नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नंधौर नदी समेत गौला, कोसी, गंगा और दाबका में बरसात में हो रहे भू-कटाव और बाढ़ से नदियों के मुहाने अवरुद्ध होने के कारण आबादी वाले क्षेत्रों में जल भराव, भू कटाव को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश रितु बाहरी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने राज्य सरकार से कहा है कि जो सूचना याचिकाकर्ता ने कोर्ट में पेश की है उसका अवलोकन कर कोर्ट को बताएं कि बाढ़ राहत के लिए क्या कदम अभी तक उठाये गए हैं. मामले की अगली सुनवाई के लिए 7 मई की तिथि नियत की गई है.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता भुवन चंद्र पोखरिया ने कोर्ट को आरटीआई की प्रति पेश की. जिसमें कहा गया कि 1 मार्च 2023 से अभी तक बाढ़ से बचाव हेतु संवेदनशील क्षेत्र नंधौर, पचोनिया, सुखी नदी,ढोका,वन परिसर चोरगलिया समेत सुनारगड़ा में जमा मलबा और सिल्ट को नहीं हटाया गया. जबकि जिलाधिकारी नैनीताल द्वारा 6 जनवरी 2024 को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र का निरीक्षण कर संबंधित विभागों से रिपोर्ट तलब की थी. लेकिन जिलाधिकारी द्वारा बाढ़ से बचाव हेतु बजट स्वीकृत नहीं किया गया, जबकि सरकार की तरफ से कहा गया कि पूर्व के आदेशों का पालन किया जा रहा है. नदियों में जमा सिल्ट व मलबा को हटाया जा रहा है. याचिकाकर्ता द्वारा आरटीआई दिखाने पर साफ हो गया कि इसमें कोई कार्य हुआ ही नहीं है, इसलिए सरकार आरटीआई का अवलोकन करें.
मामले के अनुसार हल्द्वानी चोरगलिया निवासी भुवन चंद्र पोखरिया ने जनहित याचिका दायर कर कहा है कि उत्तराखंड में बरसात की वजह से नदियां उफान पर आती हैं. नदियों के मुहाने अवरुद्ध होने के कारण बाढ़ और भू-कटाव होता है. जिसके चलते आबादी क्षेत्र में जलभराव होता है. नदियों के उफान पर होने के कारण हजारों हेक्टेयर वन भूमि, पेड़ और सरकारी योजनाएं बह गई हैं. नदियों का चैनेलाइज नहीं होने के कारण नदियों ने अपना रुख आबादी की तरफ कर दिया है. जिसकी वजह से उधम सिंह नगर, हरिद्वार , हल्द्वानी, रामनगर,रुड़की, देहरादून में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो गई. बाढ़ से कई पुल बह गए हैं. आबादी क्षेत्रों में बाढ़ आने का मुख्य कारण सरकार की लापरवाही है. सरकार ने नदियों के मुहानों पर जमा गाद, बोल्डर, मलबा नहीं हटाया.