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इस मंदिर के काले हनुमान जी का है लंका से खास कनेक्शन, यहां पूजा करने से होती है पुत्र प्राप्ति - Hanuman jaynti 2024

By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : Apr 23, 2024, 2:12 PM IST

Updated : Apr 23, 2024, 4:51 PM IST

राजस्थान के भरतपुर के मंदिर में हनुमान जी की काले स्वरूप में पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि हनुमान जी लंका दहन के समय काले पड़ गए थे. मंदिर में उसी स्वरूप की प्रतिमा स्थापित है और श्रद्धालु हनुमान जी के उसी स्वरूप की पूजा करते हैं. हनुमान जयंती के अवसर पर जानते हैं काले हनुमान जी मंदिर की महिमा...

काले हनुमान जी की पूजा
काले हनुमान जी की पूजा

काले हनुमान जी की पूजा

भरतपुर. रामभक्त हनुमान जी की महिमा अपरंपार है. देश के हर कोने में स्थित हर हनुमान मंदिर की अलग अलग मान्यता है. फिर भी अधिकतर मंदिरों में एक समानता रहती है कि हनुमान जी की मूर्ति सिंदूरी चोला में ही नजर आती है, लेकिन भरतपुर में एक मंदिर ऐसा है जहां काले हनुमान जी विराजमान हैं. इन पर चोला भी काला ही चढ़ाया जाता है. इतना ही नहीं मान्यता यह भी है कि जिनके पुत्र नहीं है ऐसे श्रद्धालुओं को इस मंदिर में पूजा करने से पुत्र प्राप्ति भी होती है.

125 वर्ष प्राचीन है मंदिर :शहर के गंगा मंदिर क्षेत्र के बाजार में काले हनुमान जी का मंदिर स्थित है. पुजारी अशोक शर्मा ने बताया कि मंदिर में हनुमान जी की काले स्वरूप में पूजा की जाती है. हनुमान जी के मुख के अलावा पूरा शरीर काला है. मूर्ति की ऊंचाई करीब 6 फीट है. इसके पीछे की मान्यता है कि हनुमान जी लंका दहन के समय काले पड़ गए थे. मंदिर में उसी स्वरूप की प्रतिमा स्थापित है और श्रद्धालु हनुमान जी के उसी स्वरूप की पूजा करते हैं.

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चढ़ाया जाता है काला चोला :पुजारी अशोक शर्मा ने बताया कि सामान्य तौर पर अधिकतर हनुमान मंदिरों में हनुमान जी मूर्ति पर सिंदूरी चोला चढ़ाया जाता है. लेकिन इस मंदिर में हनुमान जी की मूर्ति पर काला चोला चढ़ाया जाता है. मंदिर में हर मंगलवार या फिर शनिवार को चोला चढ़ाया जाता है.

पूजा से पुत्र प्राप्ति :पुजारी अशोक शर्मा ने बताया कि हर मंदिर की अलग अलग मान्यता होती है. काले हनुमान जी मंदिर में भी हर दिन अच्छी संख्या में श्रद्धालु पूजा और दर्शन करने पहुंचते हैं. यहां की मान्यता है कि जिनके पुत्र नहीं है ऐसे श्रद्धालु यदि समर्पित भाव से यहां पूजा करें तो काले हनुमान जी ऐसे श्रद्धालुओं को पुत्र प्रदान करते हैं. पुजारी अशोक शर्मा ने बताया कि मूर्ति की स्थापना करीब 125 वर्ष पूर्व रियासत काल में की गई थी, बाद में स्थानीय व्यापारियों ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण कराया.

Last Updated :Apr 23, 2024, 4:51 PM IST

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