पेड़ों को नुकसान पहुंचाया तो होगी कड़ी कार्रवाई, बिजली के तार और होर्डिंग पर HC सख्त

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Published : Jul 11, 2019, 3:35 AM IST

हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने दो महीने के भीतर पेड़ों से हार्डिंग, बिजली के तार समेत कीलों को हटाने के आदेश दिए हैं. साथ ही पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को सख्ती से लागू करने का आदेश पारित करते हुए कोर्ट ने कुमाऊं कमिश्नर गढ़वाल कमिश्नर को दिशा-निर्देश जारी करने को कहा है.

नैनीतालः उत्तराखंड में पेड़ों पर बिजली के तार, कील समेत विज्ञापन बोर्ड लगाने का मामला हाईकोर्ट पहुंच गया है. मामले को गंभीरता से लेते हुए कोर्ट ने दो महीने के भीतर पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वाले सभी चीजों को हटाने के आदेश दिए हैं. साथ ही कुमाऊं और गढ़वाल कमिश्नर को दिशा-निर्देश जारी करने के लिए जवाबदेह बना दिया है. वहीं, आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने को भी कहा है.

जानकारी देते दुष्यंत मैनाली अधिवक्ता याचिकाकर्ता.

बता दें कि हल्द्वानी निवासी अमित खोलिया ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि प्रदेश भर में पेड़ों में विज्ञापन और बिजली के तार समेत कीलें लगाकर पर्यावरण को क्षति पहुंचाया जा रहा है. ऐसे में कई पेड़ सूख रहे हैं. लिहाजा पेड़ों से बिजली के तार, विज्ञापन और कीलों को हटाया जाए. साथ ही याचिकाकर्ता का कहना है कि वो मामले को लेकर प्रदेश के कई अधिकारियों के पास भी पहुंचे, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. जिसके बाद उन्हें कोर्ट का दरवाजा खटखटना पड़ा है.

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इसी कड़ी में बुधवार को मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने दो महीने के भीतर पेड़ों से हार्डिंग, बिजली के तार समेत कीलों को हटाने के आदेश दिए हैं. जिससे पेड़ों को बचाया जा सके और पर्यावरण सुरक्षित रह सके. साथ ही पर्यावरण संरक्षण अधिनियम को सख्ती से लागू करने का आदेश पारित करते हुए कोर्ट ने कुमाऊं कमिश्नर गढ़वाल कमिश्नर को दिशा-निर्देश जारी करने को कहा है.

वहीं, कोर्ट ने कुमाऊं कमिश्नर और गढ़वाल कमिश्नर को आदेश देते हुए कहा कि पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वालों के खिलाफ वृक्ष संरक्षण अधिनियम और उत्तराखंड सार्वजनिक संपत्ति संरक्षण अधिनियम 2003 के अंतर्गत मुकदमा भी दर्ज करें. साथ ही कोर्ट ने प्रदेश के सभी डीएम को आदेश देते हुए किसी भी स्थिति में पेड़ों पर बिजली के तार और विज्ञापन ना लगवाने के निर्देश दिए हैं. इसकी मॉनिटरिंग की जिम्मेदारी भी डीएम को दी है.

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प्रदेश के पेड़ों से बिजली के तार, कील समेत विज्ञापन बोर्ड लगाने का मामला नैनीताल हाईकोर्ट की शरण में पहुंच गया है ।

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मामले को गंभीरता से लेते हुए नैनीताल हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रमेश रंगनाथन और न्यायाधीश आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने कुमाऊं कमिश्नर गढ़वाल कमिश्नर को आदेश दिए हैं क्यों 2 महीने के भीतर प्रदेश के पेड़ों से विज्ञापन बिजली के तार समय पेड़ों में लगाई गई किलो को हटा ले


Body:साथ ही कोर्ट ने कुमाऊं कमिश्नर और गढ़वाल कमिश्नर को आदेश दिए हैं कि पेड़ों को नुकसान पहुंचाने वालों के विरुद्ध वृक्ष संरक्षण अधिनियम और उत्तराखंड सार्वजनिक संपत्ति संरक्षण अधिनियम 2003 के अंतर्गत मुकदमा भी दर्ज करवाएं, वहीं कोर्ट ने प्रदेश के सभी डीएम को आदेश दिए हैं कि वह किसी भी स्थिति में पेड़ों में बिजली के तार और विज्ञापन ना लगने दें जिसके लिए खुद मॉनिटरिंग भी करें।
मामले को गंभीरता से लेते हुए हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने प्रदेश के सभी सरकारी विभागों को आदेश दिए हैं कि उनके द्वारा लगाए गए सभी विज्ञापन वह खुद 2 महीने के भीतर हटा ले।


Conclusion:आपको बता दें कि हल्द्वानी निवासी अमित खोलीया ने नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा है कि लोगों ने प्रदेश भर में पेड़ों में विज्ञापन और बिजली के तार समेत किले पेड़ों में ठोक दी हैं,,, जिससे पर्यावरण को क्षति हो रही है।
लिहाजा पेड़ों से बिजली के तार, विज्ञापन और किलो को हटाया जाए जिसके लिए लंबे समय से प्रदेश के कई अधिकारियों के पास भी गए लेकिन आज तक उनकी किसी ने नहीं सुनी,,, जिसके बाद उनको आज अंत में हाईकोर्ट की शरण में आना पड़ा।
आज मामले की सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश की खंडपीठ ने कुमाऊं कमिश्नर और गढ़वाल कमिश्नर को आदेश दिए हैं कि 2 माह के भीतर पेड़ों से हार्डिंग, बिजली के तार समेत किलो को हटाए ताकि पेड़ों को बचाया जा सके वहीं पर्यावरण भी सुरक्षित रहे।

बाईट- दुष्यंत मैनाली, अधिवक्ता याचिकाकर्ता।
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