पटना: बिहार में चुनाव में जातीय समीकरण बहुत मायने रखता है. सभी दल जातीय समीकरण और सामाजिक समीकरण के हिसाब से ही सीटों के चयन से लेकर उम्मीदवारों के चयन तक करते हैं, यह किसी से छिपा नहीं है. इन दिनों राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा के ठाकुर वाले कविता को लेकर जाति पर सियासत शुरू है. कोशिश राजपूत वर्सेस ब्राह्मण करने की भी हो रही है.
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वोटों का गणित: बिहार में राजपूत और ब्राह्मणों की कुल वोट 10 से 11% के करीब है. ऐसे तो अपर कास्ट के अधिकांश वोट पर एनडीए अपना दावा करती रही है, लेकिन महागठबंधन को भी राजपूत और ब्राह्मण का वोट मिलता रहा है. ऐसे में राजद सांसद मनोज झा के बयान के बाद राजद के राजपूत विधायक (चेतन आनंद) की तरफ से ही आपत्ति जताई गई.
इन सीटों पर राजपूत-ब्राह्मण का दबदबा: ऐसे तो बिहार में पिछले दो दशक से अधिकांश सवर्ण वोट बैंक पर एनडीए का ही कब्जा रहा है. उसमें भी बीजेपी आगे रही है. राजपूत और ब्राह्मण की बात करें तो दोनों का वोट प्रतिशत 10 से 11% के बीच है. राजपूत जहां 5% है तो वहीं ब्राह्मण 6% के करीब है. बिहार में आरा, सारण, महाराजगंज, औरंगाबाद वैशाली जैसे जिलों में राजपूत का दबदबा है तो वही दरभंगा, मधुबनी, गोपालगंज, कैमूर, बक्सर में ब्राह्मणों का दबदबा माना जाता है. इन सीटों से राजपूत और ब्राह्मण उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं.
30- 35 विधानसभा क्षेत्रों में राजपूत मतदाता निर्णायक: इसके अलावा 30 से 35 विधानसभा क्षेत्र में राजपूत मतदाता हार जीत तय करते हैं. कमोबेश यही स्थिति ब्राह्मण मतदाताओं की भी है. आनंद मोहन 1990 के दौर में राजपूत और ब्राह्मण युवकों के हीरो हुआ करते थे, लेकिन 1994 में आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या में उम्रकैद की सजा हो गई. इसके कारण वह प्रभाव जाता रहा. अब उनकी रिहाई हो गई है. फिर से राजनीति में सक्रिय हैं. 2024 के चुनाव में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाना चाहते हैं.
बोले जदयू के मंत्री- 'ऐसे बयान से करें परहेज:' इसलिए राज्यसभा में आरजेडी सांसद मनोज झा के ठाकुर कविता पढ़े जाने के एक सप्ताह बाद इसे तूल देने की कोशिश की गई. आनंद मोहन के बेटे चेतन आनंद राजद के विधायक हैं. सबसे पहले उनकी तरफ से ही आपत्ति जताई गई. फिर पूरा परिवार इस मामले में कूद पड़ा. विभिन्न दल के राजपूत नेताओं ने भी अपने-अपने तरीके से बयान दिया. बीजेपी के नेता इस मामले में आगे दिख रहे हैं. महागठबंधन खेमा जहां मनोज झा के साथ दिख रहा है. वहीं जदयू की तरफ से एक दिन पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह द्वारा दिए गए बयान से थोड़ा हटकर मंत्री संजय झा ने कहा कि हमारे नेता सभी जाति धर्म को सम्मान आदर देते हैं. इसलिए सार्वजनिक तौर पर इस तरह के बयान से बचना चाहिए.
"हमारी पार्टी और हमारे नेता सभी जाति का सम्मान करते हैं. किसी को छोड़कर नहीं बल्कि सभी को साथ लेकर चलते हैं. मैं इतना ही कहूंगा कि जब सार्वजनिक तौर पर हम कोई भाषण देते हैं या कोई कविता बोलते हैं तो समाज को आहत करने से परहेज करना चाहिए."-संजय झा, जदयू कोटे से मंत्री
'बिहार को फिर से जातिवाद के दौर में झोंकने की कोशिश': बीजेपी के राजपूत विधायक और नेता आरजेडी सांसद मनोज झा के खिलाफ आपत्तिजनक बयान तक दे रहे हैं. वहीं पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने तेजस्वी यादव से इस मामले में माफी मांगने की बात कही, लेकिन नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा का कहना है कि बिहार को फिर से जातिवाद के दौर में झोंकना चाहते हैं. सभी जाति के लोग मिलकर उसका विरोध करें. एक तरह से बीजेपी का निशाना राजद ही है.
"जाति की बात करने वाले जहरीले नाग बिहार की प्रतिभा, विरासत, सम्मान और स्वाभिमान को बार-बार चोट पहुंचा रहे हैं. ऐसे लोगों के विरुद्ध सभी को मिलकर अभियान चलाना चाहिए."- विजय सिन्हा, नेता प्रतिपक्ष विधानसभा
राजनीतिक विशेषज्ञों की राय: वहीं राजनीतिक विशेषज्ञ प्रिय रंजन भारती का कहना है बिहार में राजनीति की सियासत कोई नई बात नहीं है. उम्मीदवार से लेकर सीटों तक में इसका ध्यान रखा जाता है.। ब्राह्मण और राजपूत का बिहार की राजनीति में शुरू से दबदबा रहा है. हालांकि 90 के दशक के बाद से यह दबदबा कमा जरूर है, लेकिन कुछ बयानों से राजपूत और ब्राह्मण एक दूसरे के खिलाफ हो जाएंगे, इसकी संभावना कम है. ऐसे राजपूत और ब्राह्मण वोट बैंक माना जाता है कि यह एनडीए के साथ बड़ा हिस्सा जाता है.
"इस तरह के बयानों से बचना चाहिए क्योंकि ठाकुर कविता जिस तरह से पढ़ा गया और जिस संदर्भ में लिखा गया है यह आज के लिए उपयुक्त नहीं है. इसलिए इस तरह की कविता पाठ से एक खास जाति असहज होता है. क्योंकि ठाकुर का अभिप्राय क्षत्रिय से ही लगाया जाता है. ऐसे तो लिखने के लिए मैथिली ब्राह्मण भी ठाकुर लिखते हैं और दूसरे लोग भी लेकिन लोग क्षत्रिय को ही इससे जोड़ते हैं."-प्रोफेसर अजय झा, राजनीतिक विशेषज्ञ