NFHS रिपोर्ट: उत्तराखंड में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं, ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ा सेक्स रेशियो

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Published : Nov 25, 2021, 5:48 PM IST

Updated : Nov 25, 2021, 6:23 PM IST

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राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण की रिपोर्ट 2020-21 के मुताबिक उत्तराखंड में प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1016 है. इस रिपोर्ट में प्रदेश में महिलाओं की साक्षरता दर में सुधार देखा जा सकता है. वहीं, महिलाओं के प्रजनन दर में कमी आई है.

देहरादून: राष्ट्रीय परिवार और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family and Health Survey) की रिपोर्ट अनुसार अब भारत में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की संख्याओं में इजाफा (Increase in the number of women) हुआ है. बुधवार को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय (Union Health Ministry) ने रिपोर्ट जारी किया, जिसके अनुसार राज्य की जनसंख्या के हिसाब से प्रति हजार पुरुषों पर कुल 1016 महिलाएं (1016 females per thousand males) हैं. जहां शहरी क्षेत्रों में ये आंकड़ा 943 है तो ग्रामीण क्षेत्रों में 1052 महिलाएं प्रति हजार पुरुष हैं. पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में महिलाओं की संख्या बढ़ना अच्छी खबर है, लेकिन इसी के साथ इस रिपोर्ट में कई ऐसे पहलू हैं, जो चिंता का विषय भी हैं.

नवजात लिंगानुपात में कमी: रिपोर्ट में पिछले पांच साल (2016-2021) के बीच बच्चों के जन्म का लिंगानुपात (sex ratio at birth) प्रति हजार लड़के 984 लड़कियां हैं. शहरी क्षेत्रों में हजार लड़कों में 1094 लड़कियों का अनुपात है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्रति हजार लड़कों पर 937 लड़कियां हैं. सरकार की सख्ती की वजह से भ्रूण परीक्षण (embryo test) और भ्रूण हत्या (feticide) के मामलों में कमी आई है. केंद्रीय स्वास्थ्य परिवार कल्याण मंत्रालय की ओर से बुधवार को जनसंख्या, प्रजनन, बाल स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, पोषण और अन्य के साथ-साथ 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए 2019-21 एनएफएचएस-5 के चरण दो के तहत प्रमुख संकेतकों की फैक्टशीट जारी की गई है.

इन राज्यों में किया गया सर्वे: स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार इस चरण में जिन राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का सर्वेक्षण किया गया, उनमें अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा, पुडुचेरी, चंडीगढ़, छत्तीसगढ़, हरियाणा, झारखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली के एनसीटी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं.

उत्तराखंड में भी पुरुषों से ज्यादा महिलाएं: बात अगर उत्तराखंड की करें तो रिपोर्ट के मुताबिक, जनसंख्या के हिसाब से यहां प्रति 1000 पुरुषों पर महिलाओं की संख्या 1016 है. इस रिपोर्ट में प्रदेश में महिलाओं की सारक्षता दर में सुधार देखा जा रहा है. एनएचएफएस 2015-16 में सारक्षता दर 76.5 के अपेक्षा NFHS-5 (2020-21) में बढ़कर 79.8 हुई है. वहीं, महिलाओं के प्रजनन दर में कमी आई है, जो 2.1 से घटकर 1.9 हो गई है. वहीं, नवजात मृत्यु दर में बढ़ोतरी हुई है. 2015-16 के रिपोर्ट के अपेक्षा 2020-21 में मृत्यु दर 27.9 से बढ़कर 32.4 हो गई है.

शिशु मृत्युदर दर में कमी: वहीं, 5 वर्ष तक के शिशु मृत्यु दर में गिरावट (decrease in infant mortality rate) आई है. 2015-16 में शिशु मृत्यु दर 47 फीसदी थी. जो 2020-21 में घटकर 45.6 फीसदी हो गई है. वहीं, अब अस्पतालों में महिलाएं प्रसव के लिए ज्यादा पहुंच रही है. रिपोर्ट के अनुसार संस्थागत प्रसव 2015-16 में 68.6 फीसदी से बढ़कर 83.2 फीसदी दर्ज की गई है.

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23 राज्यों में पुरुषों से ज्यादा महिलाओं की आबादी: देश के 23 राज्य ऐसे हैं, जहां प्रति 1 हजार पुरुषों पर महिलाओं की आबादी इससे ज्यादा है. देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में प्रति 1 हजार पुरुषों पर 1017, बिहार में 1090, राजस्थान में 1009, छत्तीसगढ़ में 1015, झारखंड में 1050 महिलाएं हैं. वहीं, महिलाओं की प्रजनन दर में भी कमी आई है. आई नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-5 (National Family Health Survey-5) के मुताबिक, देश में प्रजनन दर (Fertility Rate) में भी कमी सामने आई है. प्रजनन दर आबादी की वृद्धि दर बताती है.

प्रजनन दर में कमी: सर्वे के मुताबिक, देश में प्रजनन दर 2 पर आ गई है. 2015-16 में ये 2.2 थी. बता दें, सभी 14 राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ में 1.4 से लेकर उत्तर प्रदेश में 2.4 हो गई है. मध्य प्रदेश, राजस्थान, झारखंड और उत्तर प्रदेश को छोड़कर सभी चरण-II राज्यों ने प्रजनन क्षमता का प्रतिस्थापन स्तर (2.1) हासिल कर लिया है.

एनीमिया बना चिंता का विषय: बच्चों और महिलाओं में एनीमिया चिंता का विषय बना हुआ है. एनएफएचएस-4 की तुलना में सभी चरण-II राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों और अखिल भारतीय स्तर पर गर्भवती महिलाओं द्वारा 180 दिनों या उससे अधिक समय तक आयरन फोलिक एसिड (आईएफए) गोलियों के सेवन के बावजूद आधे से अधिक बच्चे और महिलाएं (गर्भवती महिलाओं सहित) एनीमिया से ग्रस्त हैं. 6 महीने से कम उम्र के बच्चों को विशेष रूप से स्तनपान कराने से अखिल भारतीय स्तर पर 2015-16 में 55 प्रतिशत से 2019-21 में 64 प्रतिशत तक सुधार हुआ है. दूसरे चरण के सभी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश भी काफी प्रगति दिखा रहे हैं.

Last Updated :Nov 25, 2021, 6:23 PM IST
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