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Vaishali News: जलालपुर शहीद स्मारक पर लहराया तिरंगा, 88 साल बाद ही सेनानियों को मिला सम्मान, गांव में हर्ष

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Published : Jan 26, 2023, 11:05 PM IST

शहीद बैकुंठ शुक्ल के जन्मस्थली जलालपुर स्थित (Jalalpur birth place of Martyr Baikunth Shukla) स्मारक पर सरकारी झंडोत्तोलन से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई. 74वें गणतंत्र दिवस पर सरकारी कार्यक्रम की सूची में शामिल किया गया. आखिरकार 88 साल बाद ही सेनानियों को सम्मान मिलने से लोगों में हर्ष का माहौल है. पढ़ें पूरी खबर..

जलालपुर शहीद स्मारक पर फराया गया तिरंगा
जलालपुर शहीद स्मारक पर फराया गया तिरंगा

जलालपुर शहीद स्मारक पर फराया गया तिरंगा

वैशाली:बिहार के वैशाली में 74वें गणतंत्र दिवस पर शहीद बैकुंठ शुक्ल के जन्मस्थली जलालपुर स्थित स्मारक को सरकारी झंडोत्तोलन से लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई. बीडीओ पुलक कुमार ने शहीद बैकुण्ठ शुक्ला की शहादत के 88 वर्ष बाद सरकारी सैल्यूट के साथ झंडोत्तोलन किया. शहीद बैकुण्ठ शुक्ल स्मृति मंच के द्वारा इस मांग को प्रमुखता से उठाया गया था. जिसका समर्थन सामाजिक कार्यकर्ता के साथ स्थानीय लोगों ने भी किया था.

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88 साल बाद ही सेनानियों को सम्मान मिला:लोगों ने बताया कि आजादी की लड़ाई में पंजाब के चाचा भतीजे अजीत सिंह और भगत सिंह ने जिस तरह अंग्रेजों को धूल चटाई था. उसे आज भी जमाना याद करता है. ऐसी ही एक जोड़ी बिहार के वैशाली जिले के लालगंज प्रखंड की जलालपुर पंचायत में थी. जिसने अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे. जिन्हें शेरे बिहार की पदवी से नवाजा गया. उनका नाम है योगेंद्र शुक्ल और उनके भतीजे शहीद बैकुंठ शुक्ल. शहीद बैकुंठ शुक्ल की शहादत के तकरीबन 88 साल बीत गए. मगर अबतक इनके जन्मस्थली जलालपुर स्थित स्मारक को सरकारी झंडोत्तोलन कार्यक्रम की सूची में शामिल नहीं किया गया था. 74वें गणतंत्र दिवस पर सरकारी कार्यक्रम की सूची में शामिल किया गया. जिससे इस इलाके में खुशी की लहर है.

चंद्रशेखर आजाद से ज्यादा प्रभावित थे योगेंद्र शुक्ल:बताया जाता है कि योगेंद्र शुक्ल गांधी और कांग्रेस से भले जुड़े थे मगर चंद्रशेखर आजाद से ज्यादा प्रभावित थे. पहली बार बनारस शहर में दोनों मिले थे. पंजाब के शहीद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को चंपारण के जंगलों में योगेंद्र शुक्ल ने ही हथियार चलाना सिखाया था. तिरहुत षड्यंत्र के आरोप में काले पानी को सजा भी हुई. वहीं योगेंद्र शुक्ल के भतीजे बैकुंठ शुक्ल की कहानी भी आपके अंदर जोश और उत्साह भर देगा. भगत सिंह के मित्र फणींनद्र नाथ घोष ने जब गद्दारी की और सरकारी गवाह बन गए तब भगत सिंह को लाहौर षड्यंत्र के आरोप में फांसी दे दी गई.

"यह हम लोगों के लिए बड़ी गर्व की बात है गर्व की बात है और सम्मान के भी बात है. हम हमारा पंचायत हमारा लालगंज इस बात के लिए खुशी जाहिर कर रहा है. हम सरकार को भी धन्यवाद दे रहे हैं कि श्री बैकुंठ शुक्ला और योगेंद्र शुक्ला जी को जो सम्मान मिलना चाहिए. वह धीरे-धीरे मिल रहा है"-मुन्ना शुक्ला, पूर्व विधायक लालगंज

"हमारे यहां सरकारी कार्यक्रम करते हैं और वीर शहीदों को श्रद्धांजलि भी करते हैं. उसी के क्रम में बहुत विशिष्ट लोग हुआ करते थे. उनका योगेंद्र शुक्ला जी और बैकुंठ शुक्ल जी उनके बारे में लगातार डिमांड आ रहा था. यहां के आम पब्लिक का बहुत पिटिशन आता था कि उनको भी एक सरकारी कार्यक्रम में सम्मलित किया जाए और झंडोत्तोलन किया जाए. सरकारी कार्यक्रम में सम्मलित किया गया. यह हम लोगों के लिए सम्मान की बात है"-पुलक कुमार, वीडियो लालगंज

गया सेंट्रल जेल दी गई थी फांसी:फणींनद्र नाथ घोष की इस गद्दारी का बदला लेने का जिम्मा बैकुंठ शुक्ल ने उठाया. लालगंज से बेतिया साइकिल से जाकर फणींनद्र नाथ घोष की हत्या कर बदला पूरा किया था. बैकुंठ शुक्ल को जब अंग्रेजों ने सोनपुर पुरानी पूल पर घेर लिया था तब वे साइकिल समेत गंगा नदी में कूद गए और मोकामा में निकले. बाद में गया सेंट्रल जेल में उन्हें फांसी की सजा दे दी गई. इन दोनों वीरों को ऐसी कई सारी कहानियां हैं. जो आपके अंदर देश भक्ति का संचार कर देगा.

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