धामी के CM बनते ही भाजपा कांग्रेस के नेता हो गए खामोश, ये है वजह

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Published : Nov 22, 2022, 2:29 PM IST

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पुष्कर सिंह धामी के सीएम बनते ही मानों भाजपा कांग्रेस के नेता खामोश हो गए हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि हमेशा अपने बयानों और रवैये के कारण सुर्खियों में रहने वाले नेता अब चुपचाप अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं. यहां तक कि विपक्षी नेता भी सरकार के गलतियों पर पर्दा डाल रहे हैं.

देहरादूनः उत्तराखंड में जिन नेताओं के इर्द-गिर्द भाजपा की राजनीति घूमा करती थी, जिन नेताओं के बयानों से राज्य में राजनीतिक हलचल पैदा हो जाती थी, जो नेता उत्तराखंड की राजनीति में सत्ता या विपक्ष का केंद्र बिंदु हुआ करते थे, वह नेता बीते लंबे समय से खामोश हैं. जानकारों का तो यहां तक कहना है कि अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह नेता खुद खामोश है या इन्हें खामोश किया गया (Leader silent in front of CM Pushkar Singh Dhami) है. राज्य की राजनीति में चाहे वह सत्ता पक्ष या विपक्ष ऐसे कई नेता हैं जो मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आने के बाद अब चर्चाओं में नहीं हैं.

सुबोध उनियाल खुलकर नहीं कर पा रहे बेटिंगः उत्तराखंड में सरकार भले ही कांग्रेस की रही हो या भाजपा की. जिस भी सरकार में सुबोध उनियाल (SUBODH UNIYAL) रहे, वहां वह उन नेताओं में शुमार थे जो ना केवल डंके की चोट पर ही नहीं, बल्कि सही को सही और गलत को गलत कहकर अपनी बात रखते थे. इतना ही नहीं, पूर्व में उनके पास जो भी विभाग रहे, वह बड़े महत्वपूर्ण रहे. उनका अनुभव उन विभागों में हमेशा काम आया. लेकिन मौजूदा समय में उनके पास वन मंत्रालय के अलावा कोई भी महत्वपूर्ण विभाग नहीं है. सुबोध उनियाल धामी सरकार के आने के बाद से काफी खामोश हैं.

धामी के CM बनते ही भाजपा कांग्रेस के नेता हो गए खामोश.

धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद सुबोध उनियाल भी बेहद सीमित कार्यक्रम, बैठक और बयानों में दिखाई दे रहे हैं. हालांकि, पहले भी वह कई बार अनौपचारिक तौर पर इस बात का जिक्र कर चुके हैं कि जितना उनका राजनीतिक अनुभव है, उतना राज्य को शायद मौजूदा समय में नहीं दे पा रहे हैं. जानकार तो यही मानते हैं कि सुबोध उनियाल जैसा व्यक्ति भी मौजूदा समय में बेहद शांत है और इसकी वजह भी फिलहाल किसी को नहीं पता. सुबोध उनियाल त्रिवेंद्र, हरीश रावत सरकार और अन्य सरकारों में भी महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं. वह उत्तराखंड की नरेंद्रनगर विधानसभा सीट से विधायक हैं.
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5 बार के विधायक अरविंद पांडे गायबः ऐसे ही नेता हैं जो आजकल प्रदेश की राजनीति से गायब हैं. या ये कहें कि वह विधायक तो हैं लेकिन मौजूदा सरकार में उनकी आवाज सुनाई नहीं दे रही है. वह हैं पूर्व कैबिनेट मंत्री और गदरपुर सीट से विधायक अरविंद पांडे (ARVIND PANDEY). अरविंद पांडे कुछ समय पहले तक राज्य में कैबिनेट मंत्री थे. उनके पास खेल और शिक्षा जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय थे. 5 बार के विधायक और अपनी कार्यशैली से अपनी अलग पहचान रखने वाले अरविंद पांडे भी इन दिनों खामोश हैं. यह खामोशी क्यों है? इसका जवाब ही किसी के पास नहीं है. अरविंद पांडे भी जिस तरह से उत्तराखंड की राजनीति में अपना एक अलग स्थान रखते थे. उनके बयानों को, उनकी कार्यशैली को राज्य की राजनीति में बेहद महत्वपूर्ण स्थान दिया जाता था. लेकिन अरविंद पांडे भी शांति से अपने विधानसभा क्षेत्र में बने हुए हैं. ऐसा क्या हुआ कि हमेशा चर्चाओं में रहने वाले, उनके बयान, उनका काम अचानक से राज्य की राजनीति से गायब हो गया.

हाशिए पर मदन कौशिकः ऐसा ही एक नाम है मदन कौशिक (MADAN KAUSHIK). मदन कौशिक हरिद्वार से 5 बार के विधायक हैं. प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं. भाजपा के हर सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं. सरकारों के मुख्य प्रवक्ता रहे हैं. प्रदेश में सबसे अनुभवी नेताओं में उनका नाम लिया जाता है. सरकार जब जब संकट में आई तब तब मीडिया के सवालों के जवाब हो या कैबिनेट जैसे महत्वपूर्ण बैठकों पर खुलकर सरकार का पक्ष रखना हो, मदन कौशिक आगे रहे हैं. उनके बयान भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के लिए बेहद महत्वपूर्ण हुआ करते थे.

राजधानी देहरादून में अब तक अपना अधिकतर समय बिताने वाले विधायकों में से एक मदन कौशिक अब देहरादून में बेहद कम दिखाई दे रहे हैं. इस समय शांति से खामोशी से अपनी विधानसभा क्षेत्र में ही बने हुए हैं. ये बात तब है जब उनको प्रदेश अध्यक्ष पद से हटे हुए अभी ज्यादा वक्त नहीं हुआ है. लेकिन मदन कौशिक को भी अचानक से राज्य की राजनीति से नजरअंदाज या तो कर दिया गया है या वह खुद एकांतवास में इस समय चल रहे हैं. जानकार मानते हैं कि मदन कौशिक हो या सुबोध उनियाल. सतपाल महाराज हो या अरविंद पांडे, यह ऐसे नेता हैं जिनके अनुभवों से राज्य सरकार और संगठन बेहद फायदा ले सकती है. लेकिन हैरानी की बात यह है कि मौजूदा समय में इन महत्वपूर्ण नेताओं को तवज्जो क्यों नहीं दी जा रही है? यह बड़ा सवाल है.
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विपक्ष के नेता भी हैं खामोशः उत्तराखंड की राजनीति को जानने वाले लोग तो यह भी कह रहे हैं कि रेखा आर्य (REKHA ARYA)भले ही राज्य में कैबिनेट मंत्री के पद पर तैनात हैं. लेकिन वह भी धामी के मुख्यमंत्री बनने के बाद बेहद शांत तरीके से अपना विभाग संभाल रही हैं. इससे पहले वह अपने काम, बैठकों की वजह से भी हमेशा चर्चाओं में रही हैं. ऐसा नहीं है कि सिर्फ सत्तापक्ष का ही यह हाल है. विपक्ष के नेता विपक्ष में रहकर हमेशा से दहाड़ने और अपने बयानों से सरकार को परेशान करने का काम करते थे. लेकिन वह नेता भी अब बेहद शांति से विपक्ष का दायित्व निभा रहे हैं. नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य हो या विधायक प्रीतम सिंह हो या कांग्रेस के हरीश धामी. विपक्ष के कुछ ऐसे नेता हैं जो मौजूदा सरकार में बेहद खामोशी से अपने विपक्ष के धर्म को निभा रहे हैं.

क्या कहती है कांग्रेसः इस खामोशी को लेकर विपक्ष भी सरकार और सीएम धामी पर कई बार हमला बोल रहा है. कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता शीश पाल सिंह कहते हैं कि अनुभवी नेताओं को नजरअंदाज करना बीजेपी में अंदरूनी राजनीति की कहानी बयां करती है. सरकार, संगठन, सीएम, मंत्रियों में तालमेल नहीं है. इसी वजह से कई बार संगठन कुछ और, सरकार कुछ और बयान देती है. ये राज्य के लिए बिलकुल भी सही नहीं है.

हम सबका करते हैं सम्मानः भाजपा इस मामले में बहुत धीमे धीमे शब्दों में अपना पक्ष रख रही है. भाजपा का कहना है कि हमारी पार्टी सभी का बराबर सम्मान करती है. ऐसा नहीं है कि किसी नेता को कम महत्त्व दिया जा रहा है. हम सभी से काम लेते हैं. कोई सरकार में रह कर काम कर रहा है तो कोई संगठन में रहकर.

सीएम की असुरक्षा की भावनाः उत्तराखंड की राजनीति को जानने वाले जानकार इस मामले में अपना पक्ष कुछ और ही रख रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जय सिंह रावत कहते हैं मंत्री धन सिंह को छोड़ दें तो सतपाल महाराज, सुबोध उनियाल ये सभी वो नेता हैं जिनके पास बहुत अनुभव है. लेकिन कहां है कोई नहीं जानता है. इसकी सबसे मुख्य वजह है सीएम का बहुत जल्द सरकार और संघठन पर अपनी मजबूत पकड़ बना लेना. सीएम अभी नौजवान हैं और ये सभी बेहद अनुभव रखते हैं. ये सीएम धामी को भी मालूम है कि कोई भी नेता उनको दोबारा सीएम या आगे नहीं बढ़ने देगा.

वो कहते हैं कि ये एक तरह से असुरक्षा की भावना भी है. राज्य में कब सीएम बदल दिए जाते हैं कुछ कहा भी नहीं जा सकता है. इसलिए सीएम सभी मंत्री, विधायक और अनुभवी नेताओं को कैसे कहां रखना है, ये खुद शायद तय कर रहे हैं.

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