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जब 'बड़े महाराज' ने अचानक छोड़ दिया था ग्वालियर, छोटी सी जीत मिलने पर हताश हो गए थे माधवराव - Madhavrao Scindia 1998 Elections

By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 25, 2024, 10:33 AM IST

Updated : Apr 25, 2024, 10:45 AM IST

When madhavrao scindia left gwalior MADHAVRAO SCINDIA 1998 ELECTIONS
माधवराव सिंधिया ने जब छोड़ा ग्वालियर

चुनाव के वक्त इतिहास में दर्ज चुनावी किस्सों की बात न की जाए, ऐसा संभव नहीं है. खासकर तब जब ग्वालियर चम्बल क्षेत्र में सियासी हलचलों ने इतिहास की माला में कई मोती पिरोए हों. आज जानिए कि आखिर क्यों माधवराव सिंधिया का अपने ही लोकसभा क्षेत्र से जीतने के बावजूद मोहभंग हो गया था. और वे ग्वालियर छोड़ गुना से चुनाव लड़ने चले गए थे. देखें ये खास रिपोर्ट.

माधवराव सिंधिया ने जब छोड़ा ग्वालियर

ग्वालियर. देश और मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया राजघराने की सक्रियता तीन पीढ़ियों से बनी हुई है. ये राज परिवार ग्वालियर से संबंध रखता है और ग्वालियर में ही इस परिवार की राजमाता विजया राजे सिंधिया ने रियासत से सियासत में कदम रखा था. जिसे आगे उनके बेटे माधवराव और उनके भी बेटे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आगे बढ़ाया. यही वजह है कि ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र पर भी हमेशा सिंधिया घराने का वर्चस्व रहा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि एक ऐसा दौर भी आया जब राजमाता विजया राजे सिंधिया के बेटे माधवराव सिंधिया ने ग्वालियर से चुनाव लड़े और जीते भी लेकिन जीत के बावजूद उन्हें अगला चुनाव लड़ने ग्वालियर छोड़ कर गुना शिवपुरी सीट पर जाना पड़ा था.

माधवराव सिंधिया

जब सिंधिया घराने ने दिखाई अपनी ताकत

वरिष्ठ पत्रकार एवं राजनीतिक विश्लेषक देव श्रीमाली बताते हैं, '' राजमाता विजया राजे सिंधिया के बाद राजपरिवार की दूसरी पीढ़ी के रूप में माधव राव सिंधिया ने राजनीति में कदम रखा और 1984 में कांग्रेस से पहला चुनाव लड़ने उतरे थे. उस दौरान ग्वालियर में उनके सामने अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी से प्रत्याशी थे. लेकिन माधव राव ने उन्हें लाखों मतों से परास्त किया था. इसके बाद सिंधिया राजघराने का वर्चस्व एक बार फिर तब देखने को मिला जब कांग्रेस ने माधव राव सिंधिया का टिकट काट दिया और उन्हें मजबूरी में मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस से चुनाव लड़ना पड़ा. इस चुनौती को भी उन्होंने ग्वालियर की जनता के बल पर बखूबी पूरा किया. न सिर्फ वे सांसद चुने गए बल्कि जनता ने कांग्रेस प्रत्याशी की जमानत तक जब्त करा दी थी. यह ग्वालियर की जनता थी जिसने यह बता दिया था कि वे सिंधिया राज परिवार के साथ खड़े हैं. लेकिन सोचिए ऐसा क्या हुआ कि कुछ समय बाद ही माधवराव सिंधिया ग्वालियर छोड़कर गुना शिवपुरी लोक सभा सीट पर चुनाव लड़ने के लिए मजबूर हो गए.''

माधवराव सिंधिया

जयभान सिंह पवैया से हुआ था कड़ा मुकाबला

यह किस्सा ग्वालियर की राजनीति के इतिहास में दर्ज है. राजनैतिक विश्लेषक देव श्रीमाली बताते हैं, '' 1998 के लोकसभा चुनाव जब हुए, कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को अपना प्रत्याशी बनाया था. तो वहीं नए नए उभरे हिंदूवादी विचारधारा वाले जयभान सिंह पवैया को ग्वालियर लोकसभा सीट पर बीजेपी ने अपना प्रत्याशी बनाया. कुछ ही समय में प्रचार-प्रसार और लोगों के बीच जयभान सिंह पवैया ने जनता के बीच पैठ बना ली. इसका नतीजा यह हुआ कि जब लोकसभा चुनाव हुए तो मुकाबला कांटे की टक्कर का रहा. जिस ग्वालियर लोकसभा सीट पर सिंधिया परिवार का एक छत्र राज हुआ करता था. वहां माधवराव सिंधिया को जीत तो मिली लेकिन जीत का अंतर इस बार करीब साढ़े 26 हजार मतों का रहा.

माधवराव सिंधिया

कम मार्जिन की जीत से हताश थे माधवराव

देव श्रीमाली कहते हैं कि इस लोकसभा चुनाव में इतने कम मार्जिन के साथ हुई जीत का प्रभाव माधवराव सिंधिया के मन पर भी गहरी छाप छोड़ गया. उन्होंने ना तो जीतने के बाद विजय जुलूस निकाला और ना ही कई महीनों तक ग्वालियर आए. वे इतने कम मार्जिन की जीत होने की बात से इतने हताश हो गए कि उनका ग्वालियर से मोहभंग हो गया और उन्होंने अपना लोकसभा क्षेत्र बदलने का फैसला लिया. इस और ग्वालियर को छोड़कर एक बार फिर अपने पुराने क्षेत्र गुना चले गए.

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सिंधिया के जाने पर विरोधियों और समर्थकों की अपनी-अपनी राय

1998 का यह चुनाव सिंधिया परिवार के लिए एक सेट बैक था. क्योंकि, उन्हें इस बात की उम्मीद ही नहीं थी कि ग्वालियर से वह इतने कम मार्जिन से जीतेंगे. देव श्रीमाली का कहना है कि उनके विरोधी यह भी कहते हैं कि माधवराव सिंधिया को अगले चुनाव में हार का खतरा था, भयभीत थे इसलिए उन्होंने ग्वालियर की जगह 2004 का चुनाव गुना से लड़ा. वहीं उनके समर्थकों का कहना था कि वे इतने कम मार्जिन से जीते थे कि यह उनको अच्छा नहीं लगा इसलिए अपनी परंपरागत का सीट पर चले गए.

Last Updated :Apr 25, 2024, 10:45 AM IST

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