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अयोध्या के कनक भवन की तर्ज पर बना जयपुर का प्राचीन राम मंदिर, यहां परिवार के साथ विराजमान है प्रभु - Ram Navami 2024

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 17, 2024, 8:29 AM IST

जयपुर की विरासत में शामिल प्राचीन श्री रामचंद्र जी का मंदिर, यह उत्तर भारत के प्राचीन मंदिरों में एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां भगवान श्री राम अपने सभी भाइयों और पत्नी जानकी के साथ विराजमान है. इस मंदिर का इतिहास करीब 130 साल पुराना है. रामनवमी स्पेशल इस खास रिपोर्ट में जानिए जयपुर के इस अद्भुत राम मंदिर के बारे में.

RAM NAVAMI 2024
जयपुर का प्राचीन राम मंदिर

अपने सभी भाइयों और माता जानकी के साथ विराजित है राम

जयपुर. छोटी काशी जयपुर के परकोटा क्षेत्र में चांदपोल बाजार स्थित प्राचीन श्री रामचंद्र जी का मंदिर वास्तुकला का नायाब उदाहरण है. उत्तर भारत के प्राचीन मंदिरों में यह एक मात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान श्री राम अपने सभी भाइयों (लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न) और पत्नी जानकी के साथ विराजमान हैं. खास बात यह है कि यहां भगवान की प्रतिमा इस तरह विराजित है कि यहां पहुंचने वाले सभी श्रद्धालुओं को लगता है कि ठाकुर जी उन्हीं को देख रहे हैं. यही नहीं, इस मंदिर का अयोध्या से भी खास कनेक्शन है.

130 साल पुराना है मंदिर :जयपुर की विरासत में शामिल प्राचीन श्री रामचंद्र जी का मंदिर जहां रामनवमी पर भगवान का विशेष सत्कार और पूजा-अर्चना होगी. मंदिर पुजारी नरेंद्र तिवाड़ी ने बताया कि मंदिर का इतिहास करीब 130 साल पुराना है. महाराज राम सिंह की पत्नी गुलाब कंवर धीरावत (माजी साहब) ने 1894 में इस मंदिर का निर्माण कराया था. मंदिर बनने में करीब 20 साल का समय लगा. इस मंदिर में सुंदर नक्काशी और पेंटिंग का काम भी करवाया गया था. यही वजह है कि ये मंदिर अपने आप में अद्वितीय है. जयपुर शहर में इस तरह का कोई दूसरा मंदिर नहीं है. इस मंदिर की खास बात है कि ये अयोध्या के कनक भवन की तर्ज पर बनाया गया है. उसी तरह से भित्तियां और कुंज यहां उकेरे गए हैं.

अपने सभी भाइयों और माता जानकी के साथ विराजित है राम

ऊंचाई पर स्थित है प्रतिमा : पुजारी नरेंद्र तिवाड़ी ने बताया कि यहां ठाकुर जी जगमोहन में विराजमान है और इसके बाद उतरते क्रम में चौक, उससे नीचे एक और चौक फिर बरामदा और फिर सड़क है. बाहर सड़क से भी ठाकुर जी के दर्शन आसानी से हो सकते हैं. प्रत्यक्ष है कि हाथी पर बैठकर यदि कोई आदमी निकले तो हौदा में बैठा व्यक्ति भी झुक कर भगवान के दर्शन कर सकता है. उन्होंने बताया कि यहां ठाकुर जी सभी भाई और माता जानकी के साथ विराजमान है, ऐसा यह उत्तर भारत में अकेला प्राचीन मंदिर है. शृंगार के बाद ठाकुर जी की छवि हर श्रद्धालु को ऐसे प्रतीत होती है मानो उसी को देख रहे हैं.

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बिना किसी लैंटर के तैयार की गई मंदिर की छत : बताया जाता है कि रामनवमी पर यहां भगवान का जो शृंगार किया जाता है, उसमें विशेष आभूषण धारण कराए जाते हैं. ये सभी आभूषण रजवाड़ों के समय के हैं, जो अपने आप में अद्वितीय हैं. ये सभी आभूषण महत्वपूर्ण उत्सव पर ही काम में आते हैं. खासकर इन आभूषणों को रामनवमी पर भगवान श्री को धारण कराए जाते हैं. मंदिर पुजारी ने बताया कि यहां मंदिर की छत बिना किसी लैंटर के तैयार की गई है. मंदिर के खंबों में नागफनी और सिंहमुखों का काम किया गया है. मंदिर में भित्ति चित्र के नीचे मकराना संगमरमर का काम है. दीवारों पर रामचरितमानस के प्रसंगों को उकेरा गया है. यही वजह है कि इस मंदिर को बनाने में करीब 20 साल का समय लगा था.

भित्तियां और कुंज यहां उकेरे गए हैं

रामनवमी के अलावा श्री रामचंद्र जी मंदिर में वैशाख शुक्ल पंचमी पर मंदिर स्थापना दिवस के रूप में ठाकुर जी का पाटोत्सव और जानकी नवमी का भी विशेष आयोजन होता है. जानकी नवमी और उसका अगला दिन खास होता है. इन दो दिन ही जानकी माता के चरणों के दर्शन होते हैं. जो भी माता जानकी के चरणों के दर्शन कर पता है, वो सौभाग्यशाली होता है.

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