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हर साल बाढ़ में डूब जाता है अशोक स्तंभ और स्तूप, सिल्ट से ऐतिहासिक धरोहर पर संकट

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Published : Sep 23, 2021, 7:32 PM IST

अशोक स्तंभ

ऐतिहासिक कोल्हुआ अशोक स्तंभ पर बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. एक ही सीजन में दो बार आई बाढ़ में ऐतिहासिक महत्व का स्थल कई हफ्तों घिरा रहा. अब यहां कीचड़ और सिल्ट का साम्राज्य है. यहां आने वाले लोगों को निराशा हाथ लगती है. पढ़ें पूरी खबर-

मुजफ्फरपुर:बिहार में बाढ़ (Flood In Bihar) के चलते ऐतिहासिक इमारतों पर खतरा मंडराने लगा है. बाढ़ के चलते मुजफ्फरपुर का प्राचीन ऐतिहासिक धरोहर अशोक स्तंभ(Pillars of Ashoka) अब खतरे में है. बूढ़ी गंडक और गंडक नदियों में आए उफान के चलते पूरा परिसर बाढ़ की चपेट में आ गया. यहां बाढ़ से हुई तबाही का मंजर साफ नजर आ रहा है. कोल्हुआ स्थित प्राचीन अशोक स्तंभ और बौद्ध स्तूप परिसर तक बाढ़ का पानी चढ़ गया. बाढ़ के चलते ऐतिहासिक धरोहर पर संकट मंडराने लगा है.

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तीसरी शताब्दी ई.पू. का स्तंभ
कोल्हुआ स्थित ऐतिहासिक स्थल का निर्माण सम्राट अशोक ने करवाया था. तीसरी शताब्दी ई.पू. में स्तंभ बना था. प्राचीन स्तूप और सिंह स्तम्भ की बात करें तो इसका निर्माण सम्राट अशोक ने कलिंग के युद्ध में विजय प्राप्त करने के बाद बनवाया था. सम्राट अशोक ने जब बौद्ध धर्म को अपना कर अहिंसा का मार्ग अपनाया उसके बाद ही इस स्तम्भ का निर्माण करवाया.

देखें रिपोर्ट.

बुद्ध ने दिया था अंतिम उपदेश
बौद्ध धर्म के संस्थापक भगवान महात्मा बुद्ध ने अपना अंतिम उपदेश इसी जगह दिया था, इसलिए सम्राट अशोक ने उनकी याद में ये स्तम्भ बनवाया था. ये अशोक स्तंभ अन्य देश के अन्य हिस्सों में बनवाए गये स्तंभ से अलग है. इसके ऊपर एक शेर की आकृति बनी हुई है. जिसका मुख उत्तर दिशा की और है. कहा जाता है कि ये बुद्ध की अंतिम यात्रा के दिशा का सूचक है. इसके ठीक बगल में ईंट से बना हुआ एक और स्तूप भी है. बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए यह एक पवित्र स्थान है. यहाँ कई देशों से हर साल लाखों पर्यटक आते हैं. लेकिन बाढ़ और जल जमाव की वजह से अब यहाँ पर इक्का-दुक्का पर्यटक नजर आ रहे हैं. उनको भी जलजमाव और कीचड़ की वजह से यहाँ निराशा ही हाथ लग रही है.

स्तूप के चारों ओर बाढ़ का पानी

बाढ़ के पानी से घिरा स्थल
ऐतिहासिक स्थल होने के बावजूद पुरातत्व विभाग की ओर से संरक्षण नहीं किया जा रहा है. बाढ़ के वक्त हर साल ये जगह पानी से घिर जाता है. पूरे स्थल पर बाढ़ के बाद सिल्ट जमा हो जाती है. बलुआ पत्थरों को काफी नुकसान पहुंचता है. कीचड़ की वजह से चारों तरफ गंदगी फैल जाती है. यही नहीं इसके सुंदरीकरण के कार्य पर भी असर पड़ता है. सजावटी पौधे डूबने के कारण मुरझा जाते हैं.

बाढ़ से घिरा ऐतिहासिक स्थल

बुद्ध के अंतिम उपदेश के स्मरण के लिए बनाया स्तंभ
कोल्हुआ में अशोक स्तंभ या सिंह स्तंभ सम्राट अशोक द्वारा भगवान बुद्ध के अंतिम उपदेश के स्मरण के लिए बनाया गया था. पास में एक छोटा टैंक है जिसे ‘रामकुंड’ के नाम से जाना जाता है. भगवान बुद्ध वैशाली और कोल्हुआ गए, जहां उन्होंने अपने अंतिम उपदेश का प्रचार किया. सम्राट अशोक ने तीसरी शताब्दी ई.पू. सिंह स्तंभ खड़ा किया. लगभग 100 साल बाद, वैशाली ने द्वितीय महान बौद्ध परिषद की मेजबानी की. इस कार्यक्रम को मनाने के लिए दो स्तूप बनवाए गए थे.

बाढ़ से घिरा अशोक स्तंभ और कुंड

अशोक की लाट और स्तूप का महत्व
यहां बलुआ पत्थर से बनी 11 मीटर ऊंचा स्तंभ है जो कि एक ही चमकदार टुकड़े से बना है. इसे अशोक लाट के नाम से भी जाना जाता है. इस लाट के ऊपरी शिखर पर सिंह बना हुआ है. ये स्तंभ भी सम्राट अशोक द्वारा स्थापित किए गए प्रारंभिक स्तंभों में से एक है. जिसपर उनका कोई अभिलेख नहीं है. इसपर शंखलिपि में उकेरे गए कुछ अक्षर गुप्तकालीन प्रतीत होते हैं. मुख्य स्तूप वानर प्रमुख द्वारा भगवान बुद्ध को मधु अर्पित करने की घटना का प्रतीक है.

मर्कट कुंड
ईंटों द्वारा निर्मित स्तूप मूलत: मौर्यकाल में बना था, जिसका आकार कुषाण काल में परिवर्तित करके चारों ओर प्रदक्षिणा पथ से जोड़ा गया. फिर गुप्त काल में फिर से ईंटों को बिछाकर स्तूप को सुसज्जित किया गया. चारों ओर नियमित अन्तराल पर आयक भी जोड़े गए. स्तंभ के पास ही एक मर्कट कुंड है. जिसे वानरों ने भगवान बुद्ध के लिए बनाया था. सात सोपानों से युक्त लगभग 65x35 मीटर विस्तार वाले इस जलाशय की दक्षिणी और पश्चिमी भुजाओं पर स्नान के लिए घाट बने हैं.

अशोक स्तंभ का रास्ता भी बाधित

अन्य महत्व के स्थल
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा किए गए उत्खननों के परिणाम स्वरूप कूटागारशाला, स्वस्तिकाकार विहार, पक्का जलाशय, बहुसंख्य मनौती स्तूप तथा लघुमंदिर प्रकाश में आए हैं. इनके अतिरिक्त आंशिक रूप से मिट्टी में दबे अशोक स्तंभ तथा मुख्य स्तूप के ऊपरी भाग को भी खुदाई के बाद पाया गया है.

अशोक स्तंभ और स्तूप

उपेक्षा का शिकार परिसर
इतनी पुरातात्विक महत्व का स्थल देख रेख के अभाव में हर साल डूब रहा है. अब इन जलाशयों में बाढ़ का पानी है. सिल्ट और कीचड़ की वजह से लोग यहां आ नहीं पा रहे हैं. जैसे तैसे जो लोग पहुंच रहे हैं वो इसकी दुर्दशा देखकर काफी निराश हो रहे हैं.

कोल्हुआ भग्नावशेष का शिलालेख

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