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जयंती विशेष : इमरजेंसी के बाद जनता सरकार की अगुआई मोरारजी देसाई ने ही की थी

By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 29, 2024, 1:16 PM IST

आज पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई का जन्म दिन है. इमरजेंसी हटने के बाद जनता सरकार की अगुवाई उन्होंने ही की थी. वह अपने विचारों को दृढ़ता से रखने के लिए जाने जाते थे. वह एक अनुशासन प्रिय व्यक्ति थे. इंदिरा सरकार में वह उप प्रधानमंत्री थे. हालांकि, मोरारजी इंदिरा गांधी की विचारों से सहमत नहीं होते थे.

Morarji Desai Birthday
मोरारजी देसाई जन्मदिन

सूरत:यह साल लीप वर्ष है. प्रत्येक चार वर्ष में एक बार लीप वर्ष आता है, तब वर्ष 366 दिन का हो जाता है. तब फरवरी माह में 28 की जगह 29 दिन होते हैं. अगर किसी का जन्मदिन 29 फरवरी है तो वह 04 साल में एक बार ही आता है. भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी भाई देसाई का जन्मदिन भी 29 फरवरी को होता है. लम्बा जीवन जीने के बाद 99 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया. भारतीय राजनीति के इतिहास में पंचायती राज और ग्राम स्वराज के प्रवर्तक प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का जन्म 29 फरवरी 1896 को वलसाड के एक भाडेली गांव में हुआ था. आइए उनकी जयंती के अवसर पर उनके योगदान और उनके विचारों को याद करें, जिन्होंने ना केवल राष्ट्र को समर्थन और मार्गदर्शन प्रदान किया बल्कि अपना जीवन सामाजिक न्याय, समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण में समर्पित करके महत्वपूर्ण योगदान दिया.

देश के चौथे प्रधान मंत्री

मोरारजी देसाई गुजरात की सूरत सीट से लोकसभा के लिए चुने गए. बाद में उन्हें सर्वसम्मति से संसद में जनता पार्टी का नेता चुना गया और 24 मार्च 1977 को 81 वर्ष की आयु में उन्होंने भारत के प्रधान मंत्री के रूप में शपथ ली. मोरारजी देसाई एक भारतीय स्वतंत्रता सेनानी, राजनीतिज्ञ और देश के चौथे प्रधान मंत्री (1977-79) थे. वह एकमात्र व्यक्ति हैं जिन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न और पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान-ए-पाकिस्तान से सम्मानित किया गया है.

प्रधानमंत्री के रूप में अधूरा कार्यकाल

इससे पहले मोरारजी देसाई ने कई बार प्रधानमंत्री बनने की कोशिश की, लेकिन वे असफल रहे. ऐसा नहीं है कि वह प्रधानमंत्री बनने के काबिल नहीं थे. दरअसल, उनका दुर्भाग्य था कि सबसे वरिष्ठ नेता होने के बावजूद पंडित नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु के बाद भी उन्हें प्रधानमंत्री नहीं बनाया गया. प्रधानमंत्री के रूप में मोरारजी देसाई का कार्यकाल पूरा नहीं हो सका। चौधरी चरण सिंह से राजनीतिक मतभेदों के कारण उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.

स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए

मोरारजी देसाई ने 1930 में ब्रिटिश सरकारी नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में शामिल हो गए. इसके बाद 1931 में उन्हें गुजरात राज्य कांग्रेस कमेटी का सचिव बनाया गया. मोरारजी देसाई ने अखिल भारतीय युवा कांग्रेस शाखा की स्थापना की और सरदार पटेल के निर्देशानुसार इसके अध्यक्ष बने. 1932 में मोरारजी को दो वर्ष की कैद हुई.

सोमनाथ ट्रस्ट के ट्रस्टी

मोरारजी देसाई 1937 तक गुजरात प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव थे और फिर उन्हें बॉम्बे राज्य कांग्रेस मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था. इस दौरान यह माना गया कि उनके व्यक्तित्व में जटिलताएं थीं. उन्होंने सदैव अपनी बात को ऊंचा रखा और उसे सत्य माना. लोग उन्हें सर्वोच्च नेता कहते थे, जो खुद मोरारजी को पसंद था. वह सोमनाथ ट्रस्ट के ट्रस्टी भी थे और उन्होंने सोमनाथ मंदिर के विकास के लिए कई काम किए.

मोरारजी देसाई को कारावास

मोरारजी देसाई की विचारधारा जय जवान, जय किसान थी, जिसके कारण उन्होंने भारतीय गांवों और किसानों के विकास को महत्व दिया. उनका मानना ​​था कि गांवों के विकास से ही भारत समृद्ध हो सकता है. गरीबों के हक की लड़ाई में मोरारजी देसाई का नाम हमेशा याद रखा जायेगा. उन्होंने सामाजिक और आर्थिक सशक्तिकरण के लिए कड़े प्रयासों के माध्यम से लोगों को समृद्ध और समान भविष्य की ओर ले जाने का प्रयास किया. मोरारजी देसाई ने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण कई वर्ष जेल में बिताए.

1952 में बंबई के मुख्यमंत्री बने

देश की आजादी के समय उनका नाम राष्ट्रीय राजनीति में प्रमुखता से उभरा. लेकिन मोरारजी देसाई की प्राथमिक रुचि राज्य की राजनीति में ही थी. यही कारण है कि उन्हें 1952 में बंबई (वर्तमान में मुंबई) का मुख्यमंत्री बनाया गया. इस समय तक गुजरात और महाराष्ट्र को बॉम्बे प्रांत के नाम से जाना जाता था और दोनों राज्य अलग-अलग नहीं बने थे. 1967 में जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो मोरारजी को उपप्रधानमंत्री और गृह मंत्री बनाया गया.

प्रधानमंत्री पद के लिए संघर्ष

मोरारजी देसाई को इस बात से निराशा हुई कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता होने के बावजूद उनकी जगह इंदिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया. यही कारण है कि मोरारजी इंदिरा गांधी द्वारा उठाए गए क्रांतिकारी कदमों को रोकते रहे. दरअसल, जब श्री कामराज ने सिंडिकेट की सलाह पर इंदिरा गांधी को प्रधान मंत्री नियुक्त करने की घोषणा की, तो मोरारजी भी प्रधान मंत्री पद की दौड़ में थे. जब वे किसी भी तरह से सहमत नहीं हो सके, तो पार्टी ने इस मुद्दे पर चुनाव कराया और इंदिरा गांधी भारी बहुमत से जीत गईं. इंदिरा गांधी ने मोरारजी देसाई को उपप्रधानमंत्री का पद दिया.

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