शंकराचार्य स्वरूपानंद के उत्तराधिकारी घोषित, अविमुक्तेश्वरानंद ज्योतिष पीठ के प्रमुख बने

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Published : Sep 12, 2022, 4:12 PM IST

Updated : Sep 12, 2022, 5:29 PM IST

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शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारी का आज एलान कर दिया गया है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ बदरीनाथ का प्रमुख घोषित किया गया है. स्वामी सदानंद को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख घोषित किया गया है. दोनों के नाम की घोषणा शंकरचार्य जी की पार्थिव देह के सामने हुई.

देहरादून: ज्योतिष पीठ बदरीनाथ और शारदा पीठ द्वारका के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के उत्तराधिकारियों के नाम सोमवार दोपहर घोषित हो गए हैं. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ (ज्योतिर्पीठ) बदरीनाथ और स्वामी सदानंद सरस्वती को द्वारका शारदा पीठ का प्रमुख घोषित किया गया है. उनके नामों की घोषणा शंकराचार्य जी की पार्थिव देह के सामने की गई है.

ज्योतिर्मठ की मान्‍यता क्‍या है? कहा जाता क‍ि है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने जोशीमठ या ज्योतिर्मठ में ही ज्ञान प्राप्त किया था और इसके बाद आदि गुरु शंकराचार्य ने भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की थी. इसमें से एक मठ ज्योतिर्मठ भी है, जहां शंकर भाष्य की रचना की थी.

शंकराचार्य बनाए जाने की घोषणा के बाद ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा स्वामी स्वरूपानंद जैसी विभूति कोई दूसरी नहीं हो सकती. अपने जीवनकाल में ही उन्होंने अपना उत्तराधिकारी बनाकर कर्तव्य निभाया. उन्होंने अपना हर कर्तव्य पूरी जिम्मेदारी से निभाया. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा स्वामीजी को श्रद्धांजलि देने परमहंसी आश्रम में देश के सभी मठों से प्रतिनिधि आ रहे हैं.
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जानिए कौन हैं स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद: ज्योतिर्पीठ के शंकराचार्य बनाए गए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का वाराणसी से गहरा नाता है. किशोरावस्था से ही काशी के केदारखंड में रहकर संस्कृत विद्या अध्ययन करने वाले स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने वाराणसी के संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की शिक्षा ग्रहण की है. इस दौरान छात्र राजनीति में भी सक्रिय रहे और संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के महामंत्री भी रहे.

जानें ज्योतिर्मठ का पूरा इतिहास: ज्योतिर्मठ या ज्योतिर पीठ, उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ शहर में विकासखंड पैनखंडा में स्थित एक मठ है. इसको उत्तारमण्य मठ या उत्तरी मठ भी कहा जाता है. जोशीमठ में स्थित होने के कारण ये मठ इसी नाम से प्रचलित हो गया था. हालांकि, जून 2016 में ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंद सरस्वती जी महाराज ने यहां आयोजित एक धार्मिक समारोह में जोशीमठ का नाम ज्योतिर्मठ किए जाने की इच्छा जाहिर की थी. जिस पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने दिसंबर 2021 को ज्योतिर्मठ के पौराणिक महत्व को समझते हुए जोशीमठ का नाम वापस ज्योतिर्मठ किए जाने की घोषणा की थी. ज्योतिर्मठ में पूजे जाने वाले देवता भगवान नारायण और शक्ति-पूर्णागिरि हैं.

मान्यता है कि 8वीं सदी में भगवान शंकर के 11वें अवतार आदि गुरु शंकराचार्य यहां आए थे. उन्होंने अमर कल्प वृक्ष के नीचे पांच साल तपस्या की और शंकर भास्य सहित अन्य धार्मिक ग्रंथों की रचना की. उन्हें अमर कल्प वृक्ष के नीचे तपस्या कर दिव्य ज्ञान ज्योति की प्राप्ति हुई थी. दिव्य ज्ञान ज्योति और जयोतेश्वर महादेव की वजह से इसे ज्योतिर्मठ नाम दिया गया. 8वीं शताब्दी में हिंदू शंकराचार्य ने देशभर में चार मठों की स्थापना की. शंकराचार्य के प्रमुख शिष्यों- पद्मपाद (सनंदन), हस्तामलक, मंडन मिश्र और तोटक (तोटकाचार्य) को भारत के उत्तर, दक्षिण, पूर्व और पश्चिम में इन चार शिक्षण केंद्रों को सौंपा गया था. शंकराचार्य ने अपने शिष्य तोटका को ज्योतिर्मठ की गद्दी सौंपी थी. वही ज्योतिर्मठ के पहले शंकराचार्य बने.

छोटी-सी उम्र में ही आदि गुरु शंकराचार्य ने भारतभर का भ्रमण कर हिंदू समाज को एक सूत्र में पिरोने के लिए चार मठों ही स्थापना की. चार मठ के शंकराचार्य ही हिंदुओं के केंद्रीय आचार्य माने जाते हैं, इन्हीं के अधीन अन्य कई मठ हैं.

  1. चार प्रमुख मठ- वेदान्त ज्ञानमठ, श्रृंगेरी (दक्षिण भारत).
  2. गोवर्धन मठ, जगन्नाथपुरी (पूर्वी भारत).
  3. शारदा (कालिका) मठ, द्वारका (पश्चिम भारत).
  4. ज्योतिर्पीठ, बद्रिकाश्रम (उत्तर भारत).

18वीं सदी में शवि रामक तीर्थ द्वारा ज्योतिर्मठ के कब्जे के बाद 1941 में स्वामी ब्रह्मानंद सरस्वती की नियुक्ति तक ये 165 वर्षों के लिए नेतृत्वहीन था. वर्ष 1941 में ब्रह्मानंद सरस्वती आए जो करयात्री स्वामी जी के नाम से प्रसिद्ध थे और जो पश्चिम में महेश जोगी के गुरू होने के कारण जाने गए. महेश योगी मशहूर बैंड बीटल्स और मिया फैरो के गुरू थे. ब्रह्मानंद को औपचारिक रूप से ज्योतिर्मठ का शंकराचार्य बनाया गया था. वर्ष 1953 में उनकी महासमाधि (मृत्यु) के बाद जोशीमठ की गद्दी विवादों तथा मुकदमों में उलझी रही, जिस पद के लिए कई दावेदारों ने दावा पेश किया. यहीं से वर्ष 1973 में नियोजित तथा द्वारका, ऋंगेरी एवं पुरी के तीनों शंकराचार्यों द्वारा मान्य यहां के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती द्वारका मठ की भी देखभाल करते रहे हैं.

Last Updated :Sep 12, 2022, 5:29 PM IST
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