प्लास्टिक कचरे पर प्रतिबंध न लगाने पर HC की सख्त नाराजगी, वन सचिव व प्रदेश के सभी DFO पर ₹10-10 हजार जुर्माना

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Published : Nov 24, 2022, 7:42 PM IST

Updated : Nov 25, 2022, 7:54 PM IST

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प्लास्टिक निर्मित कचरे पर पूर्ण रूप प्रतिबंध (banning plastic waste) लगाने के लिए उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने जो आदेश दिया था, उस पर सरकार ने अभीतक अमल नहीं किया है, जिस पर उत्तराखंड हाईकोर्ट ने कड़ी नाराजगी जताई और गढ़वाल और कुमाऊं कमिश्नर के साथ सैकेट्री पर्यावरण को तलब किया है. इसके साथ ही प्रदेश के सभी प्रभागीय वनाधिकारियों व सेक्रेटरी फॉरेस्ट पर दस-दस हजार का जुर्माना लगाया है.

नैनीताल: उत्तराखंड हाईकोर्ट (Uttarakhand High Court) ने राज्य में प्लास्टिक निर्मित कचरे पर पूर्ण रूप प्रतिबंध (banning plastic waste) लगाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. मामले को सुनने के बाद मुख्य न्यायधीश विपिन सांघी व न्यायमूर्ति आरसी खुल्बे की खंडपीठ ने अभी तक दिए गए आदेशों का पालन नहीं करने पर नाराजगी जाहिर की. कोर्ट ने सेक्रेटरी पर्यावरण, मेंबर सेक्रेटरी पीसीबी, कमिश्नर गढ़वाल व कमिश्नर कुमायूं को व्यक्तिगत रूप से 15 दिसंबर को कोर्ट में पेश होने को कहा है, साथ ही कोर्ट ने प्रदेश के सभी डीएफओ और वन सचिव पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. यह कार्रवाई प्रदेश में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण में हीलाहवाली करने, ग्राम पंचायतों का मानचित्र अपलोड नहीं करने पर की गई है.

सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि आदेशों का पालन नहीं करने पर क्यों नहीं आपके खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाए. कोर्ट ने प्रदेश के सभी प्रभागीय वनाधिकारियों पर आदेश का पालन नहीं करने व अभी तक उन्होंने व सेक्रेटरी फॉरेस्ट के द्वारा कोई शपथ-पत्र कोर्ट में पेश नहीं करने पर दस-दस हजार का जुर्माना लागकर राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा करने को कहा है. इसके साथ ही सभी प्रभागीय वनाधिकारियों की लिस्ट भी कोर्ट में पेश करने को कहा है.
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वहीं, कोर्ट ने होटल्स, मॉल्स और पार्टी लॉन व्यवसायियों को निर्देश दिए हैं कि वे अपना कचरा खुद रिसाइक्लिंग प्लांट तक ले जाएं. सचिव शहरी विकास व निदेशक पंचायती राज इसको लागू कर रिपोर्ट कोर्ट में पेश करें. साथ ही प्रमुख सचिव को निर्देश दिए हैं कि वे पीसीबी के साथ मिलकर प्रदेश में आने प्लास्टिक में बंद वस्तुओं का आकलन कर रिपोर्ट पेश करें.

इसके अलावा कोर्ट ने सभी जिला अधिकारियों को निर्देश दिए है कि आपके जिले में कितने प्लास्टिक पैकेजिंग की वस्तुएं आ रही है, उसकी लिस्ट कोर्ट में पेश करें. पूर्व में कोर्ट ने सभी प्रभागीय वनाधिकारियो को निर्देश दिए थे कि वे ग्राम स्तर तक कूड़े का निस्तारण कैसे किया जाय और ग्राम पंचायतों के नक्शे आदि पोर्टल पर अपलोड करने को कहा था, जो अभी तक नहीं किया गया.
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कोर्ट ने प्लास्टिक में बंद वस्तुओं को बेचने वाले कंपनियों को निर्देश दिए थे कि वो अपना कचरा 15 दिन के भीतर स्वयं ले जाएं या उसके बदले नगर निगम, नगर पालिकाओं, नगर पंचायतों व अन्य को इसको उठाने के लिए मुआवजा दें. नहीं देने पर इनको प्रतिबंधित किया, जाय जो आज तक नहीं किया गया. जबकि कोर्ट इस मामले की स्वयं निगरानी कर रही है और कोर्ट ने शिकायत के लिए ई मेल आईडी भी जारी की है. अभी तक दर्ज शिकायतों का भी निस्तारण नहीं हुआ है.

बता दें कि अल्मोड़ा हवलबाग निवासी जितेंद्र यादव ने जनहित याचिका दायर कर कहा था कि राज्य सरकार ने 2013 में बने प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण करने के लिए नियमावली बनाई गई थी. परन्तु इन नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है. 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए गए थे, जिसमें उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वे जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस ले जाएंगे. अगर नहीं ले जाते है तो संबंधित नगर निगम, नगर पालिका व अन्य को फंड देंगे जिससे कि वे इसका निस्तारण कर सके. लेकिन, इसका उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है. पर्वतीय क्षेत्रों में प्लास्टिक के ढेर लगे हुए हैं और इसका निस्तारण भी नहीं किया जा रहा है.

Last Updated :Nov 25, 2022, 7:54 PM IST
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