है. पक्षियों को किसी प्रकार का व्यवधान नहीं पहुंचा तो वे अप्रैल तक यहां रुकेंगे और फिर हिमालय के रास्ते अपने देश चले जाएंगे. कोपरा में लगभग हर साल अलग-अलग देशों के पक्षी प्रवास पर आते हैं और अपना कुनबा बढ़ाते हुए वापस चले जाते हैं. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट का मानना है कि गिधवा बर्ड सेंचुरी की जगह अगर कोपरा को बर्ड सेंचुरी बनाने पर ध्यान दिया जाए तो यहां पर्यटन को ज्यादा बढ़ावा मिलेगा.
कोपरा जलाशय पक्षियों के लिए अनुकूल
गिधवा जलाशय को छत्तीसगढ़ की पहली बर्ड सेंचुरी बनाने की कवायद राज्य शासन ने शुरू की है. वाइल्ड लाइफ के जानकारों का कहना है कि गिधवा जलाशय कोपरा जलाशय जैसा नहीं है. जिससे वहां बहुत कम ही पक्षी आते हैं. वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट प्राण चड्ढा बताते हैं कि पक्षियों के लिए उथले पानी की जरूरत होती है. जहां से वे वनस्पति और दूसरे जीव-जंतु का शिकार आसानी से करते हैं. कोपरा जलाशय पक्षियों के लिए अनुकूल है जबकि गिधवा में वैसी स्थिति नहीं है.
चड्ढा बताते हैं कि 'कोपरा में काफी बड़ी संख्या में पक्षियों के आने के बाद भी वन विभाग इनकी सुरक्षा के लिए कोई प्रयास नहीं कर रहा है. यहां ठहरने वाले देसी-विदेशी पक्षियों को सुरक्षा देने का कोई इंतजाम भी नहीं किया गया है. पक्षियों को सिर्फ उनके हाल पर छोड़ दिया गया है. विभाग की तरफ से बर्ड वाचिंग का कार्यक्रम बनाने की बात भी कही गई थी. लेकिन पक्षियों की सुरक्षा के लिए अधिकारिक रूप से कोई योजना जमीन पर नहीं उतरी है. जलाशय का इस्तेमाल आसपास के लोग अपनी गाड़ियां और कपड़ों को धोने के लिए करते हैं. जिससे जलाशय में प्रदूषण के साथ ही कपड़े पटके जाने की तेज आवाज से पक्षियों को भागना पड़ता है.
मई में आ सकता है ढेर सारी खूबियों वाला Google का स्मार्टवॉच
मार्च के बाद शुरू होगी प्रवासी पक्षियों की वापसी
कोपरा जलाशय प्रवासी पक्षियों के लिए काफी सुकून की जगह है. यही वजह है कि यहां अक्टूबर-नवंबर के महीने में साइबेरिया सहित कई इलाकों के देसी-विदेशी पक्षियों का डेरा लगा रहता है. पक्षियों का ये झुंड सकरी पेंड्रीडीह बाइपास पर स्थित कोपरा जलाशय के तट पर पूरा दिन खाने की तलाश करता है. रात में ये पेड़ों पर वास करते हैं. स्थानीय लोग इसे हंस या राजहंस कहते हैं. पक्षियों के कलरव से पूरा कोपरा जलाशय और आसपास का क्षेत्र गूंजने लगता है. जिससे यहां का दृश्य मनोरम स्थल बन जाता है. कोपरा जलाशय में यदि व्यवधान पैदा नहीं हुआ तो ये मार्च के बाद ही वापसी करते हैं.
जेट विमान की उड़ान की ऊंचाई के बराबर उड़ते हैं गूज
हेडेड गूज पक्षी हिमालय की 29 हजार से 37 हजार फिट की ऊंचाई से भी ज्यादा उड़ानभर कर भारत के विभिन्न हिस्सों में बसेरा करते हैं. इन्हें दुनिया का सबसे ज्यादा ऊंची उड़ान भरने वाला पक्षी माना जाता है. बार हेडेड गूज पक्षी प्रवास के दौरान दलदली क्षेत्रों में, खेतों के आस-पास, पानी व घास के नजदीक, झीलों के आसपास देखे जा सकते हैं. ये पक्षी समूह में रहते हैं और एक साथ इस तरह से उड़ते है कि बिना एक दूसरे से टकराए कई देशों का सफर करते है. तिब्बत, कजाकिस्तान, रूस, मंगोलिया से छत्तीसगढ़ के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचते हैं. ये पक्षी एक दिन में 16 सौ किलोमीटर की उड़ान भरने की क्षमता रखते हैं. बार हेडेड गूज के सिर और गर्दन पर काले निशान के साथ इनका रंग पीला ग्रे होता है.
इनके पैर मजबूत और नारंगी रंग के होते हैं. इनकी लंबाई 68 से 78 सेंटीमीटर, पंखों का फैलाव 140 से 160 सेंटीमीटर, वजन दो से तीन किलोग्राम होता है. मई के अंत में इनका प्रजनन शुरू होता है. ये अपना घोंसला खेत के टीले या पेड़ पर बनाते हैं. ये एक बार में तीन से आठ अंडे देते हैं. 27 से 30 दिनों में अंडे से बच्चे बाहर निकलते हैं. दो महीने के बच्चे उड़ान भरने लगते हैं और ये यहां से वापसी कर लेते हैं.