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Shardiya Navratri: सरगुजा की मां महामाया और रतनपुर महामाया का है गहरा रिश्ता

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Published : Sep 28, 2022, 9:26 AM IST

glory of Sarguja Maa Mahamaya

glory of Sarguja Maa Mahamaya: सरगुजा मां महामाया मंदिर के दर्शन करने हर साल लाखों लोग पहुंचते हैं. मां महामाया यहां विध्यवासिनी देवी के साथ जोड़े पर विराजी हैं. शारदीय नवरात्र में हर साल मां महामाया के मस्तिष्क का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार करते हैं.

सरगुजा:शक्ति की उपासना का महापर्व नवरात्र शुरू हो चुका है. नौ दिनों तक देवी के 9 रूपों की पूजा की जायेगी. पुराणों में वर्णित देवी के नौ रूप के साथ ही देश भर के शक्ति पीठ व अन्य प्राचीन देवी मंदिर हैं. इन सभी स्थानों की अपनी अपनी मान्यता है. सरगुजा में देवी की उपासना मां महामाया के रूप में की जाती है. यहां के लोगों की अटूट आस्था का केंद्र है महामाया मंदिर. नवरात्र शुरू होते ही यहां श्रद्धालुओं की भीड़ लगने लगी है. ऐसे में हम आपको बताने जा रहे हैं मां महामाया से जुड़ी कुछ प्राचीन और रोचक जानकारी.

मां महामाया मंदिर सरगुजा

महामाया और समलाया से जुड़ी मान्यता बेहद ही रोचक है. जानकार बताते हैं की मराठा यहां से मूर्ति ले जाने का प्रयास कर रहे थे, लेकिन वह मूर्ति उठा नहीं पाए और माता की मूर्ति का सिर उनके साथ चला गया, माता का सिर बिलासपुर के पास रतनपुर में मराठों ने रख दिया. तभी से रतनपुर की महामाया की महिमा भी विख्यात है. माना जाता है कि रतनपुर और अंबिकापुर में महामाया के दर्शन बिना पूजा अधूरी मानी जाती है.

सरगुजा की आराध्य देवी मां महामाया

मंदिर में बैठता था बाघ :कुंवार के महीने की शारदीय नवरात्रि में छिन्नमस्तिका महामाया के सिर का निर्माण राजपरिवार के कुम्हार हर साल करते हैं. ऐसे कई रहस्य महामाया मंदिर से जुड़े हैं जिससे बहुत से लोग अनजान हैं. सरगुजा राजपरिवार व इतिहास के जानकार गोविंद शर्मा बताते हैं कि "महामाया मंदिर का निर्माण सन 1910 में कराया गया था इससे पहले एक चबूतरे पर मां स्थापित थी और राज परिवार के लोग जब पूजा करने जाते थे तो वहां बाघ बैठा रहता था, सैनिक जब बाघ को हटाते थे तब जाकर मां के दर्शन हो पाते थे."


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