जोधपुर. सूर्यनगरी जोधपुर का 566 वां स्थापना दिवस आज मनाया जा रहा है. 566 साल पहले 12 मई 1459 में राव जोधा ने मेहरानगढ़ दुर्ग की स्थापना के साथ यह शहर बसाया, जिसे जोधपुर नाम दिया गया. बीती पांच सदियों में जोधपुर के दुर्ग मेहरानगढ़ और इस शहर ने बहुत कुछ देखा और सहा है. मेहरानगढ़ की तलहटी में यह शहर बसाया गया, जिसके चारों तरफ 9 रास्तों पर दरवाजों का निर्माण किया गया. मान्यता है कि जब राव जोधा मंडोर के शासक थे उस समय बढ़ती जनसंख्या और अभेद सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उन्होंने बतौर राजधानी जोधपुर नगर बसाने का निर्णय लिया था. जिसके फलस्वरूप जोधपुर बसाने की कल्पना को साकार रूप दिया गया. इन बीते 500 सालों में मुगलकाल के दौरान ही जोधपुर में उथल-पुथल हुई. बाकी पूरे दौर में जोधपुर मारवाड़ का सिरमौर बना रहा. आधुनिक जोधपुर का श्रेय महाराज उम्मेद सिंह को जाता है, जिन्होंने अपने काल में यहां की जनता के लिए आधारभूत सुविधाओं में इजाफा किया.
मेहरानगढ़ है जोधपुर का आकर्षण :मेहरानगढ़ अविजित दुर्ग है. इसे कोई भी जीत नहीं सका. मुगलों ने खूब प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो सके. यह पूरा करीब पांच किलोमीटर में फैला हुआ दुर्ग है, जो 125 मीटर ऊंचाई पर स्थित है. चिड़िया टूंक पहाड़ी पर बने इस दुर्ग के निर्माण में राजाराम मेघवाल नामक व्यक्ति की जीवित बलि दी गई थी. 12 मई को हर वर्ष जोधपुर राज परिवार राजाराम मेघवाल स्मृति स्थल पर पुष्पांजलि करता है. इसके अलावा जोधाजी के फलसा पर पूजन करते हैं. रविवार को भी मेहरानगढ़ में इस दिन कई आयोजन होंगे. समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया जाएगा.
9 दरवाजों का शहर : जेएनवीयू के इतिहास पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. जहूर खां मेहर ने बताया कि राठौड़ वंश के संस्थापक राजा राव चूड़ा ने मंडोर बसाया था. उनके वंशज राव जोधा ने मेहरानगढ़ किले का निर्माण चिड़िया टूंक पहाड़ी पर करवाया था. इसकी तलहटी में बसाए नगर के चारों तरफ नौ दरवाजे बनाए गए थे. बड़े नगरों के रास्तों के आधार पर उनका नाम रखा गया. मसलन जालौर की तरफ जाने वाला जालौरी गेट, मेड़ता की तरफ जाने वाला मेड़ती गेट, नागोर की तरफ जाने वाला नागौरी गेट के नाम से जाना जाने लगा. इन दरवाजों के अंदर ही नगर का विकास हुआ. रात को दरवाजे बंद होते थे. चारों तरफ परकोटा था. इसी परकोटे के अंदर बसे नगर को आज भीतरी शहर कहा जाता है.