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हेल्थ इंश्योरेंस में बिहार फिसड्डी, मात्र 14.6 फीसदी लोगों के पास ही है बीमा

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Published : May 21, 2022, 9:22 PM IST

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सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में बिहार सरकार केन्द्र के मुकाबले काफी कम खर्च (Health And Education Expenditure In Bihar) करती है. हेल्थ इंश्योरेंस के मामले में भी बिहार काफी पिछड़ा हुआ है. मात्र 14.6 फीसदी लोगों के पास ही हेल्थ इंश्योरेंस है. पढ़ें यह विशेष रिपोर्ट.

पटना: हेल्थ इंश्योरेंस के मामले में बिहार देश भर में फिसड्डी (Bihar Lagging Behind in Health Insurance) है. भले ही केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी आयुष्मान भारत योजना (Ayushman Bharat Scheme) जैसी बड़ी हेल्थ इंश्योरेंस योजना चल रही है, इसके बावजूद बिहार के गरीब इस योजना से नहीं जुड़ पा रहे हैं. कहीं ना कहीं इसके पीछे सरकारी उदासीनता नजर आ रही है. पटना में आकर कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में मजदूरी करने वाले उमेश शाह बताते हैं कि उनके पास किसी प्रकार का कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है. मजदूरी करते हैं और दिन भर में 300 रुपये कमाते हैं. उन्हें पता है कि स्वास्थ्य बीमा नाम का भी कुछ होता है लेकिन उन्होंने इसे नहीं लिया है. आयुष्मान भारत योजना के बारे में भी सुना हैं लेकिन अधिक जानकारी नहीं है.

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जानकारी का अभाव: कंस्ट्रक्शन क्षेत्र में ही दिहाड़ी मजदूरी करने वाली रीना देवी बताती हैं कि उनके पास किसी प्रकार का कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है. वह जानती हैं कि आयुष्मान भारत जैसी कुछ योजना है लेकिन उन्होंने इसे नहीं लिया है. इस योजना में उन्हें कितने लाख तक का मेडिकल बीमा उपलब्ध होगा, इस बात की भी उन्हें सही जानकारी नहीं है. बिहार में सिर्फ उमेश और रीना ही नहीं है बल्कि इनके जैसे 85.4 फीसदी लोग हैं जिनके पास किसी प्रकार का भी कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं है. चिकित्सकों का कहना है कि स्वास्थ्य बीमा के प्रति प्रदेश में उदासीनता का नतीजा यह होता है कि गंभीर बीमारियों का डिटेक्शन काफी लेट होता है. इलाज काफी महंगा होने के कारण मरीज मर जाते हैं.

हेल्थ इंश्योरेंस के मामले में बिहार फिसड्डी

आर्थिक समस्या बड़ा कारण: प्रदेश में स्वास्थ्य बीमा के प्रति उदासीनता के बारे में चर्चा करते हुए एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के विशेषज्ञ डॉ. विकास विद्यार्थी बताते हैं कि बिहार में हेल्थ बीमा का कवरेज 14.6 फीसदी है. उत्तर प्रदेश में यह 15.9% है. ऐसा लगता है कि बिहार और यूपी जैसे राज्यों में लोगों का हेल्थ स्टेटस बहुत खराब है. यह नीति आयोग की रिपोर्ट में भी बताया गया है. उन्होंने बताया कि हेल्थ इंश्योरेंस का कवरेज कम होने के कई कारण होते हैं. पहला अफॉर्डेबिलिटी का सवाल है. कोरोना के कारण बेरोजगारी बढ़ी है, गरीबी बढ़ी है. ऐसे में लोगों के पास समस्या यह है कि पहले वह खाने-पीने और रहने की व्यवस्था करें या इंश्योरेंस की.

दूसरा कारण यह है कि इंश्योरेंस की जो स्कीम है, वह एक प्रोडक्ट है. उस प्रोडक्ट के बारे में लोगों को सही से समझाया भी नहीं जा रहा है. लोग भी उसे सही से समझ नहीं पा रहे हैं. कंपनियों के साथ भी ऐसा होता है कि उन्हें ऑपरेशनल कॉस्ट पर काम करना होता है जिसका लगभग 25% कॉस्ट होता है इंश्योरेंस का. तीसरा कारण यह है कि आइडेंटिफिकेशन. कौन से ऐसे मिसिंग लोग हैं जिन्होंने हेल्थ इंश्योरेंस नहीं लिया है, यह पता लगाया जाये. बिहार में सरकारी स्कीम के तहत भी हेल्थ इंश्योरेंस का कवरेज हो जाना चाहिए.

'एनएफएचएस-5 की जो रिपोर्ट आयी है, उसमें बताया गया है कि हाउसहोल्ड के 14.6 फीसदी लोग ही बिहार में हेल्थ इंश्योरेंस से जुड़े हुए हैं. ऐसे में ऐसा लगता है कि बिहार में आयुष्मान भारत और अन्य जो स्वास्थ्य बीमा की योजनाएं हैं, उसका क्रियान्वयन काफी धीमी गति से हो रहा है. यह योजनाएं प्रदेश में सुस्त हैं. इन्हें तीव्र करने की आवश्यकता है क्योंकि नीति आयोग की जो ताजा रिपोर्ट आयी है उसमें बिहार में लगभग 6.5 करोड़ लोग गरीब बताए गए हैं.'-डॉ. विकास विद्यार्थी, एएन सिन्हा इंस्टीच्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के विशेषज्ञ

डॉ. विकास विद्यार्थी के मुताबिक चौथा कारण यह है कि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार बिहार में गरीब लोगों की संख्या 50 फीसदी के आसपास है. प्राइवेट हेल्थ इंश्योरेंस काफी महंगे होते हैं. ऐसे में लोगों के पास इसे अफोर्ड करने की समस्या है. आयुष्मान जैसी योजनाओं में भी सरकारी तत्परता नहीं दिख रही है.

मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, पटना के आंकोलॉजिस्ट डॉक्टर अमित कुमार बताते हैं कि एनएफएचएस-5 की रिपोर्ट को देखें तो स्वास्थ्य बीमा के कवरेज में नेशनल एवरेज से बिहार काफी पीछे है, बिहार फिसड्डी है. नेशनल एवरेज जहां 41 फीसदी है, वहां बिहार में मात्र 14.6 फीसदी लोगों के पास ही स्वास्थ्य बीमा है. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य बीमा लोगों के लिए बेहद जरूरी होता है. स्वास्थ्य बीमा रहता है तो लोग इस बात से निश्चिंत रहते हैं कि उन्हें कुछ गंभीर बीमारी होती है तो इसका खर्च इंश्योरेंस कंपनियां उठा लेंगी.

आम लोगों को नुकसान: हेल्थ इंश्योरेंस को लेकर लोगों में जागरूकता का भी अभाव है. हेल्थ इंश्योरेंस के माध्यम से कई महंगी जांच भी अस्पतालों में हो सकती है. उन्होंने बताया कि स्वास्थ्य बीमा का कवरेज प्रदेश में कम होने का नुकसान लोगों को उठाना पड़ता है. जिन लोगों का स्वास्थ्य बीमा नहीं है, वह अपने शरीर में बीमारियों के लक्षण को दबाते हैं और जल्दी चेकअप नहीं कराते. वे सोचते हैं की कोई गंभीर बीमारी डिटेक्ट होगी तो इलाज में लाखों का खर्च आ जाएगा. ऐसे में कई बार स्थिति यह होती है कि मरीज गंभीर बीमारियों के आखिरी समय में अस्पताल आता है. ऐसे में उसे ठीक करने में लाखों रुपये लग जाते हैं.

कई बार ऐसा होता है कि लाखों रुपये खर्च करने के बाद भी मरीज बच नहीं पाता. जिन लोगों का स्वास्थ्य बीमा होता है, वह शरीर में थोड़ी बहुत गंभीर समस्या होने पर सीधे अस्पताल चले जाते हैं. किसी भी प्राइवेट अस्पताल में जाते हैं और वह खर्च को लेकर निश्चिंत रहते हैं. उन्हें पता होता है कि इलाज का जो कुछ भी खर्चा आएगा, वह इंश्योरेंस कंपनियां देंगी. जिनके पास हेल्थ इंश्योरेंस नहीं होता, वह पैसे के अभाव में बेहतर इलाज नहीं करा पाते हैं.

'प्रदेश में सरकार लोगों को हेल्थ बीमा के कवरेज में लाने के लिए तत्परता दिखाएं और तेजी से इस दिशा में काम करे. स्वास्थ्य बीमा को लेकर लोगों में अवेयरनेस फैलाये और जो कुछ भी सरकारी बीमा की योजनाएं हैं, उनकी गति तीव्र करें ताकि मरीज की गंभीर स्थिति में जब उसके पास पैसे ना हो, वह प्राइवेट अस्पताल में भी जाकर बीमा राशि के माध्यम से अपना बेहतर इलाज करा सके.'-डॉक्टर अमित कुमार, आंकोलॉजिस्ट, मेदांता सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, पटना

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