आगरा:आगरा में पालनहार मां और बेटी जब 17 माह बाद मिले तो दोनों एक दूसरे से लिपट गए. दोनों की आंखों से खुशी के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे थे. मंगलवार, दोपहर में हाई कोर्ट के आदेश पर राजकीय शिशु बालगृह में पालनहार मां को बेटी की सुपुर्दगी दी गई. जब पालनहार मां ने बेटी के लिए बाहें फैलाईं तो बच्ची दौड़कर मां के गले से लग गई.
पालनहार मां ने बेटी को पाने के लिए हाई कोर्ट में शरण ली थी. जिस पर हाई कोर्ट ने उसके पक्ष में आदेश दिया था. जिस पर पालनहार मां और सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस मंगलवार को कैंट रेलवे स्टेशन पहुंचे. जहां पर महिला का पति पहले ही पहुंच गए. दंपती आगरा कैंट स्टेशन से राजकीय बाल गृह पहुंचे. बाल कल्याण समिति को कोर्ट के आदेश की एक प्रति दी.
महिला को एक किन्नर नवजात बच्ची दे गया था इस पर जिला प्रोबेशन अधिकारी ने पहुंचकर गोद देने से संबंधी सारी प्रक्रिया पूरी कराई. इसके बाद पालनहार मां ने बेटी को अपनी सुपुर्दगी में लिया. बालगृह से बाहर आकर मां-बेटी काफी देर तक एक दूसरे के गले से चिपटी रहीं. बेटी को गले लगाने के बाद पालनहार मां की आंख छलक उठीं. कहा बेटी कि, आज बेटी को पाकर मेरी 17 महीने की कड़ी धूप, बारिश और सर्दी के मौसम में की गई भागदौड़ में उठाए सारे कष्ट को भूल गई है.
यह है पूरा मामला:नवंबर 2014 में खंदौली क्षेत्र निवासी महिला को एक किन्नर नवजात बच्ची को दे गया था. साल 2022 तक महिला ने बच्ची का पालन पोषण किया. महिला को अम्मी बोलने लगी और स्कूल भी जाने लगी. अचानक किन्नर वापस आया और बच्ची को जबरन साथ ले गया. जिससे ये मामला बाल कल्याण समिति के समक्ष पहुंचा. बच्ची बरामद करके राजकीय शिशु गृह भेज दिया गया. उसकी काउंसलिंग में महिला को अपनी मां बताया. बच्ची भी उससे मिलने के लिए परेशान थी. बच्ची के बिना पालनहार मां भी छटपटा रही थी. उसे पाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की. सामाजिक कार्यकर्ता नरेश पारस ने महिला का साथ दिया.
पालनहार मां ने बेटी को पाने के लिए हाई कोर्ट में शरण ली थी दावे से उलझ गया था मामला: हाईकोर्ट में सुनवाई के दौरान यमुनापार निवासी एक व्यक्ति ने बच्ची के पिता होने का दावा किया. जिससे मामला उलझ गया. व्यक्ति ने कहा कि, सन 2015 में उसकी नवजात बच्ची का अपहरण हुआ था. अभी तक नहीं मिली है. उसे शक है कि, बच्ची उसकी है. इस पर ही हाईकोर्ट ने डीएनए की जांच कराई थी.
हाईकोर्ट में करीब एक घंटे तक सुनवाई: हाईकोर्ट में न्यायाधीश सौमित्र दयाल सिंह और मंजीव शुक्ला की पीठ ने सोमवार को पालनहार मां की याचिका पर सुनवाई की. हाईकोर्ट में डीएनए रिपोर्ट पेश की गई. बच्ची और व्यक्ति की डीएनए रिपोर्ट का मिला किया गया तो डीएनए रिपोर्ट बेमेल रही. इस पर जैविक पिता का दावा करने वाले व्यक्ति ने अपना दावा वापस ले लिया. करीब एक घंटे तक सुनवाई के बाद न्यायाधीश ने आदेश में मानवीय पहलुओं का उल्लेख किया गया है.
आदेश में लिखा है कि, याचिकाकर्ता को बच्ची से दूर करना कानून का सबसे आसान हिस्सा है. लेकिन, कानून के लिए जैविक माता पिता का एक और समूह खोजना संभव नहीं है. कानून को न्याय देना चाहिए जो यह अनुशंसा करता है कि बच्ची को उन लोगों की देखभाल में रहना चाहिए. जिन्हें वह अपने माता पिता मानती है. विशेष रूप से याचिकाकर्ता जिसमें उसने अपनी मां को पाया है.
एक सप्ताह में गोद देनी की प्रक्रिया पूरी करें:हाईकोर्ट ने सोमवार को अपने आदेश में कहा है कि, पालनहार मां के आदेश की प्रति बाल कल्याण समिति को सौंपने के एक घंटे के अंदर बच्ची उसकी अभिरक्षा में दे दी जाए. पालनहार मां को एक सप्ताह में बच्ची को गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करने को कहा है. क्योंकि, जिस व्यक्ति ने बच्ची का जैविक पिता होने का दावा किया था. उसका डीएनए मैच नहीं हुआ. इसलिए, व्यक्ति ने खुद ही अपना दावा वापस ले लिया है.
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