तो ADM की कुर्सी के लिए नहीं मिल रहा जिम्मेदार अफसर!, दून कलेक्ट्रेट के इस खाली पद पर कब होगी स्थाई तैनाती?

तो ADM की कुर्सी के लिए नहीं मिल रहा जिम्मेदार अफसर!, दून कलेक्ट्रेट के इस खाली पद पर कब होगी स्थाई तैनाती?
permanent appointment of ADM in Dehradun Collectorate उत्तराखंड में शायद बेहतर अफसरों की कमी हो गई है. तभी तो सरकार राजधानी देहरादून में भी बड़े जिम्मेदार पदों पर अधिकारियों को तैनात नहीं कर पा रही है. दून कलेक्ट्रेट में बीते करीब तीन महीने से ADM का पद खाली पड़ा है. लेकिन वहां पर अभीतक सरकार कोई स्थायी अधिकारी नियुक्त नहीं कर पाई है.
देहरादून: राजधानी देहरादून के कलेक्ट्रेट में ADM जैसे अहम पद पर शासन पिछले करीब 3 महीने से स्थाई तैनाती नहीं कर पा रहा है. ये हालात तब हैं जब देहरादून में जमीनों की गड़बड़ियों से लेकर अतिक्रमण हटाने जैसे अहम मामले अक्सर सामने आ रहे हैं. काम के दबाव के बावजूद राजधानी के लिए जिम्मेदार अफसर की तलाश शासन इतने समय बाद भी क्यों पूरी नहीं कर पाया है, ये एक बड़ा सवाल बन गया है.
उत्तराखंड में काबिल अफसरों की इतनी कमी हो गई है कि राजधानी देहरादून तक को ADM पद पर अधिकारी नहीं मिल पा रहा. दून कलेक्ट्रेट में ADM प्रशासन की खाली कुर्सी तो कुछ इसी ओर इशारा कर रही है. दरअसल जिलाधिकारी के अधीन कलेक्ट्रेट में दो ADM के पद हैं. इनमें ADM फाइनेंस एवं राजस्व और ADM प्रशासन शामिल हैं. राजधानी में चार अगस्त को इसी साल ADM एसके बरनवाल को अचानक हटाने के आदेश जारी किए गए थे. शासन ने उन्हें राजस्व परिषद में अटैच कर दिया था. बताया जा रहा है कि एसके बरनवाल के खिलाफ लगातार शिकायतें मिल रही थी, जिसके बाद ही सरकार ने ये फैसला लिया.
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लेकिन चौंकाने वाली बात यह है कि सीनियर पीसीएस अधिकारी एसके बरनवाल को देहरादून एडीएम पद से हटाने के बाद आज तक इसपर किसी की भी स्थायी तैनाती नहीं हो पाई. हालांकि देहरादून में एटीएम प्रशासन के तौर पर सिटी मजिस्ट्रेट प्रत्यूष सिंह को अतिरिक्त जिम्मेदारी दे दी गई है. लेकिन सवाल ये उठ रहा है कि आखिरकार राजधानी के लिए शासन को काबिल अफसर ADM पद के लिए क्यों नहीं मिल रहा?
इसको लेकर तमाम लोग और विपक्षी दल आरोप लगाते हुए कई तर्क भी दे रहे हैं. राजधानी देहरादून में हाल ही में जमीन फर्जीवाड़े को लेकर एक बड़ा मामला भी सामने आया है, जिसमें सरकारी कर्मचारियों की ही मिलीभगत भी सामने आ चुकी है. ऐसे में एडीएम प्रशासन जैसे अहम पद को खाली रखते हुए भारी दबाव वाले राजधानी के कलेक्ट्रेट को अफसर क्यों नहीं दिया जा रहा? ये बड़ा प्रश्नचिन्ह है.
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इसके अलावा राजधानी देहरादून में अतिक्रमण हटाने का भी भारी दबाव है और वीवीआइपी ड्यूटी से लेकर तमाम एनफोर्समेंट से जुड़े कार्य भी हैं. राजधानी देहरादून को इतने लंबे समय तक एडीएम ना मिला हो ऐसा अब तक कम ही देखने को मिला है. लिहाजा शासन स्तर पर इसको लेकर निर्णय नहीं लिए जाने के पीछे क्या खास कारण और मंशा है ये सवाल भी दिलचस्प होता जा रहा है.
