इस नक्षत्र वेधशाला में बनी थी भारत के पहले राष्ट्रपति की जन्म कुंडली, संरक्षण की दरकार

author img

By

Published : May 17, 2019, 9:41 PM IST

Updated : May 17, 2019, 11:11 PM IST

उत्तराखंड के देवप्रयाग की नक्षत्र वेधशाला आज सरकार के उदासीनता के कारण ये वेधशाला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं. सरकार को इस वेधशाला के महत्व को देखते हुए इसके सरक्षंण के लिए कोई ठोस कदम उठाने चाहिए.

श्रीनगरः देवप्रयाग में आजादी से पहले स्थापित ऐतिहासिक नक्षत्र वेधशाला बदहाल स्थिति में है. सरकार के उदासीनता के कारण ये वेधशाला अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं. इस वेधशाला में देश के पहले राष्ट्रपति की जन्मपत्री बनाई गई थी. इतना ही नहीं यहां पर पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, सरदार बल्लभ भाई पटेल, इंदिरा गांधी, यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा समेत कई बड़ी हस्तियां अपनी जन्म कुंडली दिखवाने के लिए सीधे संपर्क में रहते थे. अब ये अमूल्य धरोहर धूल फांक रही है. जिसे संजोने की भी दरकार है.

देवप्रयाग में स्थित नक्षत्र वेधशाला को संरक्षण और संवर्धन की दरकार.


बता दें कि अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर बसे देवप्रयाग की अपनी एक अलग ही पहचान है. यहां की धार्मिक और एतिहासिक महत्व को देखने के लिए देश-विदेश से हर साल लाखों पर्यटक पहुंचते हैं. गंगा की इस संगम नगरी में एक ऐतिहासिक स्थान नक्षत्र वेधशाला भी स्थित है. जो 2123 फीट की ऊचांई पर स्थित है. इस नक्षत्र वेधशाला की स्थापना साल 1946 में हुई थी. देवप्रयाग के रहने वाले पंडित चक्रधर प्रसाद जोशी और देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलकंर ने इसकी नींव रखी थी.


बताया जाता है कि चक्रधर प्रसाद जोशी नक्षत्र वेधशाला बनाना चाहते थे, लेकिन उनके पास ज्यादा साधन नहीं थे. ऐसे में हिमालय समेत देश के चारों दिशाओं में घुमक्कड़ और साधक चक्रधर जोशी के खगोलशास्त्र पर अद्भुत पकड़ होने के कारण गणेश वासुदेव मावलकंर ने उनसे वेधशाला बनाने की सलाह दी. साथ में उनकी मदद भी की. इसकी स्थापना के बाद चक्रधर जोशी की खगोल विद्याा और संजोई गई ऐतिहासिक धरोहरों को देखने के लिए लोग यहां से जुड़ते गये.

ये भी पढ़ेंः 'मुझे कोई डर नहीं, जनता जान चुकी है, वो मोदी की बातों में नहीं आने वाली'

ये नक्षत्र वेधशाला ऐसे स्थान पर हैं, जहां से सौरमडंल बराबर दिशाओं में हैं. वहीं, यहां से उन्होंने सौर मडंल के नक्षत्रों और मानव के बीच के ज्योतिष शास्त्र का भी विशेष संयोग विद्या हासिल की. यही कारण है कि देश की आजादी के बाद देश की विभिन्न हस्तियों का यहां से सीधा जुड़ाव रहा. इसी नक्षत्र वेधशाला में देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद आये और अपनी जन्म कुंडली बनाकर अपने भविष्य को जानना चाहा. उनकी कुंडली आज भी यहां मौजूद है. उनके अलावा प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई, गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे गोविंद बल्लभ पंत, हेमवती नंदन बहुगुणा, फिल्म अभिनेत्री आशा पारेख समेत कई संगीतकार यहां आये थे. जिनके अहम दस्तावेज आज भी यहां पर मौजूद हैं.
इस वेधशाला में आज भी कई महत्वपूर्ण दस्तावेज, ऐतिहासिक प्रमाण और खगोलीय वस्तुऐं मौजूद हैं. यहां पर जर्मन की 1950 की दूरबीनें, जापान और रूस से लाई गई दूरबीनें भी रखी गई है. जिनसे खुद चक्रधर जोशी ने सौरमंडल का अध्ययन किया था. इस वेधशाला में दक्षिण भारत के कई ग्रंथ भी संजोकर रखे गये हैं, जो ताड़ के पत्तों पर लिखित हैं. वहीं, एक पेज पर चक्राकार मे लिखी हुई गीता भी संग्रहित की गई है. इसके अलावा वेधशाला में भारतीय चित्रकारों के कई अद्भुत चित्रकारी के नमूने और मानचित्र भी मौजूद हैं.


ये भी पढ़ेंः सरकार पर गन्ना किसानों का 8 अरब रुपए बकाया, कांग्रेस ने लगाया गुमराह करने का आरोप


वेधशाला में 1600 सदी से लेकर 19वीं सदी तक की 3000 से ज्यादा पांडुलिपियां और उत्तराखंड की एक मात्र रामायण प्रदीप रामायण, भृगुसहिंता, तंत्र-मंत्र की पांडुलिपियां मौजूद है, लेकिन ऐतिहासिक लोगों से जुड़ी इस वेधशाला का कोई सरक्षंण और सवंर्धन नहीं हो रहा है. हालांकि, लोग आज भी यहां पर जन्म कुंडली दिखवाने के लिए आते हैं, लेकिन वेधशाला के ये ऐतिहासिक तथ्य और सामग्री आज धूल फांक रहे हैं. परिवार के ही दो सदस्य अपने प्रयासों से इस वेधशाला की देखरेख कर रहे हैं. जो इस ऐतिहासिक नक्षत्र वेधशाला का संरक्षण और संवर्धन को लेकर कई बार सरकार से गुहार लगा चुके हैं.


भारत की संस्कृति और परम्पराएं विश्वाविख्यात हैं. वहीं, यहां के खगोल, भूगोल, गणित, विज्ञान जैसे विषयों का प्राचीन ज्ञान विश्व के कई अविष्कारों और अध्ययनों का आधार रहा है. विश्व के कई वैज्ञानिक भारतीय ज्ञान का लोहा मानते हैं, लेकिन उत्तराखंड की इस नक्षत्र वेधशाला में अर्जित अपार ज्ञान आज सरकार के उदासीनता के भेंट चढ़कर अपना अस्तित्व खोने की कगार पर हैं. ऐसे में अब दरकार है कि सरकार इस वेधशाला की महत्व को देखते हुए इसके सरक्षंण के लिए कोई ठोस कदम उठाये.

Intro:Body:Slug- historical national vedhsala badhaal
Date- 17-5-2019 / mohan/ Srinagar

एकंर - सोचिए वो स्थान जहां देश के पहले राष्ट्रपति की जन्मपत्री बनी हो और उनके भविष्य के लिए भविष्यवाणी हुई हो वो स्थान जहां की महत्ता को देखते हुए स्वर्गीय पूर्व प्रधानमत्री मौरार जी देसाई, सरदार बल्लभ भाई पटेल, इन्द्रिरा गांधी, यूपी के पूर्व मुख्यमत्री स्वर्गीय गोविन्द बल्लभ पन्त, हेमवती नन्दन बहुगुणा समेत कई बड़ी हस्तियां समय समय पर अपनी जन्म कुण्डली दिखवाने के लिए सीधे सम्पर्क मे रहते थे वो स्थान आज बद्हाल है वहां की अमूल्य धरोहर धूल फांक रही है और उसकी किसी को सुध नही है वो स्थान है देवप्रयाग की नक्षत्र वेधशाला-

वीओ -1- देवप्रयाग जहां से गंगा पहली बार अपना नाम पाती है अलकनन्दा व भागीरथी के सगंम पर बसे देवप्रयाग की अपनी एक खास महत्ता है। यहां की धार्मिक व एतिहासिक महत्व को देखने देश विदेश से हर रोज लोग पहुंचते हैं। गंगा की इस सगंम नगरी मे ही एक एतिहासिक स्थान है नक्षत्र वेधशाला। 2123 फीट की उचांई पर स्थापित नक्षत्र वेधशाला की स्थापना सन 1946 मे हुई थी। देवप्रयाग निवासी स्वर्गीय पण्डित चक्रधर प्रसाद जोशी द्वारा इसकी स्थापना की नीव देश के पहले लोकसभा अध्यक्ष गणेश वासुदेव मावलकंर द्वारा इसकी नीव रखी गई थी। बताते हैं कि स्वर्गीय जोशी के पास इतने साधन नही थे कि वे कभी नक्षत्र वेधशाला बनाने की सोचते लेकिन हिमालय समेत देश के चारों दिशाआंे मे घुमक्कड़ व साधक चक्रधर जोशी के खगोलशास्त्र पर अद्भुत पकड़ होने के कारण गणेश वासुदेव मावलकंर ने उनसे वेधशाला बनाने की विनती की और उन्हें मद्द की। इसकी स्थापना के बाद चक्रधर जोशी की खगोल विद्याा व यहां सजोई गई एतिहासिक धरोहरांे को देखने के लिए लोग यहां से जुड़ते गये। ये नक्षत्र वेधशाला ऐसे स्थान पर है जहां से सोरमडंल बराबर दिशाआंे मे हैं वहीं यहां से उन्होने सौर मडंल के नक्षत्रांे व मानव के बीच के ज्योतिश शास्त्र का भी विशेष सयोंग विद्या हासिल की। यही कारण है कि देश की आजादी के बाद देश की विभिन्न हस्तियांे का यहां से सीधा सम्पर्क रहा। इसी नक्षत्र वेधशाला मे देश के पहले राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद आये और अपनी जन्म कुण्डली बनाकर अपने भविष्य को जानना चाहा वह कुण्डली आज भी यहां मौजूद है। प्रधानमत्री मौरर जी देसाई,गृहमन्त्री सरदार पटेल, उतरप्रदेश के मुख्यमत्री रहे गोविन्द बल्लभ पन्त , हेमवती नन्दन बहुगुणा , फिल्म अभिनेत्री आशा परेख व कई सगींतकार यहां आते जाते रहे जिनके अह्म दस्तावेज आज भी यहां मौजूद है।
बाईट-1- प्रभाकर जोशी सरक्षंक नक्षत्र वेधशाला देवप्रयाग
बाईट-2- प्रभाकर जोशी सरक्षंक नक्षत्र वेधशाला देवप्रयाग

वीओ -2- इस वेधशाला मे आज भी कई अह्म दस्तावेज, एतिहासिक प्रमाण व वस्तुऐं, खगोलीय वस्तुएंे मौजूद हैं यहां 1950 मे जर्मन की दूरबीने, जापान व रूस से आई दूरबीने भी मौजूद हैं जिनसे खुद चक्रधर जोशी ने सौरमण्डल का अध्ययन किया यहां दक्षिण भारत के कई ग्रन्थ जो ताड़ के पत्तांे पर लिखित हैं वहंी एक पेज पर चक्राकार मे लिखि हुई गीता भी है। वेधशाला मे भारतीय चित्रकारांे के कई अद्भुत चित्रकारी के नमूने व मानचित्र भी मौजूद हैं। यहां 1600 सदी से लेकर 19वी सदी तक की 3000 से अधिक पाण्डूलिपियां व उतराख्ंाड की एक मात्र रामायण प्रदीप रामायण , भृगुसहिंता, व तन्त्र मन्त्र की पाण्डुलिपियां मौजूद है।
बाईट-3- प्रभाकर जोशी सरक्षंक नक्षत्र वेधशाला देवप्रयाग

वीओ -3- लेकिन दुख की बात ये हैं कि एतिहासिक लोगों से जुड़ी इस वेधशाला का वर्तमान परिपेक्ष्य मे कोई सरक्षंण व सवर्धन नही हो रहा है। हालांकि लोग आज भी यहां जन्म कुण्डली दिखवाने के लिए आते हैं लेकिन वेधशाला के ये एतिहासिक तथ्य व सामग्री आज धूल फांक रहे हैं। परिवार के ही दो सदस्य अपने प्रयासांे से इस वेधशाला की देखरेख कर रहे हैं। जो कई बार सरकार से अर्जी कर चुके हैं कि इस एतिहासिक नक्षत्र वेधशाला का सरक्षंण व सवर्धन किया जाय।
बाईट-4- पण्डित भाष्कर जोशी गुरूजी नक्षत्र वेधशाला

वीओ फाईनल - भारत की संस्कृति व परम्पराऐं विश्वाविख्यात है वहंी यहां के खगोल, भूगोल, गणित,विज्ञान जैसे विषयांे का प्राचीन ज्ञान विश्व के कई अविष्कारांे व अध्ययनांे का आधार रहा है। विश्व के कई वैज्ञानिक भारतीय ज्ञान का लोहा मानते हैं लेकिन उतराखंड की इस नक्षत्र वेधशाला मे अर्जित अपार ज्ञान आज सरकारी उदासीनता के कारण बर्बाद हो रहा हैं उम्मीद है कि सरकार इस वेधशाला की महत्तता को समझेगी व इसके सरक्षंण के लिए कदम उठायेगी।Conclusion:
Last Updated :May 17, 2019, 11:11 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.