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आज भी चचरी पुल के सहारे आवागमन को मजबूर हैं भागलपुर के इस गांव के लोग

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Published : Oct 5, 2021, 7:20 AM IST

बिहार में पंचायत चुनाव की प्रक्रिया चल रही है. कई चरणों का मतदान हो चुका है. शेष चरणों के लिए नामांकन और प्रचार चल रहा है. बिहार में कई ऐसे पंचायत हैं जहां जनप्रतिनिधियों ने पिछले चुनाव के किये अपने वादों को पूरा नहीं किया है. वहां पर उन्हें लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. पढ़ें पूरी खबर.

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भागलपुर: आजादी के इतने साल बाद भी बिहार के कई ऐसे पंचायत और गांव हैं जहां आज भी लोगों को सड़क और पुल नसीब नहीं है. चचरी के अस्थायी पुल के सहारे ही आवागमन करना पड़ता है. भागलपुर (Bhagalpur) के सनहौला प्रखंड मुख्यालय से करीब 9 से 10 किलोमीटर दूर पोठिया पंचायत के वैसा गांव पहुंचने के लिए आज भी लोगों को चचरी पुल का सहारा लेना पड़ रहा है. वैसा गांव कोठिया पंचायत के वार्ड नंबर 6 में है.

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यह गांव प्रखंड मुख्यालय के नजदीक है. इसके बावजूद यहां के लोगों को पुल नसीब नहीं हुआ है. गांव के लोग जोर पैगा नदी पर चचरी पुल बनाकर आवागमन करते हैं. इस गांव में 30 घर हैं. इतनी बड़ी आबादी चचरी पुल पर निर्भर है लेकिन इस ओर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों की नजर नहीं जा रही है. ग्रामीण आपसी सहयोग से चचरी पुल बना लेते हैं. यहां के लोग पुल निर्माण को लेकर लोग बरसों से मांग कर रहे हैं.

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जनप्रतिनिधि और जिला प्रशासन के अधिकारियों की उदासीनता की मार यहां के लोग झेल रहे हैं. बारिश के दिनों में इस गांव में कोई भी आना नहीं चाहता है. वहीं, बरसात में व उसके कुछ महीने बाद तक सड़क पर जमा पानी और कीचड़ लोगों के लिए परेशानी का सबब बना रहता है. चुनावी मौसम (Panchayat Election) में वोट मांगने आ रहे जनप्रतिनिधियों को यहां के लोग खरी-खोटी सुना रहे हैं.

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खुशतरी खातून ने बताया कि इसी तरह हमेशा उन लोगों का जीवन बितता है. जब गांव में लोग बीमार पड़ते हैं अस्पताल ले जाने में कष्ट होता है. बारिश के दिनों में पानी जमा रहता है. उसी पानी में पार होना पड़ता है. बीबी बेचनी और तरन्नुम खातून ने बताया कि 12 साल से यह पुल नहीं बना है. बहुत कष्ट है. कोई देखने के लिए नहीं आता.

इशरत बेगम ने बताया कि इस परेशानी को समझने वाला कोई नहीं है. मुखिया आते हैं और वादा करके चले जाते हैं. इस बार भी मुखिया वोट मांगने के लिए आये और पुल बनाने का वादा किया. इस पूल से बच्चे को जाने-आने में काफी डर लगता है. बारिश के दिनों में इसमें पानी आ जाता है. कई बार बच्चे डूबते-डूबते बचे हैं.

रशीदा ने कहा कि हम लोगों का पहले दूसरे गांव में घर था लेकिन जब आपस में बंटवारा हुआ तो हम लोगों का हिस्सा यहां पड़ा. यहां पिछले 12 साल से रह रहे हैं, लेकिन मुख्य सड़क तक जाने के लिए रास्ता और पूल नहीं है. नुसरत बेगम और समीना खातून ने बताया कि बच्चों को पढ़ने भेजने के लिए उन्हें गोद में लेकर जाना पड़ता है. शाहिदा खातून ने बताया कि हम लोगों की मजबूरी कोई नहीं समझता. नसीमा खातून ने कहा कि पुल नहीं रहने के कारण बच्चों का भविष्य खराब हो रहा है. बच्चे पढ़ने के लिए नहीं जा पा रहे हैं. गांव में कोई सुविधा नहीं है.

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