अशोकनगर। देश भर में प्रसिद्ध करीला धाम स्थित मां जानकी के दरबार में रंग पंचमी के मौके पर विशाल मेला लगता है. जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु मां जानकी के दर्शन के लिए पहुंचते हैं. इस मेले में करोड़ों रुपये का व्यापार भी होता है. इस मेले को लेकर कई मान्यताएं भी हैं. जिसको लेकर लाखों की संख्या में यहां श्रद्धालु अपनी मन्नत मांगने एवं पूरी होने पर बधाई नृत्य कराने पहुंचते हैं. रंगपंचमी के मौके पर प्रदेश के मुखिया डॉक्टर मोहन यादव ने भी मां जानकी के दरबार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई.
बिना राम के होती है माता सीता की पूजा
यह प्रदेश का संभवत: ऐसा पहला मंदिर होगा जहां बगैर श्रीराम के माता सीता की पूजा होती है. इस मंदिर में माता सीता और उनके पुत्र लव-कुश औऱ महर्षि वाल्मीकि जी की प्रतिमा है. जहां श्रद्धालु पहुंचकर मां जानकी के दर्शन करते हैं. यहां निसंतान लोग माता सीता के सामने अर्जी लगाते हैं और मन्नत पूरी होने पर बधाई नृत्य कराते हैं.
मंदिर से जुड़ी हैं कई मान्यताएं
इस मंदिर से कई मान्यताएं जुड़ी हैं. बताया जाता है की प्रभु श्रीराम जब लंका में रावण का वध कर अयोध्या लौटे थे. उसके बाद लक्ष्मण माता सीता को इसी करीला धाम में छोड़कर गए थे. जहां माता सीता के पुत्र लव और कुश ने जन्म लिया था. इस दौरान स्वर्ग से बधाई गीत गाने के लिए अप्सराएं आईं थी. उसके बाद से ही मान्यता है कि जिन लोगों के पुत्र नहीं होते वह पहले तो यहां आकर उल्टे हाथे या अर्जी लगाते हैं, और जब उनकी मान्यता पूरी हो जाती है तो वे मंदिर पहुंचकर बधाई नृत्य भी कराते हैं.
दूसरी मान्यता मंदिर से जुड़ी यही भी बताई जाती है कि इस मंदिर में रंगपंचमी के दिन ललितपुर गांव के ग्रामीण पहुंचते हैं जो मंदिर में बनी गुफा में अग्नि प्रज्वलित करते हैं. इसके बाद अगले साल ही रंगपंचमी के मौके पर इस गुफा को खोला जाता है. मंदिर की इसी भभूति की विशेष मान्यता है कि इस भभूति को किसान अपने खेतों में अगर डालता है तो उनके खेतों में किसी तरह के कीट या रोग नहीं लगता. साथ ही इस भभूति को घर पर रखने से किसी तरह का दोष भी नहीं लगता है.