दिल्ली

delhi

SC ने POCSO मामले में आरोपी महंत शिवमूर्ति को एक हफ्ते में आत्मसमर्पण करने का दिया निर्देश - Murugha Mutt case

By Sumit Saxena

Published : Apr 23, 2024, 6:27 PM IST

Murugha Mutt: सर्वोच्च अदालत ने चित्रदुर्ग मुरुगास्वामी मठ के महंत शिवमूर्ति मुरुघा शरणारू को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है. बता दें कि दो नाबालिग लड़कियों ने महंत शिवमूर्ति पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. पुजारी को सितंबर 2022 में कर्नाटक पुलिस ने गिरफ्तार किया था, फिर नवंबर 2023 में उन्हें कर्नाटक हाई कोर्ट ने जमानत दे दी थी.

SC ASKS PONTIFF OF MURUGHARAJENDRA MUTT CHITRADURGA TO SURRENDER WITHIN A WEEK.
SC ने POCSO मामले में मुरुघा मठ के महंत को एक हफ्ते के भीतर आत्मसमर्पण करने को कहा.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चित्रदुर्ग स्थित मुरुगराजेंद्र मठ के महंत पर दो नाबालिग पीड़ितों के यौन उत्पीड़न मामले में सुनवाई की. शीर्ष अदालत ने बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO) और भारतीय दंड संहिता के तहत दर्ज मामले में महंत को एक सप्ताह के भीतर आत्मसमर्पण करने का निर्देश दिया है. बता दें कि नवंबर 2023 में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने महंत शिवमूर्ति मुरुघा शरणारू को जमानत दे दी थी.

महंत शिवमूर्ति का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की अगुवाई वाली पीठ के समक्ष प्रस्तुत किया कि उनका मुवक्किल आत्मसमर्पण करेगा. शीर्ष अदालत गवाहों की जांच पूरी होने तक उच्च न्यायालय के आदेश को स्थगित रख सकती है. पीठ ने उच्च न्यायालय को चार महीने के लिए स्थगित रखा. साथ ही, महंत को मुकदमे के दौरान सहयोग करने और असाधारण परिस्थितियों को छोड़कर किसी भी स्थगन की मांग नहीं करने का भी आदेश दिया.

पीड़िता के पिता का प्रतिनिधित्व कर रही वकील अपर्णा भट्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी, क्योंकि पीड़िताएं नाबालिग लड़कियां थीं. पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा भी शामिल थे, उन्होंने कहा, 'जबकि प्रतिवादी न्यायिक हिरासत में है, गवाहों से पूछताछ करना उचित होगा. मामले में आईपीसी, पॉक्सो और अन्य कानूनों के तहत विभिन्न अपराधों के लिए आरोप पत्र दायर किया गया था'.

अदालत के समक्ष यह तर्क दिया गया कि नाबालिगों के यौन उत्पीड़न के आरोपों की पृष्ठभूमि में, मठ के प्रशासक के रूप में महंत को बने रहने की अनुमति नहीं दी जा सकती. मामले में एक अन्य याचिकाकर्ता एच एकांतिया का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता पीबी सुरेश, अधिवक्ता सुघोष सुब्रमण्यम और चैतन्य ने किया. वकील ने कहा कि आरोपी महंत को मठ प्रशासन से हटाने, जमानत रद्द करने और पुजारी द्वारा क्रॉस एफआईआर को रद्द करने के आदेश के खिलाफ अपील करने से संबंधित तीन याचिकाएं थीं.

ईटीवी भारत से बात करते हुए अधिवक्ता सुघोष ने कहा कि शीर्ष अदालत ने ट्रायल कोर्ट को चार महीने में गवाहों से पूछताछ करने का निर्देश दिया था. मामले में पक्षों की दलीलें सुनने के बाद, शीर्ष अदालत ने कहा कि वह एक विस्तृत आदेश पारित करने के इच्छुक नहीं है, क्योंकि उच्च न्यायालय ने पहले ही इस मामले में विभिन्न मुद्दों को छूते हुए एक बहुत विस्तृत आदेश पारित कर दिया है. इसमें आगे कहा गया है कि इस साल मार्च में, उच्च न्यायालय ने नए सिरे से आरोप तय करने और ट्रायल कोर्ट को दिन-प्रतिदिन के आधार पर कार्यवाही संचालित करके यथासंभव शीघ्रता से आगे बढ़ने का निर्देश दिया.

शीर्ष अदालत में पिता की याचिका में कहा गया, 'मठ के मठाधीश/महंत के पास असाधारण शक्ति और प्रभाव है, जो इस तथ्य से स्पष्ट है कि भले ही उनके द्वारा दो नाबालिग पीड़ित लड़कियों का क्रमशः 3.5 साल और 1.5 साल तक यौन शोषण किया जा रहा था. दोनों लड़कियों को प्रतिवादी नंबर 3 और उसके साथियों द्वारा चुप रहने की धमकी दी गई थी. दोनों पीड़ित लड़कियां सीआरपीसी की धारा 161 के तहत पुलिस के सामने, सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने और मेडिकल जांच करने वाले डॉक्टर के सामने अपने बयानों में यौन शोषण के बारे में एक जैसी रही हैं'.

याचिका में जोड़ा गया है कि उच्च न्यायालय के आदेश ने यह निष्कर्ष निकालने में घोर त्रुटि की है कि एससी/एसटी अधिनियम के प्रावधानों को अप्रासंगिक विचार पर भरोसा करके आरोप पत्र में गलत तरीके से लागू किया गया है. क्या आरोपी का इरादा एससी/एसटी से संबंधित लड़कियों का यौन शोषण करना था'.

पढ़ें:पॉक्सो मामले में मुरुघा मठ के महंत शिवमूर्ति शरण गिरफ्तार, हाईकोर्ट से मिली जमानत

ABOUT THE AUTHOR

...view details