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'क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा', BJP ने उठाए सवाल तो बिहार की राजनीति में मचा बवाल

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Published : Jan 16, 2022, 9:02 PM IST

क्या वाकई क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा (Regional Parties are threat to National Identity) हैं, ये सवाल इसलिए क्योंकि पिछले दिनों बीजेपी के एक नेता ने ऐसी ही टिप्पणी की थी. जिसके बाद से बिहार के तमाम क्षेत्रीय दलों के नेता आगबबूला हैं. बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने भी इस पर बेहद कड़ी आपत्ति जताई है. पढ़ें ये खास रिपोर्ट...

राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों में टकराव
राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों में टकराव

पटना: भारत में बहुदलीय व्यवस्था है. लोकतांत्रिक प्रणाली में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की अहम भूमिका है. समाज में विषमताओं के कारण कई क्षेत्रीय दल अस्तित्व में आए, लेकिन राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों में टकराव (Conflict Between National and Regional Parties) की स्थिति बनी रही. भले ही दोनों ने एक दूसरे का सहयोग लिया हो, इसके बावजूद राष्ट्रीय दलों की प्रतिक्रिया इस रूप में सामने आती रहती हैं, जो बताती हैं कि वे क्षेत्रीय दलों को लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए सही नहीं मानते.

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वैसे भारत में ना केवल राष्ट्रीय दल हैं, बल्कि क्षेत्रीय और राज्यस्तरीय दलों की संख्या अच्छी खासी है. क्षेत्रीय दलों के अस्तित्व का इतिहास भी पुराना है. पंजाब में 1920 से ही अकाली दल वहां की क्षेत्रीय राजनीति की जड़ जमाए हुए हैं. जबकि तमिलनाडु में साल 1949 में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) का गठन हुआ था. भारत में क्षेत्रीय दलों का गठन सामाजिक आर्थिक विषमता के अलावा जाति, धर्म, संप्रदाय और भाषा के आधार पर हुआ. 1952 में जब लोकसभा चुनाव हुए तो 25 क्षेत्रीय दलों को चुनाव आयोग द्वारा मान्यता दी गई. वर्तमान में चुनाव आयोग ने 58 क्षेत्रीय दलों को मान्यता दे रखी है.

देखें रिपोर्ट

हाल के कुछ वर्षों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सशक्त हो कर उभरी है. अकेले केंद्र में बहुमत में है. वहीं बिहार में जेडीयू के साथ मिलकर सालों से सरकार में है लेकिन हालिया दिनों में जब दोनों के बीच तल्खी बढ़ी तो बीजेपी नेताओं ने कहा दिया कि क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा (Regional Parties are threat to National Identity) हैं. यहां तक कि इसे एक गिरोह तक की संज्ञा दे दी.

क्षेत्रीय दलों को राष्ट्रीय अस्मिता के लिए खतरा बताने पर बीजेपी की सहयोगी जेडीयू ने कड़ा ऐतराज जताया है. मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने कहा कि क्षेत्रीय दलों का विरोध करना शर्मनाक है. इंद्र कुमार गुजराल, चंद्रशेखर और वीपी सिंह क्षेत्रीय दलों से थे और सभी लोग देश के प्रधानमंत्री बने थे, क्या वे लोग देश के लिए खतरा थे. बीजेपी भी क्षेत्रीय दलों के सहयोग से ही केंद्र की सत्ता में आई.

"जिन लोगों ने ये सवाल किया है, मैं उनसे जानना चाहता हूं कि क्या देश के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह, चंद्रशेखर और इंद्र कुमार गुजराल के लिए इनकी टिप्पणी शोभा देती है. क्षेत्रीय दलों के सहयोग से विभिन्न राष्ट्रीय पार्टियों की केंद्र में सरकार बनी हैं"- नीरज कुमार, मुख्य प्रवक्ता, जेडीयू

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वरिष्ठ पत्रकार कौशलेंद्र प्रियदर्शी का मानना है कि लोकतंत्र में राष्ट्रीय दलों के साथ-साथ क्षेत्रीय दलों की भी भूमिका है. क्षेत्रीय दलों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता. उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय दल संविधान का हिस्सा और लोकतंत्र में उनकी हिस्सेदारी को नकारा नहीं जा सकता है. बिहार जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दल जन आंदोलनों से निकले हैं, उनको गिरोह कहना कतई सही नहीं है.

"क्षेत्रीय दल संविधान का हिस्सा और लोकतंत्र में उनकी हिस्सेदारी को नकारा नहीं जा सकता है. बिहार जैसे राज्यों में क्षेत्रीय दल जन आंदोलनों से निकले हैं, उनको गिरोह कहना कतई सही नहीं है"-कौशलेंद्र प्रियदर्शी, वरिष्ठ पत्रकार

वहीं, राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संजय कुमार का कहना है कि क्षेत्रीय दलों का भी अस्तित्व होता है. उनका अस्तित्व इसलिए होता है कि वह क्षेत्रीय मुद्दों को उठाते हैं और उसके लिए संघर्ष करते हैं. जनता का समर्थन उन्हें हासिल होता है. उन्होंने कहा कि संविधान के हिसाब से वह पार्टी का गठन भी करते हैं, उन्हें किसी भी तरीके से गिरोह की संज्ञा नहीं दी जा सकती है.

"क्षेत्रीय दल क्षेत्रीय मुद्दों को उठाते हैं और उसके लिए संघर्ष करते हैं. इसलिए जनता का समर्थन भी उन्हें हासिल होता है. संविधान के हिसाब से वह पार्टी का गठन भी करते हैं, उन्हें किसी भी तरीके से गिरोह की संज्ञा नहीं दी जा सकती है"- डॉ. संजय कुमार, राजनीतिक विश्लेषक


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दरअसल, बीजेपी ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय महामंत्री सह बिहार भाजपा प्रवक्ता डॉ० निखिल आनंद ने देश के क्षेत्रीय दलों को टार्गेट करते हुए जेडीयू पर हमला बोला था. उन्होंने कहा कि क्षेत्रीय दलों ने अमूमन भारत के समाज, राजनीति, राष्ट्र की अस्मिता और गौरव को जितना ठेस पहुँचाया है, उतना किसी ने नहीं पहुंचाया. क्षेत्रीय दल अमूमन या तो परिवार की पार्टियां हैं या फिर निजी पॉकेट की दुकान हैं. क्षेत्रीय दलों के तथाकथित स्वयंभू राष्ट्रीय नेता सिर्फ एक वैचारिक आडंबर खड़ा करते हैं. इस वैचारिक आडंबर की बुनियाद को ये क्षेत्रीय दल और नेता अपने लिए अय्याशी, उगाही, प्रोपेगेंडा का माध्यम बनाते है. राजनीति के नाम पर सिर्फ गिरोह खड़ा करते हैं. बारगेन करके राजनीति करना इनकी आदत में शामिल है. ऐसे राजनीतिक दल अमूमन राष्ट्रीय संदर्भ में किसी न किसी राष्ट्रीय राजनीतिक दल से भी खुद को जोड़ लेते हैं और उनके कंधे पर सवार होकर खुद को ऊंचा एवं बड़ा समझने और दिखाने लगते हैं. ऐसे राजनीतिक दलों को अपना कद भी नाप लेना चाहिए.

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