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विदेशों तक पहुंच रही बाढ़ की 'लाई' की खूशबू

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Published : Dec 16, 2020, 10:00 PM IST

प्रसिद्ध लाई
प्रसिद्ध लाई ()

बिहार की मिठाईयों की बात चले और उसमें बाढ़ की लाई का जिक्र न हो ऐसा संभव नहीं. ये मिठाई अपने स्वाद के लिए देश-दुनिया में मशहूर है. बाढ़ की प्रसिद्ध लाई की खासियत ये है कि यह कई दिनों तक अच्छी रहती है और खराब नहीं होती.

नालंदा: बिहार के छोटे-छोटे शहर और कस्बे भी अपनी विशिष्ट मिठाइयों के लिए मशहूर है. यहां के शुद्ध खोए और रामदाने से बनी मिठाई लाई का नाम सुनते ही आम हो या खास, देसी हो या विदेशी सभी लोग इसकी ओर खिंचे चले आते हैं. अगर आप पटना से गया की ओर जा रहे हैं तो धनरूआ और पटना से मोकामा की ओर जा रहे हैं तो बाढ़. दोनों रास्ते से गुजरने वाले यहां के खोये और मावे की लाई ज़रूर चखते हैं. जायकेदार 'लाई' की फैन फौलोइंग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसके स्वाद से अछूते नहीं है.

विदेशों तक पहुंच रही बिहार की 'लाई' की खूशबू

'हमलोग पटना से बेगूसराय जब भी जाते हैं तो बाढ़ में रुककर यहां की प्रसिद्ध लाई जरूर खाते हैं. यहां गुमटीवाले की लाई काफी अच्छी होती है'-रमेश कुमार, ग्राहक, बाढ़

कई दिनों तक खराब नहीं होती लाई
बाढ़ के लाई की खासियत है कि ये कई दिनों तक खराब भी नहीं होती. साथ ही बगैर फ्रिज के भी कई दिनों तक अपने स्वाद को नहीं खोती है. अब आइए लाई बनाने की विधि यहां के कारीगर की ही जुबानी जानते हैं. लाई का इतिहास भी अपने आप में अनूठा है. समय के साथ लाई बनाने में भी कई बदलाव आए.

कई दिनों तक खराब नहीं होती लाई

'लाई को बनाने में चीनी, मावा, इलायची, काजू-किशमिश और रामदाना की जरूरत होती है. बाढ़ में दो तरह की लाई बनाई जाती है. चीनी वाले लाई की कीमत कम होती है और कम चीनी वाले लाई की कीमत ज्यादा होती है'- रत्न कुमार गुप्ता, कारीगर, बाढ़

सालों पुराना लाई का इतिहास
कई लोग लाई के जन्मदाता बाढ़ के रामपदारथ साव को बताते हैं. जिन्होंने बचे हुए दूध को बर्बाद होने से बचाने के लिए दूध का मावा बना दिया और सादी लाई में मिलाकर 'मावेदार लाई' तैयार कर दी. वहीं, आज की तारीख में बाढ़ शहर में लाई के लगभग 60 कारखाने चल रहे हैं और कई दुकानें हैं. औसतन रोजाना 100 क्विंटल लाई का निर्माण और निर्यात होता है. रोजाना दो से ढाई लाख रुपये की लाई की बिक्री होती है. लाई के इस व्यापार से करीब पांच से सात हजार लोगों की जीविका चलती है.

लाई बनाते कारीगर

'बाढ़ का लाई धीरे-धीरे मशहूर हो गया. हमारी रोजी-रोटी इसी से है. यहां के व्यवसाइयों को अब तक कोई सरकारी मदद, अनुदान या सहयोग नहीं मिला है'-शशिभूषण कुमार, लाई व्यवसायी, बाढ़

धनरूआ की लाई की भी बढ़ी डिमांड
मसौढ़ी के धनरूआ के लाई की तो शुद्ध खोवे की इस स्वादिष्ट लाई से ही आज धनरूआ की पहचान होती है. इस रास्ते से बोधगया जाने और उधर से लौटते समय विदेशी पर्यटक निशानी के तौर पर इस लाई को अपने देश ले जाना नहीं भूलते. धनरुआ में सबसे पुरानी दुकान 'विजय लाई दुकान' है. जिसके वंशजों ने लाई की शुरुआत की थी. यहां रोजोना तकरीबन 500 किलो लाई की खपत होती है. अभी 330 से 350 रूपए किलो बाजार भाव है. वहीं, एक लाई बनाने मे 6.25 पैसे खर्च हो जाते हैं.

बाढ़ की प्रसिद्ध लाई

करीब 5 करोड़ रुपए का टर्न ओवर
बिहार में बाढ़ और धनरुआ की लाई का बहुत बड़ा कारोबार है. यहां करीब 150 दुकानें है और इसका सालाना टर्न ओवर करीब 5 करोड़ रुपए है. बावजूद इसके वर्तमान के डिजिटल दौर में इसके बिजनेस का आधुनिकीकरण नहीं हो पाया है.

बाढ़ की मशहूर लाई

'बढ़ती डिमांड को देखते हुए अगर लाई की ऑनलाइन बिक्री के लिए डिजिटल व्यवस्था हो जाती है, तो इसका सालाना कारोबार 20 करोड़ तक भी हो सकता है. लेकिन वर्तमान में व्यवस्था में कमी के कारण डिजिटल नहीं हो पा रहा है'-बिपिन चंद्रवंशी, व्यवसायी

ऑनलाइन कारोबार वक्त की डिमांड
व्यापारियों की माने तो, अगर सिलाव के खाजा की ऑनलाइन बिक्री हो सकती है और लाई का मार्केट और बढ़ सकता है. साथ ही इसका डिजिटलीकरण हो जाए तो इसके बिजनेस में भी चार चांद लग सकते हैं.

लाई की लगातार बढ़ रही डिमांड

'लाई की भी ऑनलाइन बिक्री शुरू हो जाए तो इसके बिजनेस में बढ़ोतरी होगी साथ ही करीब 7 से 8 करोड़ के सालाना बिजनेस का भी अनुमान है. अगर इसका डिजिटल हो जाए तो देश के बाहर भी बसे लोग इसे आसानी से मंगवा सकते हैं'-कपिल प्रसाद वर्मा, व्यवसायी

डिजिटल प्लेटफॉर्म से बढ़ेगा कारोबार
एक तरफ जहां देशभर में स्टार्ट अप और वोकल फॉर लोकल पर जोर दिया जा रहा है. वहीं, लाई के इतने बड़े कारोबार के डिजिटल और ऑनलाइन कारोबार पर किसी का ध्यान नहीं है. बाढ़ और धनरुआ की लाई रूस, अमेरिका और इंग्लैंड तक जाती है. अगर लाई के कारोबार को डिजिटल प्लेटफॉर्म मिल जाए तो इसका स्वाद जरूर ही हमारे और आपके साथ साथ लाई के कारोबार को भी एक नया मुकाम देगा.

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