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जूते, बीड़ी, नसबंदी, चकबंदी, चौकीदार, डाकू का भी हुआ है सियासी नारों में जिक्र, पढ़ें कुछ दिलचस्प पॉलिटिकल नारे - SLOGANS IN INDIAN POLITICS

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By ETV Bharat Himachal Pradesh Team

Published : May 19, 2024, 2:10 PM IST

Updated : May 20, 2024, 4:25 PM IST

SLOGANS AND INDIAN POLITICS: देश की राजनीति में नारों का अपना महत्व होता है. नारों के माध्यम से राजनीतिक दल के पक्ष में एक माहौल तैयार होता है. साथ ही लोगों के अवचेतन मन में नारे छा जाते हैं. देश में लगे अबतक के चर्चित नारों का संकलन तैयार किया गया है.

भारत की राजनीति में नारों का इतिहास
भारत की राजनीति में नारों का इतिहास (File)

शिमला: विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में चुनावी नारों का इतिहास बड़ा रोचक रहा है. हर दौर में नए से नए नारे गढ़े जाते रहे हैं. सियासी दल ऐसे नारे तलाशते हैं, जो सीधा वोटर्स के दिल में उतर जाएं. इस समय भारत में चुनाव का गगनभेदी शोर है. इस चुनावी रण में भाजपा का नारा- 'अबकी बार, चार सौ पार' गूंज रहा है तो कांग्रेस ने अपने गठबंधन के साथ 'हाथ बदलेगा हालात' का नारा दिया है.

वहीं, चुनावी समर में श्रीराम के नाम पर केंद्रित नारों का भी भाजपा प्रयोग कर रही है. इसमें गीतों के जरिए 'जो राम को लाए हैं, हम उनको लाएंगे' और 'एक ही नारा, एक ही नाम, जय श्री राम जय श्री राम' खूब सुनने को मिल रहा है. देश में सियासी नारों का रोचक इतिहास है. राजनीतिक दल ऐसे नारों के प्रयोग को लेकर उत्सुक रहते हैं जो जनता की जुबां पर चढ़ जाएं.

कांग्रेस ने लंबे समय तक देश पर शासन किया है. कांग्रेस पार्टी के कई नारे बरसों तक जनता के मन में गूंजते रहे. इनमें कुछ चर्चित नारे आगे दर्ज किए जा रहे हैं. 'जात पर न पात पर, इंदिरा जी की बात पर, मुहर लगेगी हाथ पर' ये नारा विख्यात लेखक श्रीकांत वर्मा की सोच का परिणाम था. कुछ नारे पार्टी विशेष के होते हैं तो कुछ नारों में नेता विशेष के गुणों का गान होता है. क्षेत्रीय दलों के क्षत्रपों के भी अपने नारे होते हैं. भाजपा ने भी कई क्रिएटिव नारे जनता के बीच उछाले हैं. आइए, आजादी के बाद से लेकर अब तक के कुछ चर्चित और प्रभावी नारों की बात करते हैं.

बीते दौर में बीजेपी ने दिए है सबसे दिलचस्प और जुबां पर चढ़ने वाले नारे
बीते दौर में बीजेपी ने दिए है सबसे दिलचस्प और जुबां पर चढ़ने वाले नारे (FB: Narendra Modi)
आजादी के बाद पहला नारा

देश की आजादी के बाद एक नारा बहुत लोकप्रिय हुआ. उस समय महात्मा गांधी के व्यक्तित्व की धूम थी. ऐसे में आजादी के बाद नारा लगा- 'खरा रुपय्या चांदी का, राज महात्मा गांधी का' ये बात अलग है कि राष्ट्रपिता गांधी के जीवित रहते देश में चुनाव नहीं हुए थे, लेकिन नारा बन गया था. देश में 'हाथ' निशान से पहले कांग्रेस का चुनाव चिन्ह बैलों की जोड़ी के रूप में था. तब तत्कालीन जनसंघ और आज की भाजपा का चुनाव चिन्ह दीपक-बाती था. जनसंघ ने उस दौरान कांग्रेस को निशाने पर लेते हुए चुनावी नारा उछाला- 'देखो दीपक का खेल, जली झोंपड़ी, भागे बैल' जवाब में कांग्रेस भी पीछे नहीं रही. कांग्रेस ने दिलचस्प नारा दिया. पार्टी कार्यकर्ता प्रचार में नारा लगाते थे- 'इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बनाना खेल नहीं'.

इंदिरा गांधी के दौर में नारों में दिखती थी तुकबंदी
इंदिरा गांधी के दौर में नारों में दिखती थी तुकबंदी (file)

इंदिरा के दौर के नारे

देश की इकलौती महिला प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी के लंबे कार्यकाल में तो मानों नारों की बहार थी. नारों के लिहाज से इंदिरा गांधी का समय बहुत क्रिएटिव कहा जा सकता था. इस दौर में इंदिरा गांधी के साथ-साथ उनके बेटे संजय गांधी भी नारों के वन लाइनर्स का हिस्सा बने थे. कांग्रेस का सबसे चर्चित नारा रहा 'कांग्रेस लाओ, गरीबी हटाओ', ये नारा हर चुनाव में लगता रहा. विपक्ष ने इसकी काट में नारा दिया 'इंदिरा हटाओ, देश बचाओ'. फिर एमरजेंसी के दौरान एक बड़ा जोरदार नारा लगा, "जमीन गई चकबंदी में, मर्द गए नसबंदी में" एक नारा और भी खूब चला था 'नसबंदी के तीन दलाल, इंदिरा, संजय और बंसीलाल'. गौरतलब है बंसीलाल हरियाणा के कद्दावर कांग्रेस नेता थे और मुख्यमंत्री भी रहे. एक नारा और चला था 'संजय की मम्मी बड़ी निकम्मी, बेटा कार बनाता है, मां बेकार बनाती है'.

उल्लेखनीय है कि मारूति कार संजय गांधी का ड्रीम प्रोजेक्ट था. खैर, एमरजेंसी के समय इन नारों ने कांग्रेस के खिलाफ खूब माहौल बनाया और इंदिरा गांधी के हाथ से सत्ता निकल गई. इंदिरा गांधी अगला चुनाव लड़ने के लिए दक्षिण भारत का रुख किया और कर्नाटक के चिकमंगलूर से चुनाव लड़ा था. तब कांग्रेस ने नारा दिया- "एक शेरनी, सौ लंगूर, चिकमंगलूर भई चिकमंगलूर".

अटल-आडवाणी की जोड़ी के दौर में राम मंदिर और इंडिया शाइनिंग का नारा दिया गया
अटल-आडवाणी की जोड़ी के दौर में राम मंदिर और इंडिया शाइनिंग का नारा दिया गया (file)

भाजपा के नारों में अटल, आडवाणी का नाम

यदि भाजपा के नारों की बात करें तो सबसे चर्चित नारा वो था, जिसमें अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी का नाम प्रयोग हुआ था. "अटल, आडवाणी कमल निशान, मांग रहा है हिंदोस्तान". 80 के दशक में भाजपा का सियासत में डेब्यू हुआ और कुछ ही सालों में पार्टी ने राम मंदिर मुद्दे का दामन थाम लिया और पार्टी के मुख्य चेहरे अटल और आडवाणी थे. 90 के दशक के अंत में बीजेपी पहली केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही और पिछले 10 साल भी भाजपा की केंद्र में सरकार है. बीजेपी के इस दौर में नारों की एक लंबी फेहरिस्त है.

  • अबकी बार, चार सौ पार- इस नारे के सहारे बीजेपी 2024 के मौजूदा लोकसभा चुनाव में 543 सीटों में से 400 सीटें जीतने का दावा कर रही है. हालांकि देश में केवल राजीव गांधी के दौर में ही किसी दल को चार सौ सीटें मिली हैं. लेकिन बीजेपी नारा खूब लगा रही है.
  • आएंगे तो मोदी ही- बीजेपी के सबसे बड़े स्टार प्रचारक पीएम नरेंद्र मोदी हैं और 2014 से शुरू हुआ ये सिलसिला अब भी जारी है. पार्टी मोदी के चेहरे पर वोट मांगती रही है और ये नारा उसका एक उदाहरण भर है. इसी तरह 'मोदी है तो मुमकिन है', 'हर-हर मोदी, घर-घर मोदी', 'देश का चौकीदार', 'मोदी का परिवार' जैसे नारे भी खूब चले है.
  • अच्छे दिन आने वाले हैं या अच्छे दिन आएंगे का नारा भी बीजेपी ने ऐसा लगाया कि बीते चुनावी समर में ये बच्चे-बच्चे की जुबां पर चढ़ गया
  • अबकी बार, मोदी सरकार- पहली बार नरेंद्र मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ते वक्त बीजेपी ने ये नारा दिया और उसके बाद ये नारा रिन्यू होता रहा और बीजेपी 'फिर से मोदी सरकार' या 'फिर एक बार, मोदी सरकार' के नारे लगाने लगी.
  • शाइनिंग इंडिया- केंद्र में पहली बार 5 साल की सरकार चलाने के बाद अटल बिहारी वाजपेयी के दौर में बीजेपी ने 'इंडिया शाइनिंग' के नारे के साथ केंद्र में फिर से अटल बिहारी की सरकार रिपीट करने का दावा किया था लेकिन 2004 में ये नारा कामयाब नहीं हुआ और केंद्र में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार बन गई

भाजपा के नारों में राम का नाम
देश की राजनीति में भाजपा के नए सिरे से उभार में राम मंदिर आंदोलन प्रमुख रहा. राम मंदिर आंदोलन में बीजेपी का एक नारा जमकर चला- सौगंध राम की खाते हैं, मंदिर वहीं बनाएंगे. अटल बिहारी वाजपेयी की लोकप्रियता को लेकर ये नारा भी चला- "सबको देखा बारी-बारी, अबकी बारी अटल बिहारी", "मैं भी चौकीदार" से "चौकीदार चोर है" तक. नए समय की राजनीति में नरेंद्र मोदी का नाम चर्चित है. उनके लिए नारा चला "मैं भी चौकीदार" कांग्रेस ने स्लोगन उछाला था कि चौकीदार चोर है, जिसके जवाब में ये नारा चला. इस बार कांग्रेस ने मोदी के परिवार को लेकर सवाल उठाया तो देश में मैं भी मोदी का परिवार वाला अभियान चल पड़ा.

कांग्रेस ने इस बार दिया है 'हाथ बदलेगा हालात' का नारा
कांग्रेस ने इस बार दिया है 'हाथ बदलेगा हालात' का नारा (inc.in)

वाम दलों व क्षेत्रीय दलों के नारे भी कमाल

भारत में वामपंथी दलों का एक नारा भी खूब चर्चा में रहा है. अस्सी के दशक में 'चलेगा मजदूर उड़ेगी धूल, न बचेगा हाथ न रहेगा फूल' और 'लाल किले पर लाल निशान, मांग रहा हिंदुस्तान' जैसे नारे भी चले. वर्ष 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या हो गई थी. उस दौर में विपक्ष के सारे नारे धरे के धरे रह गए थे. इंदिरा गांधी की हत्या से उपजी सहानुभूति की लहर ने विपक्ष को साफ कर दिया. तब नारा लगा- "जब तक सूरज चांद रहेगा, इंदिरा जी का नाम रहेगा". इससे पहले इंदिरा के दौर में कांग्रेस "इंडिया इज इंदिरा, इंदिरा इज इंडिया" का नारा भी दे चुकी थी.

इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी ने सत्ता संभाली थी. उसके बाद गठबंधन सरकारों का दौर आया. वीपी सिंह देश के पीएम बने. बोफोर्स के शोर में वीपी सिंह के लिए नारा लगा था- "राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है". वीपी सिंह के राज में जब देश में मंडल कमीशन की रिपोर्ट आई और भारत आंदोलन की आग में जलने लगा तो नारा चला- "गोली मारो मंडल को, इस राजा को कमंडल दो"

नारों में डाकू से लेकर गुंडे और बीड़ी, तलवार से लेकर जूते का इस्तेमाल

देश की राजनीति में कुछ नारे ऐसे थे, जिनमें अप्रिय शब्दों का प्रयोग हुआ, लेकिन वो खूब चले. उदाहरण के लिए "जनसंघ को वोट दो, बीड़ी पीना छोड़ दो, बीड़ी में तंबाकू है, कांग्रेस पार्टी डाकू है". बिहार में लालू यादव का नारा था- "भूरा बाल साफ करो", ये नारा बिहार की चार जाति विशेषों के खिलाफ था. इसी तरह "जब तक रहेगा समोसे में आलू, तब तक रहेगा बिहार में लालू" जैसा नारा भी बिहार की फिजाओं में लालू राज के दौरान तैरता रहा. चुनावी मौसम को भांपने में माहिर माने जाने वाले बिहार के रामविलास पासवान के लिए कहा जाता था- "ऊपर आसमान, नीचे पासवान". वहीं यूपी में कुमारी मायावती की पार्टी बसपा का नारा था- "चढ़ गुंडन की छाती पर, मुहर लगेगी हाथी पर". सोशल इंजीनियरिंग से पहले नारा था- "तिलक तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार". लेकिन जब मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग पर जोर दिया तो नारे बदल गए और नया नारा 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है' के रूप में सामने आया और बसपा की यूपी की सत्ता में जोरदार वापसी हुई. 'पंडित शंख बजाएगा, हाथी बढ़ता जायेगा', 'मिले मुलायम और कांशीराम, हवा में उड़ेगा जयश्री राम' जैसे नारे भी बसपा और सपा के दौर में खूब लगे.

हिमाचल के नारे भी कम नहीं
हिमाचल प्रदेश में कद्दावर राजनेता और छह बार के सीएम वीरभद्र सिंह के लिए नारा खूब लगाया जाता था. "राजा नहीं फकीर है, हिमाचल की तकदीर है". साथ ही सिंह इज किंग का नारा भी वीरभद्र सिंह के लिए लगाया जाता था. हिमाचल में एक नारा और चलता है- "निकम्मी इस सरकार को, भेजो हरिद्वार को". पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के खिलाफ बने नारे पर खूब विवाद हुआ था. हिमाचल में ओपीएस के आंदोलन के समय कर्मचारियों में एक नारा खूब चला था. "जोइया मामा मनदा नईं, कर्मचारी को सुनता नईं, जोइया मामा मान्नी जा, पुराणी पेंशन पाछू ला, कर्मचारी अब जाग गया, जोइया मामा भाग गया". हालांकि ये नारे चुनावी नहीं थे, लेकिन इन नारों का असर 2022 के विधानसभा चुनाव में खूब हुआ. ये नारे तत्कालीन सीएम जयराम ठाकुर को चुभ गए थे. हालांकि बाद में वे सिरमौर की जनसभाओं में खुद को सिरमौर के लोगों का मामा कहलाने में गर्व करने लगे. दरअसल, जिस कर्मचारी ने ये नारा गढ़ा था, वो सिरमौर से संबंध रखता था और लोकनाट्य का कलाकार भी था.

नारों की जरूरत क्यों

समाज शास्त्री डॉ. सुरेश कुमार का चुनाव के समय नारों की जरूरत विमर्श का विषय है, लेकिन ये तथ्य है कि नारों का अपना मनोविज्ञान होता है. नारा छोटा हो तो आकर्षक होता है. जो जनता की जुबां और दिल में बस जाता है. मनोविज्ञानी डॉ. चंद्र शर्मा का कहना है कि नारों से माहौल बनता है. ये कार्यकर्ताओं के मन में जोश भरते हैं. चुनाव के समय रैलियों में नारों से वोटर्स को अपनी तरफ खींचने का प्रयास होता है. नारों की गूंज अवचेतन मन (subconscious mind) में लंबे समय तक रहती है. कुछ नारे जुबां पर चढ़ जाते हैं और लोग अकसर बेख्याली में उन नारों को बोलने लगते हैं. वरिष्ठ मीडिया कर्मी नवनीत शर्मा का कहना है कि नारों के बिना नेता निष्प्राण सा महसूस करता है. समर्थन में लगने वाले नारे और गले में पड़ने वाली फूल मालाओं से उसके सियासी लहू में उबाल आता है. चुनाव जीतने के लिए मनोवैज्ञानिक लाभ मिलता है. कार्यकर्ताओं के समर्थन से नेताओं में जोश आता है और साथ ही एनर्जी भी. कहा जाए तो नारे चुनाव की भी जान हैं.

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Last Updated : May 20, 2024, 4:25 PM IST
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