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राजपूत राजघराने का बुरा हाल, परिवार के बच्चे मजदूरी करने को मजबूर - Rajput Kings family condition

By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 13, 2024, 9:49 PM IST

Rajput Kings Family Works as labour: राज महल में रहने वाले राज घराने के बच्चे और पोते-पोतियां दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करके गुजर- बसर कर रहे हैं. राजा का परिवार बहुत खराब परिस्थियों में रह रहा है. पढ़ें इस राजा और परिवार की भावुक कर देने वाली ईटीवी भारत की खास रिपोर्ट....

Rajput Kings Grandchildren Working On Daily Wages
मेलघाट के थे राजा, आज परिवार कर रहे कठिन परिस्थियों में गुजारा (ETV Bharat)

अमरावती (महाराष्ट्र) : बारह गांवों का जहांगिरी जिसके पास रहने के लिए एक भव्य महल, पहनने के लिए हीरे और मोती के बटन वाला एक कोट रहता था. दास-दासियों से घिरा हुआ, सोने-चांदी के बर्तनों में भोजन खाने वाला, रत्न जड़ित सोने का मुकुट पहनने वाला, महान वैभव वाला एक राजा अपने जीवन के अंतिम क्षणों में एक साधारण झोपड़ी में रहने आया था. उनका सारा वैभव नष्ट हो गया. उनकी मृत्यु के बाद, सरकार ने उनके स्वामित्व वाली कृषि भूमि पर भी कब्जा कर लिया. उनके बच्चे और पोते-पोतियां गर्व से कहते हैं कि वे राजा के उत्तराधिकारी हैं, आज उन पर काम करने का समय आ गया है. राजा रंक के बारे में कई कहानियां हैं. 'ईटीवी भारत' ने मेलघाट में इस राजा और उसके परिवार की स्थिति जानने की कोशिश की.

वाघदोह गांव में राजा चंदन सिंह का एक बड़ा महल था. वह इस स्थान से पन्द्रह गांवों का प्रबंधन करते थे. इस क्षेत्र में उनकी बहुत बड़ी जमीन थी. राजा चंदन सिंह इन 15 गांवों का राजा बनकर न्याय करते थे. उनकी रानी कमलाबाई की भी बहुत प्रतिष्ठा थी. अनेक दासियां रानी की सेवा में रहती थीं. राजला वाघदोह मिट्टी से निर्मित चंदन सिंह का भव्य महल था. राजा घोड़े पर सवार होकर क्षेत्र में भ्रमण करते थे. किंग पैलेस 70-80 साल पहले इस क्षेत्र की महान महिमा के रूप में जाना जाता था. आज महल के स्थान पर एक बड़ी दीवार बनी हुई है.

अचलपुर तालुका में मेलघाट के वाघदोह गांव पर कभी चंदन सिंह कछवा नाम के एक राजपूत राजा का शासन था. 1927 में जन्मे चंदन सिंह कछवा शुरू में ब्रिटिश सरकार में एक सैनिक थे. चंदन सिंह को मेलघाट के तलहटी में स्थित गांव वाघदोह और आसपास के 15 गांवों की जमींदारी सौंपी गई. इसमें वाघदोह सहित गोंडवाघोली, वाघोली, रायपुर, मलकापुर, जानपुर, चिरामल, काकलदरी, गढ़दारी, धाड़ी, सावरपानी, खीरपानी दहीगांव, वडाली, खेड़गांव गांव शामिल हैं. चंदन सिंह इस क्षेत्र के राजा के रूप में जाने जाते थे.

राजा चंदन सिंह और रानी कमलाबाई की कुल तीन संतानें थीं. इन बच्चों के नाम हैं प्रताप सिंह, दत्तू सिंह और बेनी सिंह. सबसे बड़े बेटे प्रताप सिंह का जन्म 1952 में हुआ था और सबसे छोटे बेनी सिंह उनसे 20 साल छोटे हैं. प्रताप सिंह का निधन हो चुका है, दो भाई दत्तू सिंह और बेनी सिंह वर्तमान में जीवित हैं. प्रताप सिंह के बच्चे गोलू सिंह और रणजीत सिंह हैं. दत्तू सिंह के बच्चे धर्म सिंह और अजीत सिंह हैं और बेनी सिंह के बेटे करण सिंह हैं. आज राजा के दो बच्चे और पांच पोते-पोतियां बहुत खराब परिस्थितियों में रह रहे हैं. गांव या गांव से दूर जहां उन्हें काम मिल सके, वे वहां मजदूर के रूप में काम करके आजीविका चला रहे है.

राजा का परिवार दैनिक वेतन पर कर रहा बसर (ETV Bharat)

15 गांवों के जमींदार राजा चंदन सिंह एक कोट पहनते थे, जिसके बटन हीरे और मोती से जड़े होते थे. राजा और उसके पूरे परिवार का बड़ा वैभव था. देश की आजादी के कुछ वर्ष बाद राजा की जमींदारी चली गई. ऐसे में दहीगांव में खेत विवाद को लेकर बड़ा झगड़ा हो गया. इस लड़ाई में, राजा ने वास्तव में उनमें से एक को अपनी बंदूक से गोली मार दी. राजा को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इसके बाद राजा की प्रतिष्ठा घटने लगी. राजा को अपनी जमीन बेचनी पड़ी, क्योंकि अदालती मुकदमे में बहुत सारा पैसा खर्च हो गया. चूंकि अब धन का आना बंद हो गया, राजा के पास जो कुछ भी था उसे बेचकर आजीविका कमाने का समय आ गया था. हीरे और मोती से जड़ा कोट राजा को अंजनगांव सुर्जी के एक साहूकार के पास गिरवी रखना पड़ा. अंत तक वह कोट राजा से छीना नहीं जा सका. राजा, जो वाघदोह में अपने महल में समृद्धि से रह रहे थे, परिस्थितियों के कारण उन्हें महल छोड़ना पड़ा. वह जनुना गांव में एक छोटे से घर में रहने को मजबूर हो गए. 1967-68 के दौरान राजा चंदन सिंह की अत्यधिक गरीबी में मृत्यु हो गई.

शाहनूर बांध का निर्माण 1990 में अमरावती जिले के ड्राफ्ट बेल्ट में अंजनगांव और दरियापुर तालुकाओं को पानी की आपूर्ति करने के लिए किया गया था. सरकार ने इस बांध के लिए राजा चंदन सिंह का फार्म ले लिया, जो 1 हजार 150 वर्ग मील का है. सरकार को इस जमीन के लिए बहुत कम मुआवजा मिल रहा था, इसलिए राजा के बेटों ने इस कम मुआवजे के बजाय अधिक मुआवजा पाने के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया. राजा के पोते रणजीत सिंह ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि बांध में गई जमीन का हमें आज तक कोई मुआवजा नहीं मिला है. अब हमारे पास मुआवजा पाने के लिए अदालत में लड़ने की आर्थिक क्षमता भी नहीं है. इनके दादा चंदन सिंह को देश की आजादी के बाद पेंशन मिलती थी. रंजीत सिंह ने ईटीवी भारत से कहा कि उनके जाने के बाद भी हमारे परिवार को साल में 12 से 15 सौ रुपये पेंशन मिलती है, लेकिन इतने बड़े परिवार के लिए यह पेंशन पर्याप्त नहीं है.

राजा चंदन सिंह के बच्चे और पोते, जो कभी वाघदोह गांव में एक भव्य महल में रहते थे, अब जनुना गांव में जर्जर घरों में रह रहे हैं. हालांकि गांव वाले उन्हें गांव के राजा के रूप में पहचानते हैं, वास्तव में, जनुना गांव के अन्य परिवार राजा के परिवार से अधिक गोत्र हैं. राजा के बच्चे और पोते-पोतियां भी शिक्षित नहीं थे. इन्हें देखकर किसी को भी यकीन नहीं होगा कि ये वाकई एक राजा चंदन सिंह के वंशज हैं, दुर्भाग्य से इनकी हालत ऐसी है.

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