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उदीयमान सूर्य को अर्घ्य दने के साथ ही दहेज लोभी रावण का पुतला दहन कर मनाया गया छठ पर्व

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Published : Nov 11, 2021, 10:12 AM IST

लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ पर्व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त हो गया. छठ व्रतियों द्वारा जिले के विभिन्न छठ घाटों के साथ-साथ कृत्रिम घाटों पर भी सूर्य भागवान को अर्घ्य दिया गया.

छठ पर्व का हुआ समापन
छठ पर्व का हुआ समापन

मुजफ्फरपुर: बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में लोक आस्था का महापर्व छठ पर्व (Chhath Puja 2021) उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त हो गया. उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ ही दहेज लोभी रूपी रावण का पुतला दहन (Ravana Effigy Burning in Muzaffarpur) किया गया. जिले में प्रशासनिक देखरेख में लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा का आयोजन किया गया.

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दरअसल, लोक आस्था का चार दिवसीय महापर्व छठ पर्व उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देने के साथ समाप्त हो गया. छठ व्रतियों द्वारा जिले के विभिन्न छठ घाटों के साथ-साथ कृत्रिम घाटों पर भी सूर्य भागवान को अर्घ्य दिया गया.

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इस महापर्व के आयोजन के दौरान जिले के साहू पोखर स्थित छठ घाट पर अनोखी तस्वीर देखने को मिली जहां दहेज लोभी रावण का पुतला दहन किया गया. छठ महापर्व पर लोगों ने जमकर आतिशबाजी भी की और सपरिवार छठ घाटों पर उपस्थित होकर भगवान भास्कर की उपासना की.

जिले में छठ पूजा को लेकर जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा के सारे कदम उठाए गए थे. लगातार प्रशासनिक अधिकारी प्रमुख छठ घाटों का निरीक्षण भी कर रहे थे.

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मुख्यमंत्री आवास एक अन्ने मार्ग में सीएम नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) ने भी सुबह का अर्घ्य दिया. मुख्यमंत्री की भाभी और कई परिजनों ने मुख्यमंत्री आवास में इस बार छठ पूजा की. इससे पहले सीएम ने बुधवार की शाम भी सूर्य भगवान को अर्घ्य दिया. जहां कई नेता और मंत्री भी मौजूद थे.

बताते चलें कि शास्त्रों के अनुसार छठ देवी भगवान ब्रह्माजी की मानस पुत्री और सूर्य देव की बहन हैं, उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए इस पर्व को मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. ब्रह्मवैवर्त पुराण में इस बात का उल्लेख मिलता है कि ब्रह्माजी ने सृष्टि रचने के लिए स्वयं को दो भागों में बांट दिया, जिसमें दाहिने भाग में पुरुष और बाएं भाग में प्रकृति का रूप सामने आया.

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सृष्टि की अधिष्ठात्री प्रकृति देवी ने अपने आप को छह भागों में विभाजित किया. इनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ मातृ देवी या देवसेना के रूप में जाना जाता है. प्रकृति का छठा अंश होने के कारण इनका एक नाम षष्ठी है, जिसे छठी मईया के नाम से सभी जानते हैं. शिशु के जन्म के छठे दिन भी इन्हीं की पूजा की जाती है. इनकी उपासना करने से बच्चे को स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. पुराणों में इन्हीं देवी का नाम कात्यायनी बताया गया है, जिनकी नवरात्रि की षष्ठी तिथि को पूजा की जाती है.

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